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'गोरकी पतरकी रे..जियरा उड़ी-उड़ी जाए' मोहम्मद रफी का भोजपुरी गाना, क्या आपने सुना? - MOHAMMAD RAFI BIRTH ANNIVERSARY

मोहम्मद रफी की रुहानी आवाज से हर कोई वाकिफ है. उन्होंने भोजपुरी में भी गाना गया था, जिसे लोग आज भी याद करते हैं.

Mohammad Rafi
मोहम्मद रफी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 14 hours ago

Updated : 14 hours ago

पटना : फिल्म का नाम- बलम परदेसिया, गाने के बोल- 'गोरकी पतरकी रे मारे गुलेल बा जियरा उड़ी-उड़ी जाए.' आज भी जब यह गाना बजता है तो हम-आप अलग ही दुनिया में खो जाते हैं. गाने के बोल गुनगुनाने लगते हैं. रफी साहब का जादू ही कुछ ऐसा था, जिस गाने को अपनी आवाज दे दें, वह सदाबहार हो जाता था.

मोहम्मद रफी ने पूरे भोजपुरी अंदाज में यह गाना गाया था. ऐसा लगता है जैसे मोहम्मद रफी ने भोजपुरी भाषा में गाना नहीं गया है बल्कि भोजपुरी भाषा को अपने अंदर उस अदा को आत्मसात किया. भोजपुरी गाना सुनने के बाद लगता है कि मोहम्मद रफी साहब ने भोजपुरी संगीत या यूं कहें की भोजपुरी मिट्टी को अपने अंदर समाहित करके ही गाना गाया.

बिहार से रहा जुड़ाव : मखमली आवाज के जादूगर मो. रफी की आज 100वीं जयंती है. देश के कला प्रेमी सुरों के जादूगर को अपने-अपने अंदाज में याद कर रहा है. मोहम्मद रफी बिहार में भी आकर कई संगीत कार्यक्रमों में शिरकत किए थे. मशहूर आरजे शशि ने मो. रफी की यादों को ईटीवी भारत के साथ साझा किए.

रेडियो जॉकी शशि कहते हैं कि मोहम्मद रफी संगीत के ऐसे जादूगर थे जिनका गाना लोगों को एहसास के रूप में बदल जाता था. हर भाषा में गाना गाने के लिए मोहम्मद रफी इस अंदाज से साधना करते थे. मोहम्मद रफी ऐसे गायक थे जो एक जगह के होते हुए भी पूरे भारत के हर संस्कृति को अपने अंदर आत्मसात किया और इस अंदाज में गाना गाया.

''मोहम्मद रफी का गाना 'एहसान तेरा होगा मुझ पर' एक ऐसा गाना है, जिसको सुनने के बाद लगता है कि इस गाने का एक-एक शब्द लोगों के एहसास से जुड़ा हुआ है. भारतीय फिल्म संगीत क्षेत्र में हकीकत में मोहम्मद रफी नगीना थे.''- रेडियो जॉकी शशि

मोहम्मद रफी की जन्म जयंति पर विशेष (ETV Bharat)

'सामाजिक एकता के प्रतीक थे रफी साहब' : जाने माने फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में कहा कि पूरा देश मोहम्मद रफी की शताब्दी जयंती मना रहा है. मोहम्मद रफी भारतीय सामाजिक एकता के ताने-बाने के प्रतीक के रूप में है. हिंदी फिल्मों में जितने भजन गाए गए, उसमें अधिकांश भजन मोहम्मद रफी ने गाए हैं.

''रफी साहब के गाने में ऐसी विविधता थी कि हर कलाकार के अनुरूप वह गाना गाते थे. दिलीप कुमार के लिए मोहम्मद रफी के गाए हुए हर गाने को देखकर यह लगता है कि उन गानों को दिलीप कुमार ने गया है. फास्ट म्यूजिक हो या क्लासिकल म्यूजिक अथवा शास्त्रीय संगीत हो सबों पर समान रूप से मोहम्मद रफी की पकड़ थी. उन्होंने अपनी आवाज से गीतों को अमर बना दिया.''- विनोद अनुपम, फिल्म समीक्षक

'रफी साहब को मिले भारत रत्न' : मोहम्मद रफी भारत के ऐसे गायक थे जिनमें सिर्फ भारत में ही नहीं भारत के बाहर भी उतने ही प्रशंसक रहे हैं. भारत के वह पड़ोसी देश जहां-जहां हिंदी बोली और सुनी जाती है वहां मोहम्मद रफ़ी आज भी संगीत के रूप में जिंदा है. जो सबसे बड़ी बात है. आर जे शशि ने मांग की कि मोहम्मद रफी संगीत के ऐसे फनकार थे जिनको भारत रत्न तो मिलना चाहिए.

