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जंगल में स्थित भड़किया माता से डकैत मांगते थे डकैती की अनुमति, पूरी होने पर चढ़ाते थे चढ़ावा, चट्टानों पर है निशान

400 साल पुराने भड़किया माता मंदिर की कहानी बड़ी रूचिकर है. डकैत भी डकैती से पहले माता का आशीर्वाद लेने यहां आते थे.

Bhadkiya Mata Temple in Kota
भड़किया माता मंदिर (ETV Bharat Kota)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 9, 2024, 6:32 AM IST

कोटा: कोटा के पास स्थित जंगलों में माता का एक 400 साल पुराना मंदिर है. यहां भड़किया माता विराजमान हैं. कहा जाता है कि एक जमाने में डकैत माता रानी से आशीर्वाद लेकर ही डकैती करने जाया करते थे. डकैती कर फिर वापस आकर माता की आराधना किया करते थे. साथ ही डकैती की राशि में से भारी भरकम चढ़ावा चढ़ाते थे.

भड़किया माता मंदिर में डकैत भी झुकाते थे सिर, मांगते थे डकैती की अनुमति (ETV Bharat Kota)

चरवाहे के सपने में आकर माता ने रुकवाया था चोरी को: रायपुर निवासी श्रद्धालु शिवप्रसाद मालव का कहना है कि पहले यहां पर एक चरवाहा रहा करता था. उसने अपने पशुओं को भी यहां पर ही रखा हुआ था, जंगल में उन्हें चराने ले जाया करता. एक बार रात के समय उसके पशुओं की चोरी हो गई. तभी माता रानी ने उसके सपने में आकर उसे जानकारी दी. इसके बाद ही इस मंदिर का निर्माण शुरू किया गया. यह इलाका सुनसान होने के चलते यहां पर डकैत भी आकर रुकने लग गए थे. क्योंकि यहां पर छुपने के लिए पर्याप्त जगह मंदिर के नीचे स्थित चट्टान पर थी. मंदिर में माता की दो मूर्तियां बनी हुई हैं. पहले ये मूर्तियां खुले में ही थी. बाद में इनके ऊपर पूरा मंदिर बनाया गया है.

पढ़ें: पहाड़ों को फाड़ कर प्रकट हुईं ललेची माता, यहां होते हैं देवी के तीन रूप के दर्शन, रंग बदलती हैं मूर्तियां

चट्टानों पर हैं डकैतों के निशान: मंदिर की 20 सालों से पूजा करने वाले मुकेश वैष्णव का कहना है कि यहां पर हर व्यक्ति की मांग पूरी होती है. बीमारी से लेकर हर समस्या का निवारण माता के पास है. श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ रही है, पहले यह पूरी तरह से सुनसान इलाका था. पुरानी मान्यता के अनुसार चट्टानों पर कई लोगों के घुटने और पैरों के निशान हैं. बताया जाता है कि पुराने जमाने में जब डकैत यहां पर पूजा-अर्चना माता को प्रसन्न करने के लिए किया करते थे. तभी उनके पैर और घुटने के निशान भी चट्टानों तक आ गए, क्योंकि काफी दिन उन्हें इस अवस्था में रहना पड़ता था.

पढ़ें: यहां माता के घुटनों की होती है पूजा, खीर-पूरी और मांस-मदिरा का भी लगता है भोग - Navratri 2024

फॉरेस्ट एरिया के दाढ़ देवी जंगल के: मंदिर में नियमित आने वाले श्रद्धालु पंकज शर्मा का कहना है कि उनकी तीन पीढ़ी इस मंदिर में लगातार आ रही है. यह मंदिर जहां पर स्थित है, वहीं दो पुराने शिकारगाह भी बने हुए हैं. पंकज का कहना है कि मंदिर के पास एक बड़ा खाल (बड़ा नाला) है. इसमें जंगली जानवर पहले आया करते थे. जिसमें बारिश के समय में जंगल का पूरा पानी भी आता है. यहां पर राजपरिवार के सदस्य पहले शिकार खेलने के लिए आया करते थे. ऐसे में मंदिर के दर्शन के लिए भी आते होंगे. यह मंदिर भी एक बड़े ड्रेनेज के पास स्थित चट्टान पर है. जिस के नीचे भगवान शिव विराजित हैं.

