मुरैना: गजक का नाम सुनते ही दिमाग में सबसे पहले मुरैना का नाम आता है. क्योंकि इसके पीछे 400 साल पुराना मुरैना के गजक का इतिहास है. इसके लिए दीवानगी भारत ही नहीं विदेशों में भी देखी जाती है. बता दें कि सर्दियों का सीजन शुरू होते ही देश भर से गजक की मांग बढ़ जाती है. इस गजक के स्वाद की वाह-वाही देश विदेश में है. इसे साल 2023 में जीआई टैग भी मिल चुका है.
गजक में होते हैं ये गुण
चंबल की गजक में जो स्वाद है, वह कहीं भी नहीं मिलता है. अब तो मुरैना में गजक की इतनी वैरायटी बनने लगी है कि मिठाई बेचने वाले सर्दियों में परेशान हो जाते हैं, क्योंकि लोग मिठाई के स्थान पर गजक को उचित समझते हैं. इसमें मिलावट की कही कोई गुंजाइश नहीं रहती. जबकि मिठाई में तमाम तरह की मिलावट होती है और गजक काफी समय की बनी रहती है. यही क्वालिटी गजक को बेहतर बनाती है और ताजा रहती है.
अंतर्राष्ट्रीय मेले में मिला पुरस्कार
चंबल क्षेत्र में यह कहावत प्रचलित है कि अगर आपने मुरैना की गजक नहीं खाई, तो फिर आपने कुछ भी नहीं खाया. चंबल अंचल में आपको यह शब्द सुनने को मिलेंगे, क्योंकि मध्य प्रदेश ही नहीं पूरे देश में मुरैना की पहचान ही गजक से है. बीते रोज मुरैना की गजक की दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय मेले में धाक रही और इसे वहां द्वितीय पुरस्कार दिया गया. नई दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय मेले में मुरैना जिले की जौरा तहसील के आयुष महिला समूह को यह पुरस्कार दिया गया है. महिलाओं ने 15 दिन में डेढ़ लाख रुपए की गजक बेचकर 75 हजार रुपए का मुनाफा कमाया है.
400 साल पुराना है गजक का इतिहास
गजक का इतिहास 400 साल पुराना बताया जाता है. गजक सर्दियों के दिनों में सबसे ज्यादा खाई जाने वाली मिठाई है. यह स्वाद के साथ सेहत के लिए भी अच्छी है. गजक का अनुमानित बिजनेस 200 करोड़ रुपये से ज्यादा का है. मुरैना की गजक अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, दुबई सहित कई देशों में भेजी जाती है. गजक का कारोबार सर्दियों में सिर्फ 4 महीनों तक चलता है. इस व्यवसाय से हजारों परिवारों की रोजी-रोटी चलती है.
ऐसे बनाई जाती है गजक
गजक को बड़े खास तरीके से बनाया जाता है. इसको बनाने के लिए सबसे पहले गुड़, शक्कर, तिल की आवश्यकता होती है. इसके बाद गुड़, शक्कर और पानी का मिश्रण तैयार किया है, फिर इस मिश्रण को धीमी आग में तब तक पकाया जाता है, जब तक चासनी अच्छे से तैयार ना हो जाए. जब चासनी लपेटेदार बन जाती है, तो इसे एक खूंटी से लटकाकर अच्छे से मिलाया जाता है. वहीं दूसरी और तिल को भूनने के बाद उसको ठंडा किया जाता है. इसके बाद दोनों को आपस में मिलाकर कूटा जाता है. इस तरह से गजक बन जाता है, जिसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर पैकेट में पैक कर लेते हैं.
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गजक में दिखती है कारीगर की मेहनत
गोपी गजक भंडार के संचालक आकाश शिवहरे ने बताया, "चंबल नदी का पानी मीठा है और उसी तासीर के कारण मुरैना की गजक में खस्तापन रहता है. इसके अलावा अच्छी गजक के लिए अच्छी क्वालिटी का तिल जरूरी होता है. गजक में जितना ज्यादा तिल होगा, उतना ज्यादा खस्तापन आएगा. इसमें विशेष रूप से गजक बनाने वाले कारीगर की मेहनत दिखाई देती है."