नालंदा: गरीबी हर मुसीबत की जड़ है. गुरबत के दिन हर किसी को तोड़कर रख देते हैं ऐसे में निशाना लगाने की बात सोचना भी मुश्किल है लेकिन बिहार के अभिनव बिन्द्रा उत्तम कुमार अपने लक्ष्य से नहीं भटके. गरीबी में उनका निशाना अचूक है और प्रैक्टिस से उसे हर दिन संवार रहे हैं. उत्तम कुमार एक ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर निशानेबाजी में मेडल जीते हैं. ये कई बार बिहार को रिप्रेजेन्ट भी कर चुके हैं. बावजूद इसके आज भी जूझ रहे हैं.
बकरी चरा रहे ये नेशनल प्लेयर: ऐसे प्रतिभावन खिलाड़ी के लिए सरकार 'मेडल लाओ इनाम पाओ' की योजना चला रही है लेकिन उसका लाभ भी इनको मिलता नहीं दिख रहा है. फिर भी ये अपने लक्ष्य से भटके नहीं. बकरी चराकर शूटिंग के भारी भरकम खर्च को वहन कर रहे हैं और अपने परिवार की जीविका चला रहे हैं.
गरीबी में भी अचूक है 'लक्ष्य': आप सोच रहे हैं कि एक नेशनल खिलाड़ी बकरी चरा रहा है तो ये सक्सेस कैसे? सवाल वाजिब है लेकिन उत्तम कुमार बिना सरकारी मदद के खुद की मेहनत की बदौलत अपने लक्ष्य को पाने के लिए जी जान लगा रहे हैं. कोई दूसरा होता तो व्यवस्था को, सरकार को कोसता लेकिन इनके चेहरे पर ज़रा सी शिकन नहीं है. उन्हें विश्वास है कि ये एक दिन अपने लक्ष्य पर, ओलंपिक में गोल्ड पर जरूर निशाना लगाएंगे. लेकिन उनके दिल में एक कसक है जो अनुभव के रूप में सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं.
''सरकार जितना खर्च मेडल जीतकर लौटने के बाद खिलाड़ियों पर करती है, अगर उसका एक हिस्सा भी पहले कर दे तो आज न जाने कितने प्रतिभागी देश और बिहार के लिए खेल रहे होते.''- उत्तम कुमार, नेशनल शूटर
पशुपालन की बदौलत कर रहे ट्रेनिंग: आज बकरी चरा रहे हैं, मुर्गी को दाना डाल रहे हैं, गायों को सानी-पानी कर रहे हैं जो समय मिलता है उसमें से ये दो घंटा अपनी प्रैक्टिस के लिए निकालते हैं. पशुपालन के भरोसे ही उत्तम कुमार अपनी प्रैक्टिस को कन्टीन्यू कर पा रहे हैं. उन्होंने बताया कि पशुओं को खिलाने में ही 50 हजार रुपए महीने का खर्च आता है. साथ में अपनी प्रैक्टिस के लिए फंड भी इन्ही के भरोसे जुगाड़ते हैं.
हौसले से नहीं हारी हिम्मत: बिहार में एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं हैं लेकिन सिस्टम की खामी की वजह से ये प्रतिभाएं राष्ट्रीय फलक पर निखर कर सामने नहीं आ पाती. ये ऐसे गेम्स हैं जब तक प्रतिभागी गोल्ड नहीं लाएगा तब तक देश और दुनिया का ध्यान इनकी ओर नहीं जाता. लेकिन उत्तम कुमार उस लक्ष्य को पाने के लिए दोगुनी कड़ी मेहनत कर रहे हैं, पहला पेट पालने के लिए दूसरा अपने भीतर के 'प्लेयर' की ट्रेनिंग के लिए.
कई काम छोड़े लेकिन निशानेबाजी नहीं: मुफलिसी में जिंदगी जीते हुए भी कैरियर शूटिंग के क्षेत्र में ही बनाया. पहले उन्होंने पढ़ाई की, सायकिल का पंचर बनाया, नाई की दुकान चलाई और अब लोन लेकर पशुपालन में किस्मत आजमा रहे हैं. इन सबमें एक बात कॉमन है, उत्तम संघर्ष कर रहे हैं. कई काम छोड़े लेकिन गरीबी और संघर्ष के बावजूद उन्होंने 'निशानेबाजी' को नहीं छोड़ा.
''मैने पंचर की दुकान, नाई की दुकान चलाई. फिर मैने बकरी और मुर्गी फार्म खोला. लेकिन कोरोना आ गया. मैं उस दौरान पशुओं की सेवा करने लगा. इसी ने मुझे संभाला. अब ये काम करते हुए भी मैं ट्रेनिंग के लिए 2 घंटा निकालता हूं और प्रैक्टिस करता हूं.''- उत्तम कुमार, नेशनल शूटर
किराए की जमीन पर खोला बकरी फार्म: पटना के रहने वाले उत्तम कुमार नालंदा को नहीं छोड़ना चाहते. नौकरी मिली नहीं तो उन्होंने पशुपालन को जीविका का जरिया बनाया. घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं रहने की वजह से हरनौत प्रखंड के कल्याण बिगहा मार्ग के समनहुआ गांव के पास 12 कट्टा जमीन 10 हजार रुपए प्रतिमाह पर लेकर पशु पालन के साथ चिकेन की दुकान चलाना शुरू किया. इनके देसी स्टाइल के फार्म हाउस में 5 गाय, 50 बकरियां, कई मुर्गा-मुर्गी, बटेर, कबूतर, बत्तख, हंस और 7 डॉग्स को पाल रहे हैं.
पशुपालन को बनाया फायदे का धंधा: पशुपालन में जब फायदा होने लगा तो उन्होंने एक स्टाफ रखा. पिता और भाई दिल्ली में मजदूरी करते थे तो उन्होंने दोनों को अपने पास बुला लिया. पशुपालन की ओर दिलचस्पी की वजह से उन्होंने इसे अपनाया. उत्तम कुमार ने बताया कि एक दिन +2 की पढ़ाई करने के बाद नौकरी की तलाश में कृषि विज्ञान केंद्र नूरसराय गये तो वहां के पशु चिकित्सक डॉ. संजीव रंजन से मुलाकात के बाद इस क्षेत्र में आने की रुचि जगी.
'निशानेबाजी' की जिद से जिंदादिल: लौटकर आए तो उत्तम ने छोटे से पूंजी से बकरी और मुर्गी पालन शुरू किया. जिसके लिए हर महीने 50 हज़ार रुपए ख़र्च होते हैं. उत्तम कुमार ने समेकित कृषि प्रणाली का एक नमूना पेश किया है. यही नहीं स्पोर्ट्स कोटे से दारोगा बहाली में सारा काग़ज़ी प्रक्रिया पूरा होने के बाद नौकरी भी नहीं मिली. कई महीनों तक मुकदमा लड़ने के बाद कुछ फायदा नहीं होता देख 2020 में मुकदमा भी छोड़ दिया.
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