भोपाल। देश की राजनीति में एक दौर ऐसा भी था, जब आयरन लेडी इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव में चुनौती देने से सभी कतराते थे. रायबरेली सीट को कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा, लेकिन मध्य प्रदेश की एक नेत्री ने रायबरेली सीट से उतरकर इंदिरा गांधी को चुनौती दी. चुनाव प्रचार में मध्य प्रदेश की इस नेत्री की लोकप्रियता देख इंदिरा गांधी भी चकित रह गईं थी. सिंधिया घराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया जब रायबरेली में प्रचार के लिए पहुंचती तो महिलाएं उन्हें देखने और उनके पैर छूने के लिए उमड़ पड़ती.
नेहरू राजनीति में लाए, बेटी को दी चुनौती
मध्य प्रदेश में बीजेपी की जड़ों को गहरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जिद के बाद ही राजनीति में कदम रखा था. प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और ग्वालियर के तत्कालीन महाराज जीवाजीराव सिंधिया की गहरी मित्रता थी. सिंधिया रियासत के विलय के बाद महाराज जीवाजीराव सिंधिया को मध्य भारत राज्य का राज प्रमुख बना दिया गया था. लोकतंत्र स्थापित होने के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को ग्वालियर इलाके में हार का सामना करना पड़ा. नेहरू को आशंका थी कि सिंधिया परिवार के हिंदू महासभा के सहयोग किए जाने से कांग्रेस की हार हुई है. जवाहरलाल नेहरू ने पत्र लिखकर सिंधिया परिवार को कांग्रेस के समर्थन में आने का न्यौता दिया. महाराज जब इसके लिए तैयार नहीं हुए, तब विजयाराजे सिंधिया ने सन 1957 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और हिंदू महासभा के विष्णु देशपांडे को हराया.
इंदिरा गांधी के खिलाफ मैदान में उतरी राजमाता
राजमाता विजयाराजे सिंधिया 10 सालों तक कांग्रेस से जुड़ीं रहीं. इसके बाद उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया. 1967 में वे जनसंघ में शामिल हो गईं. राजनीति के जानकार अजय बोकिल बताते हैं कि 'उस दौर में राजमाता सिंधिया के जनसंघ में जाने का असर इतना रहा कि 1971 में इंदिरा गांधी की जबरदस्त लहर होने के बाद भी ग्वालियर क्षेत्र की तीन सीटों पर जनसंघ का परचम लहराया. विजयाराजे सिंधिया भिंड, उनके पुत्र माधवराज सिंधिया गुना और अटल बिहारी वाजपेयी ने ग्वालियर से चुनाव जीता. आयरन लेडी इंदिरा गांधी की आंधी का असर ग्वालियर क्षेत्र में सिंधिया परिवार के सामने बेअसर साबित हुआ.'
तगड़ी चुनौती दी, लेकिन चुनाव हार गई
वरिष्ठ पत्रकार केडी शर्मा कहते हैं कि 1980 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को उनके गढ़ में ही घेरने की रणनीति बनाई. सवाल उठा कि आयरल लेडी इंदिरा के सामने किस मजबूत चेहरे को मैदान में उतारा जाए. कोई भी नेता इंदिरा के सामने उतरने को तैयार नहीं था, ऐसे में जनता पार्टी ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया को रायबरेली से चुनाव में उतार दिया. राजमाता के रायबरेली से चुनाव में उतरने पर इंदिरा गांधी भी हैरान थीं, क्योंकि राजमाता का जनता में गजब का आकर्षण था. राजमाता की सभाओं में उन्हें देखने खूब भीड़ उमड़ती यहां तक कि महिलाएं उनके पैर छूने की कोशिश करती थीं, लेकिन यह भीड़ वोट में नहीं बदल पाई. राजमाता को सिर्फ 50 हजार 249 वोट ही मिले और वे 1 लाख 73 हजार वोटों से हार गईं.