पढ़ें: पुष्कर में यहां गिरी थी सती माता की कलाइयां, स्थानीय लोगों के लिए हैं चामुंडा माता, ये है पौराणिक कथा - SHARDIYA NAVRATRI 2024

भील समाज के लोग मानते हैं कुलदेवी: शिवप्रकाश मालव का कहना है कि वे भड़किया माता मंदिर में 40 साल से नवरात्रि व अन्य दिनों भी दर्शन करने आते हैं. उनके परिवार की मंदिर को लेकर मान्यता भी है. इस मंदिर को भील समाज के लोग अपनी कुलदेवी के रूप में भी मानने लगे हैं. इसके बाद ही यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ गई है. अब ये लोग यहां पर मान्यता पूरी होने पर माता रानी को भोग लगाने भी पहुंचते हैं. पहले यहां बलि देने की भी प्रथा थी. जिसके लिए भी मंदिर में स्थान तय किया हुआ है. हालांकि वर्तमान में बली की परंपरा बंद कर दी गई है.

ना बिजली ना पानी, रात में रुकना भी मुश्किल: मंदिर में एंट्री के लिए भी फॉरेस्ट की चौकी के नजदीक से ही होती है. जहां से करीब डेढ़ किलोमीटर अंदर जाना पड़ता है. मंदिर में आज भी बिजली की व्यवस्था नहीं है. यहां तक की पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं है. पास के बहने वाले नाले में पहले पानी हुआ करता था, लेकिन वर्तमान में फैक्ट्री का दूषित पानी पहुंचने से वह गंदा हो गया है. इसके अलावा इसमें पानी भी ज्यादा नहीं आ रहा है.

पहले फैक्ट्री की तरफ से यहां पर आने का रास्ता भी शुरू हो गया था, जिससे ट्रैक्टर-ट्राली और चौपहिया वाहन भी आने लग गए थे. लेकिन उसे भी बंद करवा दिया गया है. बारिश के समय पर पूरे रास्ते पर कीचड़ हो जाता है. चट्टानी इलाका होने से काफी खतरा भी रहता है. ऐसे में वाहन नहीं आ सकते हैं. नवरात्रि के दिनों में हमें पूरे 9 दिन-रात रुकना पड़ता है. यह काफी जोखिम भरा है, लेकिन पूजा-अर्चना के लिए हमें यह करना पड़ रहा है.

कोटा: कोटा के पास स्थित जंगलों में माता का एक 400 साल पुराना मंदिर है. यहां भड़किया माता विराजमान हैं. कहा जाता है कि एक जमाने में डकैत माता रानी से आशीर्वाद लेकर ही डकैती करने जाया करते थे. डकैती कर फिर वापस आकर माता की आराधना किया करते थे. साथ ही डकैती की राशि में से भारी भरकम चढ़ावा चढ़ाते थे.

भड़किया माता मंदिर में डकैत भी झुकाते थे सिर, मांगते थे डकैती की अनुमति (ETV Bharat Kota)

चरवाहे के सपने में आकर माता ने रुकवाया था चोरी को: रायपुर निवासी श्रद्धालु शिवप्रसाद मालव का कहना है कि पहले यहां पर एक चरवाहा रहा करता था. उसने अपने पशुओं को भी यहां पर ही रखा हुआ था, जंगल में उन्हें चराने ले जाया करता. एक बार रात के समय उसके पशुओं की चोरी हो गई. तभी माता रानी ने उसके सपने में आकर उसे जानकारी दी. इसके बाद ही इस मंदिर का निर्माण शुरू किया गया. यह इलाका सुनसान होने के चलते यहां पर डकैत भी आकर रुकने लग गए थे. क्योंकि यहां पर छुपने के लिए पर्याप्त जगह मंदिर के नीचे स्थित चट्टान पर थी. मंदिर में माता की दो मूर्तियां बनी हुई हैं. पहले ये मूर्तियां खुले में ही थी. बाद में इनके ऊपर पूरा मंदिर बनाया गया है.

