गया: कूड़े की कीमत हजारों-लाखों में, सुनकर हैरानी होती है, लेकिन यह सच है. हाथ से छूकर- टटोलकर ही इसकी कीमत खरीदार लगा देते हैं. कोलकाता और यूपी से पहुंचने वाले खरीदार सौदा पटते ही इसे क्रय कर लेते हैं.
महंगे दामों में बिकता है यह कूड़ा: गया में महंगे दामों में कूड़ा बिकता है. खरीदने वाले भी इस कदर एक्सपर्ट होते हैं कि हाथ से छूकर और टटोलकर दाम बता देते हैं, कि इस कूड़े की कीमत क्या है. दरअसल, दीपावली पर्व को लेकर उमंग है. ऐसे में आभूषण दुकानदारों की दुकानों के कूड़े खरीदने वाले पहुंच रहे हैं. इसकी कीमत हजारों- लाखों में जाती है. हाथ से टटोलकर ही खरीदार इसकी कीमत लगा देते हैं. आभूषण दुकानों के कूड़े को 'न्यारा' कहा जाता है. यह कूड़ा ऐसा- वैसा नहीं, बल्कि कीमती होता है. इसे साल भर सुरक्षित और सहेजकर रखा जाता है, क्योंकि इसकी लाखों में कीमत मिलती है.
मिट्टी में मौजूद रहते हैं कारीगरी से निकले कण: आभूषण दुकानों-कारखाने से निकलने वाली मिट्टी जिसे न्यारा कहते हैं, उसे सहेज कर रखा जाता है. न्यारा का अर्थ होता है, आभूषण दुकानों या कारखाने से निकलने वाली मिट्टी. आभूषण दुकानों के कारखाने में सोने चांदी को छोटा या बड़ा किया जाता है या फिर निर्माण के दौरान जो कार्य किया जाता है, उस समय उसके कण गिरते हैं. यह कण भले ही मिट्टी में मिल जाते हैं और कूड़े की तरह दिखते हैं, लेकिन इसे आभूषण दुकानदार सहेज कर रखते हैं. क्योंकि आभूषण दुकानों- कारखानों से निकलने वाली मिट्टी अथवा कूड़ा में सोना-चांदी के कण होते हैं, इसलिए उसकी कीमत होती है.
क्या होती है 'न्यारा' मिट्टी: इस संबंध में आभूषण दुकान में कारीगरी का काम करने वाले चंदन कुमार वर्मा बताते हैं, कि आभूषण निर्माण के दौरान या फिर आभूषण को छोटा बड़ा करने के दौरान सोने चांदी के कण गिरते हैं. सोने चांदी के कण जो गिरते हैं, उसे हम लोग मिट्टी के साथ उठा लेते हैं. यह एक तरह से हम सुनारों का एक कूड़ा होता है. न्यारा को साल भर जमा किया जाता है.
"हर दीपावली के एक-दो दिन पहले इसकी बिक्री करते हैं. चूकि इस कूड़े में सोने चांदी के कण होते हैं, तो यह महंगी होती है. हम लोग प्रतिदिन कूड़े को सहेजकर एक डिब्बे में रखते हैं. यह डब्बा साल में दीपावली के समय के आसपास में खोला जाता है. दीपावली का वह समय होता है, जब सुनारों के दुकानों - कारखानों की मिट्टी को खरीदने के लिए लोग दूसरे राज्यों से आते हैं."- चंदन कुमार वर्मा, आभूषण दुकान के कारीगर
हाथ से ही टटोलकर लगा देते हैं कीमत:चंदन कुमार वर्मा बताते हैं, कि आभूषण दुकानों की मिट्टी जो साल भर जमा होती है, उसे दीपावली के समय में खरीदने के लिए दूसरे राज्यों से लोग आते हैं. यह लोग एक्सपर्ट होते हैं और न्यारा यानि कि आभूषण दुकानों- कारखानों से निकली मिट्टी की खरीदारी करते हैं. यह लोग इतने एक्सपर्ट होते हैं कि हाथ से टटोलकर ही अंदाजा लगा लेते हैं, कि इसकी कीमत क्या होगी.
"एक डिब्बे न्यारा की कीमत औसतन एक लाख के आसपास होती है. इसके खरीदार जो कोलकाता, यूपी और बिहार के कुछ हिस्सों से आते हैं, इसकी खरीददारी करते हैं. दर्जनों इस तरह के पेशेवर लोग दूसरे राज्यों से पहुंचते हैं. न्यारा की बिक्री में मामला सौदा पट जाता है और आभूषण दुकानों कारखानों की मिट्टी को हम लोग बिक्री करते हैं."- चंदन कुमार वर्मा, आभूषण दुकान के कारीगर
दूसरे राज्यों से आते हैं खरीदार: चंदन कुमार वर्मा बताते हैं, कि रमना रोड, बजाजा रोड, मखाना गली आदि के आसपास तकरीबन 500 सोने चांदी की दुकानें हैं. सभी 500 दुकानों में कोलकाता यूपी से आने वाले खरीदार पहुंचते हैं और लगभग न्यारा की खरीदारी करके ही लौटते हैं. कई दिनों तक रुक कर खरीददारी की जाती है. इस तरह सुनारों के दुकानों से निकलने वाली मिट्टी अच्छी कीमत पर बिक्री हो जाती है.
5 करोड़ का हो जाता है कारोबार: तकरीबन 500 दुकानें हैं. किसी सुनार की दुकान से 80-90 हजार तो किसी सुनार की दुकान से लाख डेढ़ लाख में न्यारा की खरीदारी दूसरे राज्यों से आने वाले लोग करते हैं. इस तरह तकरीबन 5 करोड़ का कारोबार आभूषण दुकानों का न्यारा का हो जाता है. इसकी खरीददारी करने वाले लोग अपनी विधि से कीमती धातु के कणों को निकाल लेते हैं. स्वर्ण कारोबारी बताते हैं, कि न्यारा की खरीददारी करने वाले कभी घाटे में नहीं रहते.
दीपावली के समय हर साल बेचते हैं न्यारा : इस धंधे में अच्छा खासा मुनाफा मिल जाता है. यही वजह है, कि दूसरे राज्यों से न्यारा के खरीदार आते हैं. यदि न्यारा के खरीदार से बात नहीं बनी, तो इस कूड़े की खुद रिफाइन कारोबारी करते हैं और उससे सोना चांदी के आभूषण का निर्माण करते हैं. वैसे, अमूनन सभी आभूषण दुकानों में न्यारा रखा जाता है, जो साल में एक बार दीपावली के समय में निकाला जाता है और उसकी बिक्री की जाती है.
"दीपावली के समय वह हर साल न्यारा बेचते हैं और औसतन 1 लाख कीमत मिल जाती है. साल भर ठोंक पीट या निर्माण के समय जो धातु के कीमती कण कूड़े में मिलकर जमा होते हैं, उसे लोग सहेज कर रखते हैं और दीपावली के समय बिक्री करते हैं. इसे खरीदने के लिए कोलकाता यूपी से खरीदार आते हैं. यह वही लोग होते हैं, जो न्यारा की ही खरीदारी करते हैं."- नीरज कुमार वर्मा, आभूषण कारोबारी
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