देहरादूनः उत्तराखंड में बच्चों के अधिकारों से जुड़े हुए कानून के क्रियान्वयन को लेकर सोमवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष ने देहरादून में समीक्षा बैठक की. बैठक में तमाम बिंदुओं पर करीब 14 विभागीय अधिकारियों के साथ चर्चा की गई. बैठक के दौरान आयोग को प्रदेश में संचालित हो रहे अवैध मदरसों से जुड़े अधिकारियों की बड़ी कमियां मिली. जिसके बाद आयोग ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को समन भेजने का मन बना लिया है. सभी जिलाधिकारियों को समन भेजकर आयोग दिल्ली में बुलाकर स्पष्टीकरण मांगा जाएगा.
समीक्षा बैठक के दौरान राज्य सरकार की तरफ से बच्चों के लिए संचालित की जा रही योजनाओं की जानकारी भी ली गई. जिसके तहत कोविड काल के दौरान अपने परिजनों को खो चुके बच्चों को आर्थिक सहायता दी जा रही है. इसके साथ ही दिव्यांग बच्चों को भी आर्थिक सहायता दी जा रही है. लिहाजा, राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग अन्य राज्यों में भी इस तरह के योजनाओं की जानकारी देगा. राज्य सरकार 7000 दिव्यांग बच्चों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करा रहा है. जबकि शिक्षा विभाग के पास जो दिव्यांग बच्चों का आंकड़ा है, वो कम है.
ऐसे में निर्देश दिए गए कि दिव्यांग विभाग और स्वास्थ्य विभाग मिलकर फिर से इसकी स्क्रीनिंग करें. ताकि सभी जरूरतमंद बच्चों को योजनाओं का लाभ मिल सके. इसके अलावा शिक्षा विभाग को इस बाबत भी निर्देश दिए गए कि दिव्यांग बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिले. इसके लिए शिक्षा विभाग दिव्यांग बच्चों को या तो स्कूल लाने की व्यवस्था करें या फिर होम टीचिंग की व्यवस्था उपलब्ध कराए. इसके अलावा एड्स से ग्रसित बच्चों की स्क्रीनिंग कराकर उन्हें स्पॉन्सरशिप का लाभ दिया जाए.
उत्तराखंड के मदरसों में बाहर के बच्चे: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने बताया कि सोमवार की सुबह कारगी ग्रांट स्थित मदरसों का औचक निरीक्षण किया. जिसमें यह पता चला कि इन मदरसों में उत्तर प्रदेश और बिहार के बच्चों को रखा गया है और उनको बुनियादी शिक्षा अधिकार से वंचित किया गया है. यही नहीं, निरीक्षण के दौरान एक मदरसा ऐसा भी मिला जो बच्चों से फीस लेकर पढ़ा रहा था. जांच के दौरान मदरसों की ओर से बताया गया कि एक स्थानीय स्कूल के साथ टायप कर बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. ये टायप जोकि शिक्षा के अधिकार की परिधि के बाहर की वस्तु है. जिससे स्पष्ट है कि ये शिक्षा विभाग के किसी न किसी स्तर पर गड़बड़ी है. भ्रष्टाचार इसका कारण हो सकता है, जिसके चलते इस तरह के टायप चल रहे हैं.
अवैध मदरसे संचालित: साथ ही कहा कि मदरसों में पढ़ रहे बच्चों से बातचीत भी की गई. बच्चों ने मुफ्ती, मौलवी और काजी बनने की बात कही. इस तरह का व्यवहार अल्पसंख्यक बच्चों के साथ किया जाना खेदजनक है. लिहाजा इस संबंध में कार्रवाई किए जाने को लेकर मौखिक निर्देश दिए गए हैं. जल्द ही नोटिस भी जारी किया जाएगा. ये तीनों मदरसे अवैध रूप से संचालित हो रहे थे, जिनका विभाग को कोई जानकारी नहीं थी. साथ ही बताया कि एक मदरसे में अन्य राज्यों के 12 बच्चे और दूसरे मदरसे में अन्य राज्यों के 9 बच्चे रखे गए हैं. लिहाजा, दिल्ली वापस जाने के बाद उत्तराखंड सरकार को विधिवत नोटिस दिया जाएगा. ताकि अन्य राज्यों से लाकर इन मदरसों में रखे गए बच्चों को वापस उनके घर भेजा जा सके.