RJ Shashi
रेडियो जॉकी शशि (ETV Bharat)

नया जेनरेशन भी रफी के दीवाने : मोहम्मद रफी को याद करने वाले पुराने जनरेशन के ही नहीं, आज के जनरेशन के बच्चे भी उनके गानों के दीवाने हैं. संस्कार भूषण छोटी उम्र में मोहम्मद रफी के गानों के बड़े प्रशंसक हैं. संस्कार में बताया कि लोगों को लगता है कि छोटे बच्चे मोहम्मद रफी की गाना नहीं सुनते लेकिन हकीकत यही है कि उनके उम्र के बच्चे अभी भी मोहम्मद रफी की गानों को याद करते हैं.

Mohammad Rafi Birth Anniversary
संस्कार भूषण (ETV Bharat)

मो. रफी का जन्म शताब्दी वर्ष : मो. रफी का जन्म पंजाब (पाकिस्तान) के कोटला सुल्तानपुर में 24 दिसंबर, 1924 को हाजी अली मोहम्मद के परिवार में हुआ था. हाजी अली मोहम्मद के छह बच्चों में से रफी दूसरे नंबर पर थे. गली में फकीर को गाते सुनकर रफी ने गाना शुरू किया था. धीरे-धीरे यह सूफी फकीर उनके गाने की प्रेरणा बनता गया और वह धीरे-धीरे संगीत की तरफ अपना ध्यान देने लगे.

बड़े भाई की सैलून में गाते थे : आजादी के बाद मोहम्मद रफी का परिवार पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान आ गया. अपने बड़े भाई के सैलून में वह काम करते लगे. लोग नाई की दुकान में उनके गाने की प्रशंशा करने लगे. इनके बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने इनके संगीत के प्रति इनकी रुचि को देखा और उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत शिक्षा लेने को कहा.

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पटना : फिल्म का नाम- बलम परदेसिया, गाने के बोल- 'गोरकी पतरकी रे मारे गुलेल बा जियरा उड़ी-उड़ी जाए.' आज भी जब यह गाना बजता है तो हम-आप अलग ही दुनिया में खो जाते हैं. गाने के बोल गुनगुनाने लगते हैं. रफी साहब का जादू ही कुछ ऐसा था, जिस गाने को अपनी आवाज दे दें, वह सदाबहार हो जाता था.

मोहम्मद रफी ने पूरे भोजपुरी अंदाज में यह गाना गाया था. ऐसा लगता है जैसे मोहम्मद रफी ने भोजपुरी भाषा में गाना नहीं गया है बल्कि भोजपुरी भाषा को अपने अंदर उस अदा को आत्मसात किया. भोजपुरी गाना सुनने के बाद लगता है कि मोहम्मद रफी साहब ने भोजपुरी संगीत या यूं कहें की भोजपुरी मिट्टी को अपने अंदर समाहित करके ही गाना गाया.

बिहार से रहा जुड़ाव : मखमली आवाज के जादूगर मो. रफी की आज 100वीं जयंती है. देश के कला प्रेमी सुरों के जादूगर को अपने-अपने अंदाज में याद कर रहा है. मोहम्मद रफी बिहार में भी आकर कई संगीत कार्यक्रमों में शिरकत किए थे. मशहूर आरजे शशि ने मो. रफी की यादों को ईटीवी भारत के साथ साझा किए.

रेडियो जॉकी शशि कहते हैं कि मोहम्मद रफी संगीत के ऐसे जादूगर थे जिनका गाना लोगों को एहसास के रूप में बदल जाता था. हर भाषा में गाना गाने के लिए मोहम्मद रफी इस अंदाज से साधना करते थे. मोहम्मद रफी ऐसे गायक थे जो एक जगह के होते हुए भी पूरे भारत के हर संस्कृति को अपने अंदर आत्मसात किया और इस अंदाज में गाना गाया.