पढ़ें: पहाड़ों को फाड़ कर प्रकट हुईं ललेची माता, यहां होते हैं देवी के तीन रूप के दर्शन, रंग बदलती हैं मूर्तियां

चट्टानों पर हैं डकैतों के निशान: मंदिर की 20 सालों से पूजा करने वाले मुकेश वैष्णव का कहना है कि यहां पर हर व्यक्ति की मांग पूरी होती है. बीमारी से लेकर हर समस्या का निवारण माता के पास है. श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ रही है, पहले यह पूरी तरह से सुनसान इलाका था. पुरानी मान्यता के अनुसार चट्टानों पर कई लोगों के घुटने और पैरों के निशान हैं. बताया जाता है कि पुराने जमाने में जब डकैत यहां पर पूजा-अर्चना माता को प्रसन्न करने के लिए किया करते थे. तभी उनके पैर और घुटने के निशान भी चट्टानों तक आ गए, क्योंकि काफी दिन उन्हें इस अवस्था में रहना पड़ता था.

पढ़ें: यहां माता के घुटनों की होती है पूजा, खीर-पूरी और मांस-मदिरा का भी लगता है भोग - Navratri 2024

फॉरेस्ट एरिया के दाढ़ देवी जंगल के: मंदिर में नियमित आने वाले श्रद्धालु पंकज शर्मा का कहना है कि उनकी तीन पीढ़ी इस मंदिर में लगातार आ रही है. यह मंदिर जहां पर स्थित है, वहीं दो पुराने शिकारगाह भी बने हुए हैं. पंकज का कहना है कि मंदिर के पास एक बड़ा खाल (बड़ा नाला) है. इसमें जंगली जानवर पहले आया करते थे. जिसमें बारिश के समय में जंगल का पूरा पानी भी आता है. यहां पर राजपरिवार के सदस्य पहले शिकार खेलने के लिए आया करते थे. ऐसे में मंदिर के दर्शन के लिए भी आते होंगे. यह मंदिर भी एक बड़े ड्रेनेज के पास स्थित चट्टान पर है. जिस के नीचे भगवान शिव विराजित हैं.

पढ़ें: पुष्कर में यहां गिरी थी सती माता की कलाइयां, स्थानीय लोगों के लिए हैं चामुंडा माता, ये है पौराणिक कथा - SHARDIYA NAVRATRI 2024

भील समाज के लोग मानते हैं कुलदेवी: शिवप्रकाश मालव का कहना है कि वे भड़किया माता मंदिर में 40 साल से नवरात्रि व अन्य दिनों भी दर्शन करने आते हैं. उनके परिवार की मंदिर को लेकर मान्यता भी है. इस मंदिर को भील समाज के लोग अपनी कुलदेवी के रूप में भी मानने लगे हैं. इसके बाद ही यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ गई है. अब ये लोग यहां पर मान्यता पूरी होने पर माता रानी को भोग लगाने भी पहुंचते हैं. पहले यहां बलि देने की भी प्रथा थी. जिसके लिए भी मंदिर में स्थान तय किया हुआ है. हालांकि वर्तमान में बली की परंपरा बंद कर दी गई है.

ना बिजली ना पानी, रात में रुकना भी मुश्किल: मंदिर में एंट्री के लिए भी फॉरेस्ट की चौकी के नजदीक से ही होती है. जहां से करीब डेढ़ किलोमीटर अंदर जाना पड़ता है. मंदिर में आज भी बिजली की व्यवस्था नहीं है. यहां तक की पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं है. पास के बहने वाले नाले में पहले पानी हुआ करता था, लेकिन वर्तमान में फैक्ट्री का दूषित पानी पहुंचने से वह गंदा हो गया है. इसके अलावा इसमें पानी भी ज्यादा नहीं आ रहा है.

पहले फैक्ट्री की तरफ से यहां पर आने का रास्ता भी शुरू हो गया था, जिससे ट्रैक्टर-ट्राली और चौपहिया वाहन भी आने लग गए थे. लेकिन उसे भी बंद करवा दिया गया है. बारिश के समय पर पूरे रास्ते पर कीचड़ हो जाता है. चट्टानी इलाका होने से काफी खतरा भी रहता है. ऐसे में वाहन नहीं आ सकते हैं. नवरात्रि के दिनों में हमें पूरे 9 दिन-रात रुकना पड़ता है. यह काफी जोखिम भरा है, लेकिन पूजा-अर्चना के लिए हमें यह करना पड़ रहा है.

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