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उत्तराखंड में मिली दो अद्भुत गुफाएं, प्राचीन सुरंग और खंडहरों में छुपा है 'रहस्य' - GOBRARI VILLAGE MYSTERIOUS CAVE

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के गोबराडी में ऐतिहासिक और रहस्यमयी स्थल की खोज, सुरंगों और खंडहरों की संरचना है अदभुत, समेटे हुए हैं इतिहास

Gobrari Village Mysterious Cave
गोबराडी में रहस्यमयी गुफा (फोटो सोर्स- Tarun Mehra)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 13, 2025, 4:49 PM IST

Updated : Feb 13, 2025, 4:57 PM IST

प्रदीप महरा, बेरीनाग: उत्तराखंड के सीमांत पिथौरागढ़ जिले के मुवानी का गोबराडी क्षेत्र इन दिनों चर्चाओं में है. यहां एक रहस्यमयी स्थल की खोज हुई है. ये खोज यहां के स्थानीय तरुण मेहरा ने की है. यह स्थल न केवल ऐतिहासिक धरोहरों और गहन रहस्यों से भरा हुआ है, बल्कि यहां की संरचनाएं, सुरंगें और खंडहर अतीत की एक अनकही कहानी को बयां कर रहा है. इस खोज ने इतिहास के नए अध्याय खोलने की संभावना को जन्म दिया है. जो न केवल इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यटन के क्षेत्र में भी स्थानीय विकास का एक प्रमुख स्तम्भ बन सकती है.

रहस्यमयी गुफा की खोज की कहानी: चौकोड़ी के रहने वाले 42 वर्षीय तरुण मेहरा पिथौरागढ़ जिले में एक साल के भीतर दो रहस्यमयी गुफाएं खोज चुके हैं, जिसमें गोबराडी का यह स्थल भी शामिल है. तरुण मेहरा ने बताया कि थल और मुवानी के बीच बसे गोबराड़ी में एक रहस्यमयी स्थल है जहां कई सुरंगें, खंडहर और पुरानी दीवारें मौजूद हैं. ये समय की परतों में दबे एक भव्य इतिहास का संकेत देती हैं.

Gobrari Village Mysterious Cave
गोबराडी में रहस्यमयी स्थल (फोटो सोर्स- Tarun Mehra)

तरुण मेहरा ने बताया कि ग्रामीणों ने उन्हें उस स्थल के बारे में कुछ कहानियां सुनाई थीं. इन कहानियों में एक राजा का जिक्र था जिसने सुरंग और किला बनाया था. इस कहानी को सुनकर उनकी जिज्ञासा जागी और उन्होंने इस रहस्यमयी स्थल को उजागर करने की ठानी. इसके लिए उन्होंने ग्रामीणों से संपर्क साधा.

एक वरिष्ठ ग्रामीण रतन राम ने उन्हें इस स्थल का रास्ता दिखाया. हालांकि, ग्रामीण ने सुरंगों के अंदर जाने से इनकार कर दिया लेकिन उन्होंने यहां एक पीले रंग का दोमुंहा सांप देखने की बात कही, जो एक विशाल सुनहरे पत्थर के चारों ओर लिपटा रहता था. इस तरह की अन्य किवदंतियां और कहानियां भी इस जगह को लेकर काफी प्रचलित थी.

इसके बाद तरुण और उनकी टीम मौके पर पहुंची. जहां अन्य ग्रामीण मोहन सिंह कन्याल ने तरुण मेहरा को पहली बार इस ऐतिहासिक स्थल को दिखाया और उसकी जानकारी दी. जो इस खोज का एक बड़ा आधार बना.

