MP Dacoits Terror। भारत में डॉन माफिया और डकैतों का आतंक लंबे समय तक रहा. उत्तर प्रदेश में तो आज भी कई डॉन और माफिया हैं. जिन्होंने पुलिस की नाक में दम कर रखा है, फिर चाहे वह विकास दुबे हो, या अतीक अहमद जो पुलिस एनकाउंटर में अपने गुनाहों की सजा मौत के रूप में भुगत चुके हैं. हाल ही में जेल में सजा काट रहे माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की भी मौत हार्ट अटैक से हो गई. इस तरह की खबरें ये बता रही है कि शायद अब यूपी में हालात बदल रहे हैं.
मध्य प्रदेश भी डकैतों के आतंक से चार दशकों तक सो नहीं सका था. यहां का ग्वालियर चंबल अंचल कई नामी डकैतों का जनक बना और उनकी मृत्यु सैया भी. आइये एक नजर डालते हैं, मध्यप्रदेश के उन डकैतों पर जिन्होंने कर दी थी पुलिस की नींद हराम.
फूलनदेवी: फूलन देवी का नाम आज कौन नहीं जानता. 1963 में उत्तर प्रदेश के जिला जालौन में जन्मी फूलन देवी ने अपने दौर में आतंक की नई कहानी लिखी थी. अपने साथ हुए सामुहिक दुष्कर्म का बदला लेने के लिए डकैत बन चुकी फूलन ने बेहमई गांव में बंदूक की दम पर 21 ठाकुरों को गोली मारी थी. जिनमें से सिर्फ एक जिंदा बचा था. ये हत्याएं उसने पूरे गांव के सामने की थी. इस नरसंहार के बाद फूलन देवी को बैंडिट क्वीन नाम मिला था, इसके बाद ना जाने कितनी हत्या, लूटपाट अपहरण जैसी वारदातों को अंजाम दिया.
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक उसने 1983 में अपनी शर्तों पर आत्मसमर्पण किया था. जिसके बाद उस पर 22 हत्या, 18 अपहरण और 30 लूट के मामले कोर्ट में चलाये गये. इस दौरान वह जेल में रही और 1994 में उसे रिहाई मिली. दो साल बाद वह चुनाव लड़ी और उत्तर प्रदेश में सांसद चुनी गई. 2001 में सरकारी आवास पर ही उसे गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया.
माधौसिंह: डकैत माधौ सिंह चंबल के डकैतों में एक मशहूर नाम है, जिसका आतंक इस अंचल में 1960-72 तक देखा गया. माधौसिंह बागी होने से पहले फौज के सिपाही था. वह भारतीय सेना में हवलदार हुआ करता था. फौज में उसे मेडिकल कोर में कंपाउंडर बनाया गया था, लेकिन जब वह छुट्टी पर घर आया था. तब गांव के दबंगों ने उस पर पुलिस केस दर्ज करवा दिया. नतीजा फौज की नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद गांव की जिंदगी के बीच अचंल के डाकू मोहर सिंह से मुलाक़ात हुई और इसके बाद कहानी बदल गई. माधौसिंह ने बंदूक उठा ली और फिर ऐसा आतंक मचाया कि पलट कर नहीं देखा. 1972 में उसने केंद्र सरकार की पहल पर अपनी शर्तों पर समर्पण कर जेल गया था. उस दौरान उसके सिर 23 कत्ल और 500 अपहरण केस दर्ज थे. बाद में बीमारी से मौत हो गई.
मोहर सिंह: भिंड जिले के मोहर सिंह अपने समय के उन नामी डकैतों में शुमार था. जिसने चंबल में 22 साल तक आतंक मचाया. उसके सिर 2 लाख और उसकी पूरी गैंग पर 12 लाख का इनाम था. करीब 400 हत्या और 600 से ज्यादा अपहरण के केस दर्ज थे. उस समय डकैत मोहर सिंह के नाम से पुलिस भी थर्राती थी. 1972 में मोहर सिंह ने अपराध का रास्ता छोड़कर मुरैना जिले में माधौसिंह के साथ ही आत्मसमर्पण कर दिया था. बाद में राजनीति से जुड़े और कांग्रेस से जुड़कर जनपद अध्यक्ष बने.
रामबाबू गड़रिया: मध्य प्रदेश में एक दशक तक गड़रिया गिरोह का आतंक रहा. 1997 से 2007 तक पुलिस से आंख मिचौली खेलने वाले और आतंक का पर्याय बना, डकैत राम बाबू गड़रिया की गैंग ने ग्वालियर जिले के भंवरपुरा गांव में एक साथ 13 गुर्जरों को लाइन में खड़ा कर गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था. राम बाबू गड़रिया अपने भाई दयाराम गड़रिया के साथ करीब 11 वर्षों तक हत्या अपहरण जैसी वारदातों को अंजाम देता रहा. उस पर पुलिस ने पांच लाख का इनाम घोषित कर दिया था. बताया जाता है कि उस दौरान उस पर हत्या के 22 केस लगे थे, हालांकि 2007 में पुलिस एनकाउंटर में उसके मारे जाने की खबर आई थी.
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दद्दा मलखान सिंह: राजनीति से लेकर पुरानी जिंदगी तक आज दद्दा मालखान सिंह जाना माना चेहरा है. पूर्व दस्यु उन गिने चुने डकैतों में शामिल हैं. जो अब भी जीवित हैं और अपने गुनाहों की सजा काट कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ चुके हैं, लेकिन 80 के दशक में मलखान सिंह सबसे खतरनाक डकैत के रूप में पहचान रखते थे. भिंड के बिलाव में जन्मे मालखान सिंह ने डकैत बनकर लगभग चार दशकों तक अपने आतंक के बल पर चंबल पर राज किया. इस दौरान उनके गिरोह पर 100 मामले दर्ज थे. जबकि खुद उनके ऊपर 12 हत्या समेत 28 अपहरण और लगभग दो दर्जन केस डकैती के दर्ज थे. अर्जुन सिंह की सरकार में उन्होंने भिंड जिले में 1982 में आत्मसमर्पण किया और 6 साल जेल में काटे. इसके बाद रिहा हुए बाहर आने के बाद वे राजनीति में एंट्री कर गये. पहले बीजेपी में कई सालों तक रहे और पिछले साल कांग्रेस की सदस्यता ले चुके हैं.
आज भले ही ये डकैत इस दुनिया में नहीं है, लेकिन आतंक का पर्याय बने इन दस्यू के किस्से अब भी लोगों की रूह कपाने के लिये काफी है. लेकिन यह भी साफ है की आतंक कितना भी लंबा चले एक न एक दिन उसका अंत आता ही है.