अश्विनी विजय प्रकाश पारीक, जयपुर : राजनेता से गैर राजनीतिक चर्चा हमेशा खास रहती है. ETV Bharat की सीरीज नेताजी नॉन पॉलिटिकल की इस कड़ी में जब मंत्री बाबूलाल खराड़ी से चर्चा की तो बेहद रोचक तथ्य सामने आए. उन्होंने अपने राजनीति में आगाज से लेकर प्रेरणास्रोत और घर-परिवार के अनछुए पहलुओं को साझा किया. उदयपुर जिले की आदिवासी बाहुल्य सीट झाड़ोल का प्रतिनिधित्व करने वाले मंत्री खराड़ी युवा मोर्चा के जरिए सक्रिय राजनीति में आए और फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य करते हुए सक्रिय राजनीति की हर सीढ़ी पर कामयाबी हासिल की.
भैरोंसिंह शेखावत सरकार के थ्री-टियर सिस्टम के जरिए पंचायती राज के रास्ते उन्होंने पहला चुनाव लड़ा. खराड़ी बताते हैं कि पहले इलेक्शन में कामयाबी नहीं मिलने के बाद उन्होंने पांच मर्तबा विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की टिकट पर चुनौती का सामना किया. ऐसे में उन्हें चौथी दफा कामयाबी मिली. पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया को अपना राजनीतिक गुरु बताने वाले खराड़ी कहते हैं कि कटारिया के दबाव के चलते ही पहली बार जब उन्हें जिला परिषद का सदस्य बनने का मौका मिला था.
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उसके बाद गोविंदाचार्य ने जब टिकट की बात की तो खराड़ी ने इनकार कर दिया, लेकिन इस इनकार से उनके टिकट का रास्ता खुला और आज वो विधायक के रूप में स्थापित हो चुके हैं. खराड़ी का मानना है कि नेता बनने के लिए झूठ बोलने पड़ता है और वे झूठ में भरोसा नहीं रखते हैं. इसलिए उन्हें नेता, कुर्सी और पद की हसरत नहीं है.
कच्चे मकान को बनाया आशियाना : कैबिनेट मंत्री बाबूलाल खराड़ी भले ही आज राजधानी जयपुर की सिविल लाइंस के बंगला नंबर 380 में रहते हैं, लेकिन उनका परिवार झाड़ोल के जंगलों में बसे गांव के एक साधारण से घर में ही रहता है. दो पत्नियों के साथ नौ बच्चों की परवरिश इसी घर में हुई है. खराड़ी के मुताबिक अब मंत्री बनने के बाद घरवाले असहज जरूर हैं, लेकिन वक्त के साथ-साथ उन्होंने भी इस घर में आने वाले लोगों की सियासी मुलाकात और मंत्री जी के प्रोटोकॉल को स्वीकार कर लिया है.
पक्के मकान और शहरों की ओर आने के सवाल पर खराड़ी कहते हैं कि वे अगर शहरों तक आ जाएंगे तो गांव और गांव वाले उन्हें छोड़ देंगे. जहां तक सवाल पक्के मकान का है तो सारी कमाई और पेंशन तो परिवार की परवरिश में पूरी हो जाती है. लिहाजा आर्थिक तंगहाली उन्हें मंत्री होने के बावजूद पक्का मकान मयस्सर नहीं करने दे रही है. सोफे और पत्थर की चट्टान में फर्क के सवाल को भी इस खास बातचीत में खराड़ी ने सहजता से टाल दिया. उन्होंने बताया कि वे काम पर फोकस करते हैं न कि सुविधाओं पर.
लिव इन से शादी तक : ईटीवी भारत के साथ हुई बातचीत में बाबूलाल खराड़ी ने अपनी दो शादियों की चर्चा भी छेड़ी. खराड़ी बताते हैं कि यूं तो आदिवासी संस्कृति बहु विवाह की प्रथा को मानती है, लेकिन खराड़ी बताते हैं कि उनकी मां को कैंसर हो गया था. लिहाजा घर और खेती बाड़ी के काम और बाकी की जिम्मेदारियों को देखते हुए उनको दो शादियों का फैसला करना पड़ा.
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live-in का दिलचस्प किस्सा - आदिवासी परंपरा का हवाला देते हुए खराड़ी ने बड़े रोचक ढंग से बताया कि कि शादी से पहले वो और उनकी पत्नी लिव इन में रहे थे. उनके मुताबिक जनजातीय समाज में ऐसा करने में गुरेज नहीं होता है और यह आम बात है. कुल मिलाकर 4 बेटे और पांच बेटियों में से 4 बच्चों की शादी के बाद दो बहुओं और दो पत्नियों के कुनबे में खराड़ी का घर संसार सुखी परिवार की परिभाषा गढ़ रहा है.
राणा प्रताप और बिरसा मुंडा हैं प्रेरणास्रोत : मंत्री बाबूलाल खराड़ी बताते हैं कि उन्हें अपने जीवन में बिरसा मुंडा और महाराणा प्रताप काफी प्रेरित करते हैं. जिस तरह से मेवाड़ ने कभी मुगल सल्तनत की गुलामी को मंजूर नहीं किया और परिवार के संघर्ष के साथ ही कठिन जीवन के बावजूद प्रताप ने हार नहीं मानी. वो उनके दृढ़ निश्चय को मिसाल बनाता है. इसी तरह से बिरसा मुंडा का जीवन बताता है कि कैसे संस्कृति और सभ्यता के लिए जीवन को मातृभूमि के नाम न्योछावर किया जा सकता है.
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1875 में जन्मे बिरसा ने 19वीं शताब्दी के आखिर में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बंगाल प्रेसिडेंसी में हुए आदिवासियों के धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया था. उनका जीवन आजादी की लड़ाई में इतिहास बन चुका है. खराड़ी कहते हैं कि वे मंत्री रहते हुए जनजातीय क्षेत्र में सालों से चली आ रही राजस्व गांवों में पट्टों की परेशानी का हल निकाल चुके हैं और जल्द ही इस दिशा में उनकी मनोकामना भी पूरी होगी.