नर्मदापुरम. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के घने जंगलों को आग से बचाने 160 साल पहले बनाई हुई एशिया की सबसे पुरानी और पहली बनाई फायर लाइन आज भी सुरक्षित है. इसी फायर लाइन से आज सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के खूबसूरत जंगलों की रक्षा की जा रही है. इस फायर लाइन का निर्माण सन 1864 में कर्नल पियर्सन ने एसटीआर के बोरी रेंज में करवाया था. इसके बाद 1865 में इसे देश का पहला रिजर्व फारेस्ट एरिया घोषित किया गया था.
क्या होती है फायर लाइन?
जंगल में फायर लाइन एक चौड़े रास्ते या बड़ी पगडंडी को कहते हैं, जो आग रोकने के लिए बनाई जाती है. इस फायर लाइन के दो बड़ी फायदे होते हैं, पहला ये कि जंगल में आग लगने के दौरान ये एक हिस्से से दूसरे हिस्से में आग फैलने नहीं देती और दूसरा ये कि इसी फायर लाइन पर चलते हुए वन विभाग का अमला घने जंगलों के बीच आग बुझाने पहुंच जाता है.
आज भी इस तकनीक को देखने आते हैं विदेशी
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में यू तो देश-विदेश से लोग बाघों और यहां की जैव विविधता को देखने आते ही हैं. पर यहां जंगल के बीच बना 160 साल पुराना फायर फाइटिंग सिस्टम भी आकर्षण का केंद्र है. ये लाइन एशिया की सबसे पहली फायर लाइन है. इस फायर लाइन को देखने आज भी विदेशी वन अमला विजिट कर इन फायर लाइन को देखकर सीखने की कोशिश कर रहा है. प्रबंधन के अनुसार जर्मनी से आई हुई टीम ने भी यहां आकर करीब एक माह पहले भ्रमण किया और इसके बारे में बारीकी से जाना. यह आज भी एसटीआर के करीब 2133 वर्ग किलोमीटर एरिया में यह फैली हुई है साथ ही सुरक्षित है. इस फायर लाइन के उपयोग से एसटीआर कर्मी गर्मी के साथ साथ वर्ष भर गश्त करते हैं और एसटीआर के वन्य जीवों की सुरक्षा करते हैं.
इस उद्देश्य से बनाई गई फायर लाइन
फील्ड डायरेक्टर एल कृष्णमूर्ति बताते हैं, '' सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में बोरी जंगल के अंदर एशिया का सबसे पहली फायर लाइन बनाई गई थी. 1864 में यह फायर लाइन बनाई गई थी जिसे कर्नल पियर्सन ने तैयार कराया था. यह एशिया की सबसे पहली अग्नि रेखा थी. इसका उद्देश्य था कि आग जंगल में ना लगे और यदि लगती है, तो फायर लाइन के माध्यम से उसे नियंत्रित किया जा सके.''