सुरंगों और खंडहरों की ऐसी है संरचना: वहीं, तरुण मेहरा जब तमाम उपकरणों के साथ रस्सियों से उतरकर गुफा तक पहुंचे तो वो रहस्यमयी जगह को देखकर हैरान रह गए. यहां कई सुरंगें और खंडहर मिले. उन्होंने बताया कि यहां मौजूद सुरंगें अत्यधिक रहस्यमयी हैं. इनमें से कुछ बंद हैं, जबकि कुछ का अंत अज्ञात है. यहां सिर्फ एक घर के अवशेष नहीं, बल्कि कई मकानों के खंडहर देखने को मिलते हैं, जो यह संकेत देते हैं कि यह कभी एक बड़ा बस्ती क्षेत्र रहा होगा. पहाड़ों पर फैलीं दीवारें और संरचनाएं इस बात का संकेत देती हैं कि यह स्थान किसी समय एक किला रहा होगा.

Gobrari Village Mysterious Cave
प्राचीन सुरंग प्रणाली की खोज (फोटो सोर्स- Tarun Mehra)

ऐसी हो सकती है ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: ऐसा माना जाता है कि इस तरह की संरचनाएं कत्यूरी राजाओं और गोरखाओं के शासनकाल के दौरान बनाई गई थीं. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस क्षेत्र को गोरखाओं ने 1804-1825 के बीच अंग्रेजों के पहाड़ों पर चढ़ाई के समय रणनीतिक कारणों से बनाया हो सकता है. यहां शिवालय और छिपे हुए खजाने की संभावना भी जताई जा रही है, जो इस स्थान के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को और बढ़ा देता है.

स्थानीय लोगों की भूमिका और कहानियां: स्थानीय लोगों के अनुसार, यह स्थान एक 'भूमिगत किला' था. यहां छुपे खजाने और एक प्राचीन शिवालय के होने की कहानियां इस स्थल को और ज्यादा रोमांचक बनाती हैं. रतन राम और अन्य बुजुर्गों का योगदान महत्वपूर्ण है, जिन्होंने तरुण मेहरा को इस रहस्यमयी स्थल के बारे में जानकारी दी. सुरंगों के अंदर जाने की हिम्मत कोई नहीं कर पाया, लेकिन स्थानीय लोगों का विश्वास है कि यह क्षेत्र गोरखा सेना के समय का है.

पर्यटन की अपार संभावनाएं-

  • पर्यटन स्थल: इस ऐतिहासिक और रहस्यमयी स्थल को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है.
  • साहसिक पर्यटन: यह स्थान साहसिक पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण बन सकता है. रॉक क्लाइंबिंग और ट्रेकिंग पहाड़ों एवं खंडहरों के आसपास ट्रेकिंग व चढ़ाई के अवसर उपलब्ध हैं.
    जल क्रीड़ा: इस स्थल के आसपास की जल धाराएं और झरने जल क्रीड़ा के लिए आदर्श स्थान बन सकते हैं.
  • वन्यजीव सफारी: इस स्थल के आसपास के जंगलों में वन्यजीव सफारी और पक्षी दर्शन के अवसर भी हैं.
  • ग्रामीण पर्यटन: स्थानीय गांवों में 'होमस्टे' और गांव भ्रमण जैसे कार्यक्रम पर्यटकों को यहां की संस्कृति और जीवनशैली से परिचित करा सकते हैं.
  • सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन: शिवालय और मंदिर धार्मिक पर्यटकों के लिए यह स्थान विशेष आकर्षण का केंद्र बन सकता है. स्थानीय संस्कृति और लोक कथाएं पर्यटकों को स्थानीय लोक कथाओं और इतिहास से जोड़ना इस स्थान को और भी खास बना सकता है.

सरकार और पुरातत्व विभाग की भूमिका: तरुण मेहरा कहते हैं सरकार और पुरातत्व विभाग को इस स्थल की विस्तृत जांच एवं संरक्षण के लिए कदम उठाने की जरूरत है. स्थल का वैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए. जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सुरंगों और संरचनाओं का ऐतिहासिक महत्व क्या है?

