भोपाल, भाषा-पीटीआई। मध्य प्रदेश सरकार ने सीबीआई द्वारा जांच किए जा रहे कथित नर्सिंग कॉलेज घोटाले में उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार 31 जिलों में 66 नर्सिंग कॉलेजों को बंद करने का आदेश दिया है. यह घोटाला कई नर्सिंग कॉलेजों के संचालन में घोर अनियमितताओं से संबंधित है, जिनमें बुनियादी ढांचे की कमी थी. जबकि कुछ केवल कागजों पर ही अस्तित्व में थे. मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार 31 जिलों में 66 नर्सिंग कॉलेजों को बंद करने का निर्देश दिया है.
पहले ही रद्द हो गई थी कॉलेजों की मान्यता
सीएम मोहन यादव ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि इन नर्सिंग कॉलेजों का कोई भी छात्र प्रभावित न हो और उनके लिए परीक्षा में बैठने की व्यवस्था की जाए. सीएमओ ने कहा कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के आयुक्त ने इन कॉलेजों की सूची संबंधित जिला कलेक्टरों को भेज दी है और उन्हें उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार कार्य करने को कहा है. इन कॉलेजों की मान्यता पहले ही रद्द कर दी गई थी. इंदौर सहित कई जिलों में ऐसे कॉलेजों के खिलाफ कार्रवाई भी शुरू कर दी गई है.
यह नर्सिंग कॉलेज होंगे बंद
सूची में बैतूल के आठ, भोपाल के छह, इंदौर के पांच, छतरपुर, धार और सीहोर के चार-चार, नर्मदापुरम के तीन, भिंड, छिंदवाड़ा, जबलपुर, झाबुआ, मंडला, रीवा, सिवनी और शहडोल के दो-दो कॉलेज शामिल हैं. अलीराजपुर, अनूपपुर, बड़वानी, बुरहानपुर, देवास, ग्वालियर, खंडवा, खरगोन, मुरैना, पन्ना, सागर, टीकमगढ़, उज्जैन, उमरिया, विदिशा और श्योपुर के एक-एक कॉलेज भी सूची में शामिल हैं. सीबीआई प्रवक्ता ने पहले कहा था, "सीबीआई और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, भोपाल ने उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में सीबीआई के अधिकारियों, मध्य प्रदेश के नर्सिंग कॉलेजों द्वारा नामित अधिकारियों और पटवारियों को शामिल करते हुए सात कोर टीमें और तीन से चार सहायक टीमें गठित की थीं.
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रिश्वत लेते CBI अधिकारी गिरफ्तार, बर्खास्त
उल्लेखनीय है कि, हाल ही में सीबीआई के एक अधिकारी को एजेंसी की जांच के दायरे में आए एक नर्सिंग कॉलेज के अध्यक्ष से कथित तौर पर 10 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया था. घटना के बाद सीबीआई ने अपने निरीक्षक राहुल राज की सेवाएं समाप्त कर दी थीं. मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेज घोटाला मामले में सीबीआई की जांच से पता चला है कि उसके अधिकारी निरीक्षण के बाद अनुकूल रिपोर्ट देने के लिए प्रत्येक संस्थान से कथित तौर पर 2 से 10 लाख रुपये वसूल रहे थे.