मदरसों में हिंदू धर्म के बच्चे: शिक्षा विभाग और अल्पसंख्यक विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान कुछ खामियां भी निकाल कर सामने आई हैं. राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त जो मदरसे संचालित हो रहे हैं, उनमें से कुछ मदरसों में हिंदू बच्चों या अन्य मुस्लिम धर्म के बच्चों के भी पढ़ने की सूचना मिली है. पहले जब इसकी जानकारी मिली थी तो उस दौरान 749 बच्चों की जानकारी थी. लिहाजा, इस बार जब समीक्षा की गई तो 196 बच्चों की जानकारी मिली, जो गैर मुस्लिम है, इन मदरसों में पढ़ते हैं. भारत के संविधान की धारा 28 (3) प्रावधान कहता है कि बच्चों के माता-पिता के लिखित अनुमति के बिना किसी दूसरे धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती. लेकिन उत्तराखंड के मदरसों में शिक्षा दी जा रही है. जबकि प्रदेश में मदरसा बोर्ड का गठन इस्लामी धार्मिक शिक्षा देने के उद्देश्य से एक कानून के जरिए किया गया था.
ऐसे में हिंदू बच्चों को वहां पढ़ाया जाना एक आपराधिक षड्यंत्र की तरह प्रतीत होता है. इसमें शिक्षा विभाग और अल्पसंख्यक विभाग दोनों बराबर के भागीदारी हैं, जिसके चलते दोनों विभागों को आवश्यक निर्देश दिए गए हैं. साथ ही कहा कि ये अवैध है. लिहाजा, ऐसे जिला शिक्षा अधिकारियों या फिर राज्य स्तर के अगर कोई अधिकारी संलिप्त है तो उसके विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए. साथ ही अगर इसमें कोई अपराधिक षड्यंत्र है तो उस दृष्टि कोण से भी जांच कर कार्रवाई की जानी चाहिए.
जिलाधिकारियों पर आरोप: अल्पसंख्यक विभाग की ओर से जानकारी दी गई कि प्रदेश में अवैध रूप से संचालित मदरसों की मैपिंग करने के लिए जिलाधिकारी सहयोग नहीं कर रहे हैं. ऐसे में राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग सीपीसीआर एक्ट की धारा 13 में दिए गए शक्तियों का प्रयोग करते हुए उत्तराखंड के सभी जिलाधिकारियों को समन जारी कर दिल्ली बुलाया जाएगा और इस मामले में स्पष्टीकरण मांगा जाएगा. इसके अलावा अल्पसंख्यक विभाग को 15 दिन का समय दिया गया है कि ऐसे बच्चे जिनके मां-बाप के लिखित सहमति के बिना अन्य धर्म की तालीम दी जा रही है. उस व्यवस्था को ठीक करें. अन्यथा 15 दिन के बाद पुलिस प्रशासन को कार्रवाई के लिए लिखा जाएगा.
आयोग ने कही चाइल्ड ट्रैफिकिंग की बात: प्रदेश में जितने भी अवैध रूप से मदरसे संचालित हो रहे हैं उसको बंद करना होगा और सभी बच्चों को शिक्षा के अधिकार के तहत शिक्षा उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है. जिन बच्चों को स्कूल में ना भेजकर सिर्फ मदरसों में पढ़ाया जा रहा है. उन सभी बच्चों को स्कूल में भेजना अत्यंत आवश्यक है. दूसरे राज्यों के बच्चों को उत्तराखंड के मदरसों में रखना ट्रैफिकिंग जैसा क्राइम है. इसलिए इन सभी पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए. प्रदेश में 400 से अधिक अवैध मदरसे संचालित हो रहे हैं. लिहाजा, प्रदेश में संचालित सभी अवैध मदरसों की मैपिंग होनी चाहिए. इसके लिए 10 जून तक का समय दिया गया है. इसके बाद इन सभी बच्चों को स्कूल में दाखिला कराना आयोग की प्राथमिकता होगी.
मदरसा बोर्ड ने किया खंडन: आयोग के आरोपों पर उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी ने कहा कि मदरसों में किसी भी राज्य के बच्चे पढ़ सकते हैं. क्योंकि जो बच्चे मदरसों में पढ़ रहे हैं उनके अभिभावक भी यहीं होंगे. ऐसे में अन्य राज्यों के बच्चों के तस्करी जैसे मामले की कोई बात ही नहीं है. अगर अन्य राज्यों के बच्चे मदरसों में नहीं पढ़ सकते हैं तो इसकी जिम्मेदारी जिलाधिकारियों की है. साथ ही कहा कि उत्तराखंड में अवैध मदरसों पर लगातार कार्रवाई की जा रही है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रदेश में संचालित अवैध मदरसों के मैपिंग की बात कह रहे हैं, जिसका वो भी समर्थन करते हैं. अगर अवैध मदरसों की मैपिंग में अगर कोई अधिकारी लापरवाही बरत रहा है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.
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