''मोहम्मद रफी का गाना 'एहसान तेरा होगा मुझ पर' एक ऐसा गाना है, जिसको सुनने के बाद लगता है कि इस गाने का एक-एक शब्द लोगों के एहसास से जुड़ा हुआ है. भारतीय फिल्म संगीत क्षेत्र में हकीकत में मोहम्मद रफी नगीना थे.''- रेडियो जॉकी शशि

मोहम्मद रफी की जन्म जयंति पर विशेष (ETV Bharat)

'सामाजिक एकता के प्रतीक थे रफी साहब' : जाने माने फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में कहा कि पूरा देश मोहम्मद रफी की शताब्दी जयंती मना रहा है. मोहम्मद रफी भारतीय सामाजिक एकता के ताने-बाने के प्रतीक के रूप में है. हिंदी फिल्मों में जितने भजन गाए गए, उसमें अधिकांश भजन मोहम्मद रफी ने गाए हैं.

''रफी साहब के गाने में ऐसी विविधता थी कि हर कलाकार के अनुरूप वह गाना गाते थे. दिलीप कुमार के लिए मोहम्मद रफी के गाए हुए हर गाने को देखकर यह लगता है कि उन गानों को दिलीप कुमार ने गया है. फास्ट म्यूजिक हो या क्लासिकल म्यूजिक अथवा शास्त्रीय संगीत हो सबों पर समान रूप से मोहम्मद रफी की पकड़ थी. उन्होंने अपनी आवाज से गीतों को अमर बना दिया.''- विनोद अनुपम, फिल्म समीक्षक

'रफी साहब को मिले भारत रत्न' : मोहम्मद रफी भारत के ऐसे गायक थे जिनमें सिर्फ भारत में ही नहीं भारत के बाहर भी उतने ही प्रशंसक रहे हैं. भारत के वह पड़ोसी देश जहां-जहां हिंदी बोली और सुनी जाती है वहां मोहम्मद रफ़ी आज भी संगीत के रूप में जिंदा है. जो सबसे बड़ी बात है. आर जे शशि ने मांग की कि मोहम्मद रफी संगीत के ऐसे फनकार थे जिनको भारत रत्न तो मिलना चाहिए.

RJ Shashi
रेडियो जॉकी शशि (ETV Bharat)

नया जेनरेशन भी रफी के दीवाने : मोहम्मद रफी को याद करने वाले पुराने जनरेशन के ही नहीं, आज के जनरेशन के बच्चे भी उनके गानों के दीवाने हैं. संस्कार भूषण छोटी उम्र में मोहम्मद रफी के गानों के बड़े प्रशंसक हैं. संस्कार में बताया कि लोगों को लगता है कि छोटे बच्चे मोहम्मद रफी की गाना नहीं सुनते लेकिन हकीकत यही है कि उनके उम्र के बच्चे अभी भी मोहम्मद रफी की गानों को याद करते हैं.

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मो. रफी का जन्म शताब्दी वर्ष : मो. रफी का जन्म पंजाब (पाकिस्तान) के कोटला सुल्तानपुर में 24 दिसंबर, 1924 को हाजी अली मोहम्मद के परिवार में हुआ था. हाजी अली मोहम्मद के छह बच्चों में से रफी दूसरे नंबर पर थे. गली में फकीर को गाते सुनकर रफी ने गाना शुरू किया था. धीरे-धीरे यह सूफी फकीर उनके गाने की प्रेरणा बनता गया और वह धीरे-धीरे संगीत की तरफ अपना ध्यान देने लगे.

बड़े भाई की सैलून में गाते थे : आजादी के बाद मोहम्मद रफी का परिवार पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान आ गया. अपने बड़े भाई के सैलून में वह काम करते लगे. लोग नाई की दुकान में उनके गाने की प्रशंशा करने लगे. इनके बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने इनके संगीत के प्रति इनकी रुचि को देखा और उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत शिक्षा लेने को कहा.

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