तरुण मेहरा बताते हैं कि पर्यटन के लिए बुनियादी ढांचे का विकास, सड़क, ट्रांसपोर्ट और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं. स्थानीय समुदायों की भागीदारी इस क्षेत्र के विकास में स्थानीय लोगों को शामिल किया जाए ताकि, उनकी आजीविका में भी सुधार हो. थल-मुवानी का यह रहस्यमयी स्थल इतिहास, संस्कृति, और रोमांच का अद्वितीय संगम है. यह न केवल उत्तराखंड के पर्यटन को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है, बल्कि यह हमारे इतिहास के अनछुए पहलुओं को उजागर करने का भी एक महत्वपूर्ण जरिया बन सकता है.

Gobrari Village Mysterious Cave
रहस्यमयी गुफा तक पहुंचने की कोशिश (फोटो सोर्स- Tarun Mehra)

इस स्थल को लेकर सरकार, पुरातत्व विभाग और स्थानीय समुदायों को मिलकर काम करना चाहिए. ताकि, इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सके. इस तरह के कदम से अपनी विरासत को संरक्षित करने में मदद मिलेगी. बल्कि इसे वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का अवसर भी मिलेगा. पिथौरागढ़ जिले में एक साल के भीतर दो रहस्यमयी गुफा खोजना पर्यटन के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा.

बेरीनाग में भी तरुण ने खोजी हजारों साल पुरानी गुफा: बेरीनाग नगर में महाविद्यालय के पास भी प्रागैतिहासिक काल की गुफा मिली है. इस गुफा में पत्थरों पर शैल चित्र भी बने मिले. शैलचित्र में मानव आकृतियां भी बनी हुई हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. चंद्र सिंह चौहान की मानें तो ये गुफा 4000-6000 साल पुरानी हो सकती है.

दरअसल, इसी तरह की आकृति वाली गुफा साल 1965 में भी पाई गई थी. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी चंद्र सिंह चौहान ने बताया कि उन्हें नई खोजी गई गुफा की दीवारों पर बने शैल चित्रों की तस्वीरें मिलीं हैं. उन्होंने कहा कि शैलचित्रों के बारे में ज्यादा जानकारी इकट्ठा करने के लिए जल्द ही एक टीम गुफा का दौरा करने जाएगी.

बेरीनाग में मिली गुफा 6 हजार साल पुरानी बताई जा रही है. इस गुफा की दीवारों पर आकृतियां बनाई गई हैं. आकृति में मानव श्रृंखला दिखाई दे रही है. गुफा और शैलचित्रों के बारे में जानकारी देते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारियों ने बताया कि इस गुफा की खोज एक महत्वपूर्ण खोज है. क्योंकि, इसमें शैलचित्र हैं, जो 4000 से 6000 साल से ज्यादा पुराने प्रतीत हो रहे हैं.

Gobrari Village Mysterious Cave
बेरीनाग में मिले गुफा की दीवारों पर बने शैल चित्र (फोटो सोर्स- Tarun Mehra)

गुफा की खोज के बारे में तरुण मेहरा ने बताया कि शैलचित्रों में इंसानों की आकृति के साथ नीचे जंगली जानवरों का चित्र भी बना है. शैल चित्र में जानवरों की संख्या संख्या 11 है. उन्होंने बताया कि गुफा के अंदर बड़ी जगह की होने से संकेत मिलता है कि प्राचीन मानव संभवतः गुफा को अपने रहने के घर की तरह इस्तेमाल करते थे.

निरीक्षण के लिए पहुंची चार सदस्यीय टीम: क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. चंद्र सिंह चौहान के नेतृत्व में गोबराडी में मिली गुफा को देखने के लिए चार सदस्यीय टीम निरीक्षण के लिए पहुंची. निरीक्षण के बाद डॉ. चौहान ने बताया कि कत्यूरी शासनकाल के दौरान इस स्थल का प्रयोग सैन्य मोर्चा के रूप में किया जाता होगा.

चारों तरफ बहने वाली नदी के बीच ऊंचाई पर स्थित इस स्थल से चारों तरफ नजर जाती है. इससे पूर्व बेरीनाग में मिली गुफा को भी पुरातत्व विभाग के अधिकारी निरीक्षण कर चुके हैं. गुफा के बारे में जानकारियां जुटाई जा रही है.

कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत ने भी लिया था बेरीनाग गुफा का संज्ञान: बेरीनाग में मिली गुफा का संज्ञान कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत ने भी लिया था. उन्होंने खुद इसका निरीक्षण करने की बात कही थी. पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग को गुफा को पर्यटन से जोड़ने के निर्देश दिए गए हैं.

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प्रदीप महरा, बेरीनाग: उत्तराखंड के सीमांत पिथौरागढ़ जिले के मुवानी का गोबराडी क्षेत्र इन दिनों चर्चाओं में है. यहां एक रहस्यमयी स्थल की खोज हुई है. ये खोज यहां के स्थानीय तरुण मेहरा ने की है. यह स्थल न केवल ऐतिहासिक धरोहरों और गहन रहस्यों से भरा हुआ है, बल्कि यहां की संरचनाएं, सुरंगें और खंडहर अतीत की एक अनकही कहानी को बयां कर रहा है. इस खोज ने इतिहास के नए अध्याय खोलने की संभावना को जन्म दिया है. जो न केवल इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यटन के क्षेत्र में भी स्थानीय विकास का एक प्रमुख स्तम्भ बन सकती है.

रहस्यमयी गुफा की खोज की कहानी: चौकोड़ी के रहने वाले 42 वर्षीय तरुण मेहरा पिथौरागढ़ जिले में एक साल के भीतर दो रहस्यमयी गुफाएं खोज चुके हैं, जिसमें गोबराडी का यह स्थल भी शामिल है. तरुण मेहरा ने बताया कि थल और मुवानी के बीच बसे गोबराड़ी में एक रहस्यमयी स्थल है जहां कई सुरंगें, खंडहर और पुरानी दीवारें मौजूद हैं. ये समय की परतों में दबे एक भव्य इतिहास का संकेत देती हैं.

Gobrari Village Mysterious Cave
गोबराडी में रहस्यमयी स्थल (फोटो सोर्स- Tarun Mehra)

तरुण मेहरा ने बताया कि ग्रामीणों ने उन्हें उस स्थल के बारे में कुछ कहानियां सुनाई थीं. इन कहानियों में एक राजा का जिक्र था जिसने सुरंग और किला बनाया था. इस कहानी को सुनकर उनकी जिज्ञासा जागी और उन्होंने इस रहस्यमयी स्थल को उजागर करने की ठानी. इसके लिए उन्होंने ग्रामीणों से संपर्क साधा.

एक वरिष्ठ ग्रामीण रतन राम ने उन्हें इस स्थल का रास्ता दिखाया. हालांकि, ग्रामीण ने सुरंगों के अंदर जाने से इनकार कर दिया लेकिन उन्होंने यहां एक पीले रंग का दोमुंहा सांप देखने की बात कही, जो एक विशाल सुनहरे पत्थर के चारों ओर लिपटा रहता था. इस तरह की अन्य किवदंतियां और कहानियां भी इस जगह को लेकर काफी प्रचलित थी.

इसके बाद तरुण और उनकी टीम मौके पर पहुंची. जहां अन्य ग्रामीण मोहन सिंह कन्याल ने तरुण मेहरा को पहली बार इस ऐतिहासिक स्थल को दिखाया और उसकी जानकारी दी. जो इस खोज का एक बड़ा आधार बना.

सुरंगों और खंडहरों की ऐसी है संरचना: वहीं, तरुण मेहरा जब तमाम उपकरणों के साथ रस्सियों से उतरकर गुफा तक पहुंचे तो वो रहस्यमयी जगह को देखकर हैरान रह गए. यहां कई सुरंगें और खंडहर मिले. उन्होंने बताया कि यहां मौजूद सुरंगें अत्यधिक रहस्यमयी हैं. इनमें से कुछ बंद हैं, जबकि कुछ का अंत अज्ञात है. यहां सिर्फ एक घर के अवशेष नहीं, बल्कि कई मकानों के खंडहर देखने को मिलते हैं, जो यह संकेत देते हैं कि यह कभी एक बड़ा बस्ती क्षेत्र रहा होगा. पहाड़ों पर फैलीं दीवारें और संरचनाएं इस बात का संकेत देती हैं कि यह स्थान किसी समय एक किला रहा होगा.

