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दहेज की मांग पूरी न होने पर पत्नी को खाना न देना भी क्रूरता है, एमपी हाईकोर्ट की टिप्पणी - MP High Court dowry case

मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दहेज की मांग पूरी न होने पर किसी विवाहित महिला को भूखा रखना या उसे अपने माता-पिता के घर में रहने के लिए मजबूर करना भी मानसिक उत्पीड़न के समान है.

MP High Court dowry case
दहेज की मांग पूरी न होने पर पत्नी को खाना न देना भी क्रूरता
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 11, 2024, 3:50 PM IST

Updated : Apr 11, 2024, 4:25 PM IST

जबलपुर। महिला ने पुलिस को दी शिकायत में बताया "उसकी शादी अप्रैल 2018 में हुई थी. शादी में उसके पिता ने पर्याप्त दहेज दिया. लेकिन इसके बाद भी दहेज के लिए उसे प्रताड़ित किया जाने लगा. हद तो तब हो गई जब पति और ससुराल वालों ने उसे खाना देना बंद कर दिया. वह भूखी-प्यासी रही. उसे मानसिक उत्पीड़न सहना पड़ा, क्योंकि दहेज में उसके पिता एसी कार नहीं दे सके. ससुराल वालों की प्रताड़ना से तंग आकर वह बीते एक साल से अपने माता-पिता के घर पर रह रही है." इस शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी.

महिला द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के खिलाफ याचिका

महिला द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के बाद उसके पति और उसके परिजनों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई. याचिका में पति ने कहा है कि उसकी पत्नी ने गलत आरोप लगाए हैं. याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने कहा "दहेज की मांग पूरी न होने पर विवाहित महिला को अपने माता-पिता के घर में रहने के लिए मजबूर करना भी मानसिक उत्पीड़न है. भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए (पत्नी के प्रति क्रूरता) के तहत ये दंडनीय है." मामले के तथ्यों और एफआईआर में उल्लिखित आरोपों पर विचार करने के बाद अदालत ने कहा कि दहेज की मांग पूरी न होने के कारण महिला का खाना बंद करना निःस्संदेह शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न है.

पति की याचिका पर हाईकोर्ट ने क्या कहा

हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि पति की याचिका को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि यह महिला की एफआईआर पर जवाबी हमला है. कोर्ट ने कहा "अगर तलाक की याचिका दायर करने के बाद दर्ज की गई एफआईआर पर विचार किया जाता है तो यह भी कहा जा सकता है कि महिला को वैवाहिक जीवन को बचाने में दिलचस्पी हो सकती थी, इसलिए, वह चुप रही और जब उसे एहसास हुआ कि अब सुलह की लगभग खत्म है और वह अपने साथ हुए दुष्कर्म के लिए एफआईआर दर्ज कराती है तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह तलाक की याचिका का जवाबी हमला है."

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पति ने लगाया पत्नी पर व्यभिचार का आरोप

सारी दलीलें सुनने के बाद अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पत्नी के साथ पति और ससुराल वालों के संबंध मधुर नहीं थे. महिला का पति व्यभिचार का आरोप लगाने की हद तक चला गया. यदि व्यभिचार का आरोप गलत पाया जाता है तो वह आरोप अपने आप में क्रूरता है. इन परिस्थितियों में याचिका को खारिज कर दिया जाता है. याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता निशांत अग्रवाल उपस्थित हुए तो वहीं, शासन की ओर से शासकीय अधिवक्ता केएस बघेल ने पैरवी की. वहीं, पत्नी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ.

जबलपुर। महिला ने पुलिस को दी शिकायत में बताया "उसकी शादी अप्रैल 2018 में हुई थी. शादी में उसके पिता ने पर्याप्त दहेज दिया. लेकिन इसके बाद भी दहेज के लिए उसे प्रताड़ित किया जाने लगा. हद तो तब हो गई जब पति और ससुराल वालों ने उसे खाना देना बंद कर दिया. वह भूखी-प्यासी रही. उसे मानसिक उत्पीड़न सहना पड़ा, क्योंकि दहेज में उसके पिता एसी कार नहीं दे सके. ससुराल वालों की प्रताड़ना से तंग आकर वह बीते एक साल से अपने माता-पिता के घर पर रह रही है." इस शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी.

महिला द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के खिलाफ याचिका

महिला द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के बाद उसके पति और उसके परिजनों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई. याचिका में पति ने कहा है कि उसकी पत्नी ने गलत आरोप लगाए हैं. याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने कहा "दहेज की मांग पूरी न होने पर विवाहित महिला को अपने माता-पिता के घर में रहने के लिए मजबूर करना भी मानसिक उत्पीड़न है. भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए (पत्नी के प्रति क्रूरता) के तहत ये दंडनीय है." मामले के तथ्यों और एफआईआर में उल्लिखित आरोपों पर विचार करने के बाद अदालत ने कहा कि दहेज की मांग पूरी न होने के कारण महिला का खाना बंद करना निःस्संदेह शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न है.

पति की याचिका पर हाईकोर्ट ने क्या कहा

हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि पति की याचिका को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि यह महिला की एफआईआर पर जवाबी हमला है. कोर्ट ने कहा "अगर तलाक की याचिका दायर करने के बाद दर्ज की गई एफआईआर पर विचार किया जाता है तो यह भी कहा जा सकता है कि महिला को वैवाहिक जीवन को बचाने में दिलचस्पी हो सकती थी, इसलिए, वह चुप रही और जब उसे एहसास हुआ कि अब सुलह की लगभग खत्म है और वह अपने साथ हुए दुष्कर्म के लिए एफआईआर दर्ज कराती है तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह तलाक की याचिका का जवाबी हमला है."

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सारी दलीलें सुनने के बाद अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पत्नी के साथ पति और ससुराल वालों के संबंध मधुर नहीं थे. महिला का पति व्यभिचार का आरोप लगाने की हद तक चला गया. यदि व्यभिचार का आरोप गलत पाया जाता है तो वह आरोप अपने आप में क्रूरता है. इन परिस्थितियों में याचिका को खारिज कर दिया जाता है. याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता निशांत अग्रवाल उपस्थित हुए तो वहीं, शासन की ओर से शासकीय अधिवक्ता केएस बघेल ने पैरवी की. वहीं, पत्नी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ.

Last Updated : Apr 11, 2024, 4:25 PM IST
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