पटनाः बिहार में 19 अप्रैल को प्रथम चरण में चुनाव है. हर साल वोटिंग के बाद मतदाता की उंगली में स्याही लगायी जाती है ताकि वे दोबारा वोट नहीं गिरा पाएं. लेकिन क्या आप जानते हैं वोटिंग के बाद जो स्याही आपकी उंगली में लगाई जाती है वह मिटती क्यों नहीं है? वोटर की उंगली पर लगी स्याही इस बात का प्रतीक होता है कि उसने अपना वोट किया है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ? लोग अपनी बाईं हाथ के तर्जनी उंगली पर लगी स्याही के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं. लोकतंत्र के महापर्व में शामिल होने का जश्न मनाते हैं. लेकिन चुनाव के बाद जब हाथों पर लगी स्याही मिटाने जाते हैं तो मिटती नहीं है, क्योंकि यह अमिट स्याही होती है. इसका क्या कारण है? इसके बारे में जानने के लिए ईटीवी भारत ने विशेषज्ञ से बात की.
2 सेकेंड में चिपक जाती है स्याहीः रसायन शास्त्र के विशेषज्ञ व पटना के केमिस्ट्री शिक्षक आशुतोष कुमार झा ने इसके बारे में विशेष जानकारी दी. उन्होंने बताया कि डबल वोटिंग को रोकने के लिए चुनाव के दौरान मतदाताओं की उंगलियों पर लगाई जाने वाली अमिट स्याही में सिल्वर नाइट्रेट होता है. इससे त्वचा पर दाग पड़ जाता है. जिसे धोना बहुत मुश्किल होता है. यह स्याही 2 सेकंड में ही स्किन से चिपक जाता है.
"स्याही को त्वचा पर लगाया जाता है तो उसमें मौजूद सिल्वर नाइट्रेट त्वचा पर मौजूद नमक के साथ क्रिया करके सिल्वर क्लोराइड बनाता है. यह त्वचा से चिपक जाता है और ठंडे या गर्म पानी, अल्कोहल, ब्लीच, नेल पॉलिश रिमूवर आदि में घुलनशील नहीं होता है. पुरानी त्वचा कोशिकाएं मर जाती हैं और नई कोशिकाओं में बदलती हैं तो स्याही अपने आप गायब हो जाती है." -आशुतोष कुमार झा, रसायन शास्त्र के विशेषज्ञ
शिकायत के बाद निकला समाधानः दरअसल, 1951-52 में देश में पहली बार आम चुनाव हुए. कई लोगों ने शिकायत की थि कि एक व्यक्ति ने कई बार मतदान किया. कई लोगों ने यह शिकायत की थी कि उनके नाम पर पूर्व में कोई मतदान कर चुका है. इसके बाद चुनाव आयोग ने इसका समाधान निकालते हुए इसका समाधान निकाला. एक ऐसा निशान देने का सोचा इससे पता चल सके कि वह पूर्व में वोट डाल चुका है. लेकिन इसके पीछे चुनाव आयोग की मुश्किल यह थी कि स्याही ऐसी होनी चाहिए जो अमिट हो अर्थात कई दिनों तक नहीं मिटे.
यह कंपनी बनाती है स्याहीः इसके बाद चुनाव आयोग ने नेशनल फिजिकल लैबोरेट्री आफ इंडिया से संपर्क किया. लेबोरेटरी के साइंटिस्ट ने एक ऐसे केमिकल का फार्मूला तैयार किया जिससे तैयार होने वाली स्याही अमिट रहे. जिसे ना तो पानी अथवा किसी केमिकल से हटाया जा सकता था. इसके बाद इस फार्मूले के साथ चुनाव आयोग ने कर्नाटक सरकार के उपक्रम मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड को यह स्याही बनाने का ऑर्डर दिया.
1962 से हो रहा प्रयोगः साल 1962 के लोकसभा आम निर्वाचन से लगातार इस पराबैंगनी अमिट स्याही का प्रयोग हो रहा है. आज के समय में भारत के ही चुनाव में नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड कंपनी चुनाव संपन्न कराने के लिए स्याही की सप्लाई करती है.
देश में कहीं भी चुनाव हो यही स्याही लगायी जातीः इस अमिट स्याही का फार्मूला कंपनी ने आज तक सार्वजनिक नहीं किया है. देश में कोई और कंपनी यह अमिट स्याही नहीं बनाती है. देश में कहीं भी चुनाव होते हैं तो चुनाव आयोग यहीं से स्याही का ऑर्डर देकर स्याही उपलब्ध कराते हैं.
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