भरतपुर: दुनिया भर में हॉकी के जादूगर के रूप में विख्यात मेजर ध्यानचंद का भरतपुर से भी गहरा नाता रहा था. रियासत काल में तत्कालीन महाराज बृजेंद्र सिंह की ओर से भरतपुर में महारानी श्री जया ऑल इंडिया हॉकी टूर्नामेंट आयोजित किया जाता था, जिसमें मेजर ध्यानचंद अपनी टीम के साथ दो बार भरतपुर में खेलने आए थे. भरतपुर के एक राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी शैलेंद्र कुमार को भी मेजर ध्यानचंद से हॉकी का कोचिंग लेने का सौभाग्य मिला.
शिष्य शैलेन्द्र कुमार ने बताया कि मेजर ध्यान चंद का प्रभाव इतना गहरा था कि लोगों को लगता था कि उनकी हॉकी में चुंबक है. जर्मनी के लोग तो उनके गोल रोकने के लिए जादू का सहारा लेते थे. राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर जानते हैं शिष्य शैलेन्द्र कुमार की जुबानी जानते हैं मेजर ध्यानचंद के अनछुए पहलुओं की कहानी.
भरतपुर में आते थे खेलने : शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त एवं राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी शैलेंद्र कुमार ने बताया कि भरतपुर में महाराज बृजेंद्र सिंह महारानी श्री जया ऑल इंडिया हॉकी टूर्नामेंट आयोजित कराया करते थे. आजादी से पहले टूर्नामेंट में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद अपनी झांसी की टीम के साथ करीब दो बार खेलने यहां आए थे. उस समय पूरे देशभर की टीम खेलने के लिए भरतपुर आती थीं. भरतपुर के एमएसजे कॉलेज ग्राउंड में टूर्नामेंट होता था. टीमों के ठहरने की व्यवस्था भी महाराजा बृजेंद्र सिंह की तरफ से ही की जाती थी. विजेता टीम को चांदी की ट्रॉफी प्रदान की जाती थी.
कोचिंग का सौभाग्य : शैलेन्द्र कुमार ने बताया कि वर्ष 1959 में मेजर ध्यान चंद राजस्थान की हॉकी टीम को कोचिंग देने के लिए माउंट आबू आए थे. उसमें राजस्थान की हॉकी टीम को उन्होंने दो महीने का प्रशिक्षण दिया था उसे टीम में मैं खुद (शैलेन्द्र कुमार) भी एक खिलाड़ी के रूप में शामिल हुआ था. शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि मुझे इस बात का गर्व है कि उनके सान्निध्य में दो माह तक प्रशिक्षण का मौका मिला.
हर दिन 7 किमी दौड़, शुद्ध शाकाहारी : शैलेंद्र कुमार ने बताया कि माउंट आबू में जिस समय वह राजस्थान की टीम को प्रशिक्षण दे रहे थे, उस समय वह खुद टीम के साथ हर दिन करीब 7 किलोमीटर दौड़ लगाते थे. उनका जीवन बहुत ही संयमित था. खान-पान पूरी तरह से शुद्ध शाकाहारी था. उन्होंने कभी मांसाहार नहीं किया था.
खड़े रहने के वक्त भी प्रैक्टिस : शैलेंद्र कुमार ने बताया कि मेजर ध्यानचंद खिलाड़ियों से कहते थे कि यदि आप खड़े हैं तो भी हॉकी से बॉल घुमाते रहिए. वो खुद भी कभी खाली खड़े नहीं रहते थे, बल्कि खड़े खड़े हॉकी से प्रैक्टिस करते रहते थे. मेजर ध्यानचंद कहते थे कि जब तक आप पूरी तरह से समर्पित नहीं हो जाएंगे तब तक हॉकी आपके इशारे पर नहीं चलेगी.
जर्मनी के लोग करते थे जादू : शैलेन्द्र कुमार ने बताया कि कोचिंग के दौरान खाली वक्त में खुद मेजर ध्यान चंद कई वाकिए सुनाते थे. वो बताते थे कि जब वो अपनी टीम के साथ जर्मनी खेलने जाते थे तो जर्मनी के लोग उनके गोल रोकने के लिए जादू करते थे, लेकिन वो फिर भी अकेले ही कई कई गोल कर देते. शैलेन्द्र कुमार बताते हैं कि उनकी प्रैक्टिस इतनी जबर्दस्त थी कि बॉल हमेशा उनकी हॉकी से चिपकी रहती थी. लोगों को भ्रम होता था कि कहीं उनकी हॉकी में चुंबक तो नहीं है.
आज हॉकी के हालात खराब : शैलेन्द्र कुमार ने बताया कि मेजर ध्यानचंद का सपना था कि भारत की हॉकी टीम हमेशा दुनिया की नंबर वन टीम बनी रहे, लेकिन आज देश में राष्ट्रीय खेल हॉकी के हालात खराब हैं. ना तो अब प्रशिक्षक ऐसे हैं और ना ही खिलाड़ियों में हॉकी के प्रति वो समर्पण है.