वाराणसी: बनारस के जैतपुरा इलाके में स्थित नाग कुंआ नागलोक का वह रास्ता है. जहां से सांपों के राजा कारकोटक अपने लोक को वापस गए थे. मान्यता है कि यहां पर गहरे पानी के अंदर विराजमान शिवलिंग के नीचे नागलोक का रास्ता जाता है और पूरे देश में एक यही स्थान है जहां कुंडली में कालसर्प दोष का पूजन विधि विधान संपन्न होता है.
नाग कुंआ के महंत आचार्य कुंदन पांडेय बताते हैं कि इस प्राचीन नागकूप को धर्म ग्रंथों में कारकोटक वापी के रूप में पूजा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि अनादि काल में राजा जनमेजय ने एक अनुष्ठान शुरू किया, जिसके जरिए धरती से सांपों का खत्मा हो जाए, उस वक्त सांपों के राजा कारकोटक काशी पहुंचे और इसी स्थान से वह नागलोक को वापस गए थे, ताकि उनका जीवन बच सके और सांपों को भी बचाया जा सके.
उसके बाद महर्षि पतंजलि ने अपने योग कर्म भूमि के रूप में इस स्थान को ही चुना और यहीं पर रहकर उन्होंने सिद्धियां प्राप्त की. उनके शिष्य महर्षि पाणिनि भी यहीं पर रहते थे. जिस वजह से इस स्थान को छोटे गुरु बड़े गुरु के स्थान के रूप में पूजा जाता है. नाग पंचमी पर भी छोटे गुरु बड़े गुरु का पूजन होता है.
आचार्य कुंदन बताते हैं कि यह स्थान कब से है इसका वर्णन स्कंदपुराण में किया गया है. जिसके मुताबिक काशी के इस पवित्र स्थान के जल के छिड़काव मात्र से ही किसी भी तरह के विषैले जंतु का डर खत्म हो जाता है.
सबसे बड़ी बात यह है कि पूरे देश में कालसर्प योग पूजन के लिए स्थान का विशेष महत्व है. कुंडली में कालसर्प योग का होना अपने आप में एक बड़ी त्रुटि माना जाता है और इसका नुकसान भी बहुत होता है. जिसके लिए यहां विशेष पूजन संपन्न होता है. लोग दूर-दूर से यहां पर आते हैं. इस कुंड में स्नान करते हैं और पूजन करते हैं.
ऐसी भी मान्यता है कि इस कुंड में यदि कालसर्प योग पीड़ित व्यक्ति की परछाई दिख जाए तो उसका असर कम हो जाता है. इस वजह से यह स्थान बेहद महत्वपूर्ण है और लोग दूर-दूर से यहां पहुंच कर पूजन पाठ संपन्न करते हैं.
यहां पर आने वाले लोगों का भी मानना है कि उनके जीवन में इस स्थान पर आने के बाद बहुत से बदलाव हुए हैं. जिसकी वजह से यहां का पानी उनके जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. फिलहाल चारों तरफ से हरे रंग के पानी से भरा यह कुंड साल में एक बार नाग पंचमी के दो दिन बाद साफ सफाई के लिए जब आम भक्तों के दर्शनार्थ खाली किया जाता है. तब असली रास्ते और असली शिवलिंग के दर्शन होते हैं.
लगभग 35 से 40 फुट की गहराई में पानी के अंदर महर्षि पतंजलि द्वारा स्थापित शिवलिंग आज भी विराजमान है जो साल में एक दिन ही दर्शन के लिए उपलब्ध होता है. इसी शिवलिंग के नीचे मौजूद एक छोटा सा रास्ता जो पाताल लोक नाग लोक को जाता है, उसके दर्शन भी साल में एक बार ही हो पाते हैं.
ये भी पढ़ेंः काशी के श्मशानों पर शवदाह के लिए वेटिंग, अर्थी की कतारें लगीं, घंटों में नंबर आने पर शवदाह....ये वजह आई सामने