पटनाः नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़कर एनडीए में शामिल होने के बाद, विश्वास मत के दौरान कई विधायकों ने भी महागठबंधन से नाता तोड़कर एनडीए का समर्थन किया था. लेकिन हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में इन बागी विधायकों के क्षेत्रों में महागठबंधन के उम्मीदवारों ने एनडीए उम्मीदवारों से अधिक वोट प्राप्त किए हैं. इस चुनावी परिणाम ने स्पष्ट कर दिया है कि जनता ने बागी विधायकों को नकार दिया और महागठबंधन को अपना समर्थन दिया है.
नीतीश ने बदला था पाला: नीतीश कुमार ने महागठबंधन को छोड़कर 28 जनवरी 2024 को नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. 12 फरवरी 2024 को बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार के द्वारा विश्वास मत प्रस्ताव लाया गया. विश्वास मत के दौरान राष्ट्रीय जनता दल के तीन विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की. बाद में कांग्रेस पार्टी के भी तीन विधायकों ने पाला बदल लिया. एनडीए के पक्ष में कुल 129 वोट पड़े थे. पहले बदलने वाले में मोहनिया से कांग्रेस विधायक संगीता कुमारी, भभुआ से राजद विधायक भरत बिंद, मोकामा से राजद विधायक नीलम देवी, चेनारी से कांग्रेस विधायक मुरारी गौतम, विक्रम से कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ और शिवहर से राजद विधायक चेतन आनंद शामिल थे.
लोकसभा चुनाव में अपने विधानसभा क्षेत्र में एनडीए प्रत्याशी को नहीं दिला सके लीडः
सासाराम लोकसभा सीटः यहां से एनडीए प्रत्याशी मनोज राम की हार हुई. सासाराम लोकसभा क्षेत्र के मोहनिया विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व संगीता कुमारी कर रही है. संगीता कुमारी कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव जीती थीं और भाजपा खेमे में आ गई थीं. मोहनिया विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी को 87995 वोट मिले तो भाजपा प्रत्याशी को 65981 वोट मिले. कुल मिलाकर 22,000 से अधिक वोटों से भाजपा उम्मीदवार पीछे रह गए.
भभुआ में 4893 वोट से रह गये पीछेः सासाराम लोकसभा क्षेत्र में भभुआ विधानसभा भी आता है. यहां कांग्रेस पार्टी को 80213 वोट मिले तो भाजपा उम्मीदवार को 75380 वोट मिले. एनडीए प्रत्याशी 4893 वोटों से पीछे रह गए. भभुआ विधानसभा से राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते भारत बिन्द विधानसभा के विश्वास मत के दौरान भाजपा खेमे में आ गए थे.
पूर्व मंत्री भी बढ़त नहीं दिला सकेः सासाराम लोकसभा क्षेत्र में चेनारी विधानसभा भी आता है. यहां से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते मुरारी गौतम, महागठबंधन सरकार में मंत्री थे. राज्य में जब एनडीए की सरकार बनी तो मुरारी गौतम भी भाजपा के साथ आ गए थे. चेनारी विधानसभा सीट पर भी एनडीए प्रत्याशी को बढ़त नहीं मिली. कांग्रेस पार्टी को 85,889 वोट मिले जबकि भाजपा उम्मीदवार को 84,332 वोट मिले.
विक्रम में रामकृपाल रह गये पीछे: विश्वास मत के दौरान विक्रम विधायक ने भी पाला बदला था. कांग्रेस पार्टी के विधायक सिद्धार्थ एनडीए खेमे में आ गए थे. विक्रम विधानसभा क्षेत्र पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में आता है. यहां से भी राम कृपाल यादव को लीड नहीं मिली. विक्रम विधानसभा क्षेत्र में मीसा भारती को 94,282 वोट मिले जबकि भाजपा के रामकृपाल यादव को 89,552 वोट ही मिले. यहां से भाजपा प्रत्याशी रामकृपाल यादव 4730 मतों से पीछे रह गए.
अनंत के मोकामा में पीछे रह गये ललन सिंहः बाहुबली नेता अनंत सिंह लोकसभा चुनाव के दौरान पैरोल पर बाहर आए थे. चर्चा यह थी कि वो ललन सिंह के पक्ष में प्रचार करने आये हैं. मोकामा विधानसभा सीट से अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने राजद के टिकट पर चुनाव जीता था. विश्वास मत के दौरान एनडीए खेमे में आ गई थी. मोकामा विधानसभा क्षेत्र से राजद उम्मीदवार अनीता देवी को 69, 690 वोट मिले थे जबकि ललन सिंह को 68, 312 वोट मिले थे. अनंत सिंह अपने विधानसभा क्षेत्र में भी ललन सिंह को बढ़त नहीं दिला सके. हालांकि, ललन सिंह लोकसभा चुनाव जीत गये थे.
बीमा भारती भी रहीं नाकामः एक ओर जहां कुछ विधायकों ने महागठबंधन का दामन छोड़कर एनडीए खेमा ज्वाइन कर लिया, वहीं रुपौली विधायक बीमा भारती ने जदयू छोड़कर राजद का दामन थामा था. राष्ट्रीय जनता दल ने बीमा भारती को पूर्णिया लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार भी बनाया. पूर्णिया लोकसभा सीट से उनकी जमानत जब्त हो गयी. यहां बीमा भारती, तीसरे नंबर पर रहीं. यहां से निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव को जनता ने अपना सांसद चुना.
क्या कहते हैं दल के नेताः राष्ट्रीय जनता दल प्रवक्ता सारिका पासवान ने कहा कि जो नेता दल के साथ धोखा करते हैं, जनता भी उन्हें माफ नहीं करती है. महागठबंधन को जिन विधायकों ने धोखा दिया उन्हें लोकसभा चुनाव में अपनी ताकत का अंदाजा हो गया. विधानसभा चुनाव में भी जनता उन्हें जगह पर लाने का काम करेगी. भाजपा विधायक जनक सिंह ने कहा है कि जनता मालिक है. किसे जिताना है और किसे हराना है वह जनता तय करती है. लोकसभा का चुनाव अलग तरीके से होता और विधानसभा का चुनाव अलग तरीके से होता है. दोनों के मुद्दे अलग होते हैं.
"आधे दर्जन विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की थी, हालांकि तकनीकी रूप से अभी वह जिस दल के विधायक थे इस दल में हैं. खास बात यह रही की लोकसभा चुनाव के दौरान अपने विधानसभा क्षेत्र में वह पीछे रह गए. संकेत साफ है कि जनता ने उनके फैसले पर मुहर नहीं लगायी. आने वाले विधानसभा चुनाव उनके लिए खतरे की घंटी की तरह है."- अरुण पांडे, राजनीतिक विश्लेषक
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