नीमच: शरद पूर्णिमा को लेकर लोग कंफ्यूजन में रहे. देश में कहीं बुधवार तो कहीं गुरुवार को शरद पूर्णिमा मनाई गई. वहीं मध्य प्रदेश के नीमच जिले में गुरुवार को शहर में शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है. आमतौर पर अश्विन माह की 10वीं तिथि को देश दुनिया में दशहरे यानी विजयादशमी का पर्व बड़े ही उत्साह उमंग के साथ मनाया जाता है. इस दिन सब जगह रावण के पुतले का दहन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था. इसे असत्य पर सत्य की जीत के पर्व के नाम से भी जाना जाता है.
शरद पूर्णिमा पर रावण दहन की परंपरा
नीमच शहर में एक ऐसा स्थान है. जहां रावण दहन दशहरे पर नहीं होता, यहां दशहरे के 5 दिन बाद शरद पूर्णिमा पर रावण दहन की परंपरा है. इसके पीछे किंवदंती है कि 'दशहरे के दिन रावण की मृत्यु हुई थी. जबकि उसका अंतिम संस्कार 5 दिन बाद शरद पूर्णिमा को किया गया था. ऐसी भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन आसमान से अमृत वर्षा हुई थी, इससे युद्ध में मारे गए भगवान राम की सेना के सैनिक जिंदा हो गए थे.' शहर के सिटी इलाके में स्थित इस गांव में शरद पूर्णिमा को रावण जलाने की बरसों पुरानी परंपरा है. जो आज भी बदस्तूर जारी है.
रावण रूंडी के नाम से जाना जाता है गांव
शरद पूर्णिमा पर इस परंपरा के चलते इस जगह को रावण रूंडी के नाम से जाना जाने लगा है. शरद पूर्णिमा पर रावण दहन की यह परंपरा देश के किसी भी हिस्से में नहीं है. सिर्फ नीमच सिटी ऐसा क्षेत्र है, जहां शरद पूर्णिमा पर रावण के पुतले का दहन होता है. रावण रुंडी मुख्य शहर से महज 2 किलोमीटर दूर स्थित है. रावण रूंडी नाम से प्रसिद्ध इस गांव में हर साल शरद पूर्णिमा पर रावण के पुतले का दहन होता है. यह परंपरा पिछले 100 वर्षों से चली आ रही है.
जागीरदार मनाते थे दशहरा उत्सव
इतिहासकारों के अनुसार 'यह परंपरा दक्षिण पंथी मैसूर पद्धति पर आधारित है. जो शहर में मराठों के आगमन के साथ शुरुआत हुई थी. जब यह नगर ग्वालियर स्टेट शामिल हुआ तब से मराठा नीमच में बसे और 1733 में राणो जी सिंधिया द्वारा गढ़ी का निर्माण करवाया था. तब से यहां दशहरा उत्सव मनाने की प्रथा शुरु हुई थी. कहा जाता है कि पहले सभी जागीरदार जुलूस के साथ नगर के बाहर ऊंचे टीले पर शमी वृक्ष की पूजा करते थे. इसके साथ ही दशहरा उत्सव जीत के रुप में शुरु होता था. रावण रुंडी उसी विजय के प्रतीक का स्थान है. बताया जाता है कि यहां ग्वालियर रियासत के अधीन आने वाले सभी जागीरदार दशहरा उत्सव मनाने आते थे.
21 फीट रावण की सीमेंट प्रतिमा
रावण रूंडी गांव के बीच स्थित मैदान के रावण की एक 21 फीट ऊंची सीमेंट की प्रतिमा स्थाई रूप से बनी हुई है. जिसमें रावण सिंहासन पर बैठा है. जिस सिंहासन पर रावण विराजित है, उसकी ऊंचाई 15 फीट है, जबकि रावण की मूर्ति 21 फीट है, रावण की मूर्ति का निर्माण करीब 100 साल किया गया था, जो पहले छोटे रूप में थी. मगर करीब 40 साल पहले नवनिर्माण कर इसकी ऊंचाई बढ़ाकर 21 फीट कर दी गई है.
देवियों का महत्व
रावण दहन से पहले यहां कई स्वांगधारी अलग-अलग स्वांगधर कर पहुंचते हैं. कुछ स्वांगधारी देवी के रूप में पहुंचते है. इनका भी अपना अलग महत्व है. बताया जाता है कि जब तक देवियां रावण दहन वाले मैदान के निश्चित चक्कर नहीं लगा लेती है, तब तक रावण दहन नहीं होता.
नीमच में मेले का आयोजन
हर साल शरद पूर्णिमा पर रावणरूंडी में परंपरा अनुसार मेले का आयोजन किया जाता है. जिसे दशहरा उत्सव समिति रावण रंडी शिव नगर के द्वारा आयोजित किया जाता है. इस मेले में झूले, चक्करी के साथ कई तरह के सामानों की दुकानें लगाई जाती है. इस मेले को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं, मेले में नीमच शहर के साथ साथ आसपास के ग्रामीण इलाकों ओर पड़ोसी राजस्थान से भी लोग आते हैं.
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इनका कहना
सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मीनारायण विश्वकर्मा ने कहा 'मान्यता है कि राम-रावण के युद्ध के 5 दिन बाद शरद पूर्णिमा पर रावण के शरीर ने प्राण त्यागे थे. इस दिन उसका अंतिम संस्कार भी हुआ था. यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही आसमान से अमृत वर्षा हुई थी. इससे युद्ध में राम सेना के मारे गए सैनिक जिंदा हो गए थे. यही कारण है कि रावण रूंडी के नाम से प्रसिद्ध इस स्थान पर हर साल शरद पूर्णिमा के दिन रावण दहन होता है. यह परंपरा 100 सालों से चली आ रही है. दशहरा उत्सव समिति के सचिव ललित पाटीदार वर्षों पुरानी परंपरा अनुसार शरद पूर्णिमा पर रावण दहन किया जाता है. दशहरा उत्सव समिति द्वारा मेले का आयोजन होता है. मान्यता है कि इस दिन अमृत वर्षा हुई थी और युद्ध में धर्म का साथ देने वाले सभी सैनिक जो भगवान राम की सेना में थे वे, जीवित हो गए थे.