Gobrari Village Mysterious Cave
प्राचीन सुरंग प्रणाली की खोज (फोटो सोर्स- Tarun Mehra)

ऐसी हो सकती है ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: ऐसा माना जाता है कि इस तरह की संरचनाएं कत्यूरी राजाओं और गोरखाओं के शासनकाल के दौरान बनाई गई थीं. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस क्षेत्र को गोरखाओं ने 1804-1825 के बीच अंग्रेजों के पहाड़ों पर चढ़ाई के समय रणनीतिक कारणों से बनाया हो सकता है. यहां शिवालय और छिपे हुए खजाने की संभावना भी जताई जा रही है, जो इस स्थान के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को और बढ़ा देता है.

स्थानीय लोगों की भूमिका और कहानियां: स्थानीय लोगों के अनुसार, यह स्थान एक 'भूमिगत किला' था. यहां छुपे खजाने और एक प्राचीन शिवालय के होने की कहानियां इस स्थल को और ज्यादा रोमांचक बनाती हैं. रतन राम और अन्य बुजुर्गों का योगदान महत्वपूर्ण है, जिन्होंने तरुण मेहरा को इस रहस्यमयी स्थल के बारे में जानकारी दी. सुरंगों के अंदर जाने की हिम्मत कोई नहीं कर पाया, लेकिन स्थानीय लोगों का विश्वास है कि यह क्षेत्र गोरखा सेना के समय का है.

पर्यटन की अपार संभावनाएं-

  • पर्यटन स्थल: इस ऐतिहासिक और रहस्यमयी स्थल को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है.
  • साहसिक पर्यटन: यह स्थान साहसिक पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण बन सकता है. रॉक क्लाइंबिंग और ट्रेकिंग पहाड़ों एवं खंडहरों के आसपास ट्रेकिंग व चढ़ाई के अवसर उपलब्ध हैं.
    जल क्रीड़ा: इस स्थल के आसपास की जल धाराएं और झरने जल क्रीड़ा के लिए आदर्श स्थान बन सकते हैं.
  • वन्यजीव सफारी: इस स्थल के आसपास के जंगलों में वन्यजीव सफारी और पक्षी दर्शन के अवसर भी हैं.
  • ग्रामीण पर्यटन: स्थानीय गांवों में 'होमस्टे' और गांव भ्रमण जैसे कार्यक्रम पर्यटकों को यहां की संस्कृति और जीवनशैली से परिचित करा सकते हैं.
  • सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन: शिवालय और मंदिर धार्मिक पर्यटकों के लिए यह स्थान विशेष आकर्षण का केंद्र बन सकता है. स्थानीय संस्कृति और लोक कथाएं पर्यटकों को स्थानीय लोक कथाओं और इतिहास से जोड़ना इस स्थान को और भी खास बना सकता है.

सरकार और पुरातत्व विभाग की भूमिका: तरुण मेहरा कहते हैं सरकार और पुरातत्व विभाग को इस स्थल की विस्तृत जांच एवं संरक्षण के लिए कदम उठाने की जरूरत है. स्थल का वैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए. जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सुरंगों और संरचनाओं का ऐतिहासिक महत्व क्या है?

तरुण मेहरा बताते हैं कि पर्यटन के लिए बुनियादी ढांचे का विकास, सड़क, ट्रांसपोर्ट और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं. स्थानीय समुदायों की भागीदारी इस क्षेत्र के विकास में स्थानीय लोगों को शामिल किया जाए ताकि, उनकी आजीविका में भी सुधार हो. थल-मुवानी का यह रहस्यमयी स्थल इतिहास, संस्कृति, और रोमांच का अद्वितीय संगम है. यह न केवल उत्तराखंड के पर्यटन को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है, बल्कि यह हमारे इतिहास के अनछुए पहलुओं को उजागर करने का भी एक महत्वपूर्ण जरिया बन सकता है.

Gobrari Village Mysterious Cave
रहस्यमयी गुफा तक पहुंचने की कोशिश (फोटो सोर्स- Tarun Mehra)

इस स्थल को लेकर सरकार, पुरातत्व विभाग और स्थानीय समुदायों को मिलकर काम करना चाहिए. ताकि, इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सके. इस तरह के कदम से अपनी विरासत को संरक्षित करने में मदद मिलेगी. बल्कि इसे वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का अवसर भी मिलेगा. पिथौरागढ़ जिले में एक साल के भीतर दो रहस्यमयी गुफा खोजना पर्यटन के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा.

बेरीनाग में भी तरुण ने खोजी हजारों साल पुरानी गुफा: बेरीनाग नगर में महाविद्यालय के पास भी प्रागैतिहासिक काल की गुफा मिली है. इस गुफा में पत्थरों पर शैल चित्र भी बने मिले. शैलचित्र में मानव आकृतियां भी बनी हुई हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. चंद्र सिंह चौहान की मानें तो ये गुफा 4000-6000 साल पुरानी हो सकती है.

दरअसल, इसी तरह की आकृति वाली गुफा साल 1965 में भी पाई गई थी. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी चंद्र सिंह चौहान ने बताया कि उन्हें नई खोजी गई गुफा की दीवारों पर बने शैल चित्रों की तस्वीरें मिलीं हैं. उन्होंने कहा कि शैलचित्रों के बारे में ज्यादा जानकारी इकट्ठा करने के लिए जल्द ही एक टीम गुफा का दौरा करने जाएगी.

बेरीनाग में मिली गुफा 6 हजार साल पुरानी बताई जा रही है. इस गुफा की दीवारों पर आकृतियां बनाई गई हैं. आकृति में मानव श्रृंखला दिखाई दे रही है. गुफा और शैलचित्रों के बारे में जानकारी देते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारियों ने बताया कि इस गुफा की खोज एक महत्वपूर्ण खोज है. क्योंकि, इसमें शैलचित्र हैं, जो 4000 से 6000 साल से ज्यादा पुराने प्रतीत हो रहे हैं.

Gobrari Village Mysterious Cave
बेरीनाग में मिले गुफा की दीवारों पर बने शैल चित्र (फोटो सोर्स- Tarun Mehra)

गुफा की खोज के बारे में तरुण मेहरा ने बताया कि शैलचित्रों में इंसानों की आकृति के साथ नीचे जंगली जानवरों का चित्र भी बना है. शैल चित्र में जानवरों की संख्या संख्या 11 है. उन्होंने बताया कि गुफा के अंदर बड़ी जगह की होने से संकेत मिलता है कि प्राचीन मानव संभवतः गुफा को अपने रहने के घर की तरह इस्तेमाल करते थे.

निरीक्षण के लिए पहुंची चार सदस्यीय टीम: क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. चंद्र सिंह चौहान के नेतृत्व में गोबराडी में मिली गुफा को देखने के लिए चार सदस्यीय टीम निरीक्षण के लिए पहुंची. निरीक्षण के बाद डॉ. चौहान ने बताया कि कत्यूरी शासनकाल के दौरान इस स्थल का प्रयोग सैन्य मोर्चा के रूप में किया जाता होगा.

चारों तरफ बहने वाली नदी के बीच ऊंचाई पर स्थित इस स्थल से चारों तरफ नजर जाती है. इससे पूर्व बेरीनाग में मिली गुफा को भी पुरातत्व विभाग के अधिकारी निरीक्षण कर चुके हैं. गुफा के बारे में जानकारियां जुटाई जा रही है.

कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत ने भी लिया था बेरीनाग गुफा का संज्ञान: बेरीनाग में मिली गुफा का संज्ञान कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत ने भी लिया था. उन्होंने खुद इसका निरीक्षण करने की बात कही थी. पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग को गुफा को पर्यटन से जोड़ने के निर्देश दिए गए हैं.

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Last Updated : Feb 13, 2025, 4:57 PM IST
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