पटना: मिथिला का इतिहास संस्कृति परंपरा, रीति-रिवाज और जीवनशैली के लिए जाना जाता है. मिथिला की नव विवाहिता शादी के बाद मधुश्रावणी पूजा करती है. मधुश्रावणी बिहार के मिथिलांचल का प्रचलित त्योहार है. मिथिलांचल में ब्राह्मण, कर्ण कायस्थ, स्वर्णकार में यह त्यौहार मनाया जाता है. मधुश्रावणी का पर्व मिथिलांचल के उन परिवारों में मनाया जाता है जिनके परिवार में बेटी की शादी हुई होती है. यह त्यौहार नव विवाहित मानती है जिनकी शादी के एक साल पूरे नहीं हुए रहते हैं. नवविवाहित पूरे 14 दिनों तक नियम निष्ठा के साथ यह पर्व करती हैं.
मिथिलांचल में नव विवाहिता की अग्नि परीक्षा: मधुश्रावणी पर्व के अंतिम दिन नव विवाहित महिलाओं को अग्नि परीक्षा से गुजारना पड़ता है. टेमी दागने के दौरान नवविवाहिता के घुटने पर पान का पत्ता रखा जाता है. जहां पर टेमी दागा जाता है वहां पान के पत्ते में छेद कर दिया जाता है. उसी जगह पर जलती हुई बाती से दागा जाता है. इस दौरान पति पान के पत्ते से अपनी पत्नी की आंखें बंद करता है और फिर जाकर टेमी दागने की प्रक्रिया खत्म होती है.
टेमी दागने की परंपरा का कारण: महिला को जलती टेमी से दागने को लेकर अनेक लोग अनेक तरह का तर्क देते हैं. मिथिला में इसको लेकर एक मान्यता है कि ऐसा करने से पैरों और घुटने पर जो फफोले आते हैं वो पति और पत्नी के बीच प्रेम को दर्शाता है. इसको लेकर कहा जाता है कि जितना बड़ा फफोले का आकार होता है, उतना ही ज्यादा पति पत्नि के बीच प्रेम बढ़ता है.
'परंपरा में सुधार लाने की जरूरत': टेमी दागने की परंपरागत सदियों से चली आ रही है. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में इसको लेकर कुछ महिलाएं सवाल भी खड़ा कर रही है. सीतामढ़ी की रहने वाली रंजना देवी का कहना कि जिस परंपरा से किसी को तकलीफ हो वैसी परंपरा में सुधार लाने की जरूरत है. अब इसे मात्र सिंबॉलिक रूप से करना चाहिए.
''टेमी दागने की परंपरा पति के लंबी आयु को लेकर की जाती है. इसीलिए यह परंपरा बरकरार रहना चाहिए. अब दो तरह से टेमी डालने की परंपरा चल रही है. पहले तो आग से निशान बनाने की परंपरा होती है, फिर दूसरी शरीर पर कई जगहों पर चंदन लगाकर इसे संपन्न किया जाता है. जो नवविवाहित महिला गर्भवती होती है उन्हें इस प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता है.''- रिमू झा, मधुबनी की रहने वाली महिला
'दंपति जीवन खुशहाल रहता': इधर, मधुबनी की ही नव विवाहित रश्मि मिश्रा जो इस बार मधुश्रावणी भी कर रही हैं वह बताती हैं कि, निश्चित रूप से यह परंपरा दंपति जीवन को खुशहाल बनाने के लिए किया जाता है और पति की लंबी आयु के रूप में इसको देखा जाता है. इसीलिए वह पुरानी परंपरा के आधार पर ही इसे निभाएंगी.
अग्निपरीक्षा की धार्मिक मान्यता: हालांकि ज्योतिर्विज्ञान संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य राजनाथ झा का कहना है कि, मधुश्रावणी के दिन टेमी से दागने के पीछे बहुत ही गहरी मान्यता है. मधुश्रावणी का पर्व नाग पंचमी के दिन शुरू होती है, इसमें भगवान शंकर माता पार्वती और नाग की पूजा होती है. टेमी को नाग का प्रतीक माना जाता है.
''नव विवाहिता के घुटनों एवं पैर पर जलते हुए टेमी से एक चिन्ह बनाने की परंपरा है. यह चिन्ह इसलिए बनाया जाता है ताकि नवविवाहिता के दांपत्य जीवन में किसी तरीके की मुसीबत ना आए. नाग देवता से नवविवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. माना जाता है कि जिनके पैर में यह चिन्ह बन जाता है उनके पति को कभी सर्पदंश से अकाल मृत्यु नहीं होती है.''- ज्योतिषाचार्य राजनाथ झा, निदेशक, ज्योतिर्विज्ञान संस्थान
क्या होता है मधुश्रावणी पर्व: 14 दिनों तक चलने वाले मधुश्रावणी व्रत को लेकर नवविवाहिताएं यह व्रत अपने मयके में ही करती हैं. इन चौदह दिनों के अनुष्ठान में नवविवाहिताएं नमक का सेवन नहीं करती हैं. नाग पंचमी के दिन से शुरू होने वाले इस पूजा में भगवान महादेव, माता पार्वती और नाग देवता की पूजा की जाती है. चौदह दिनों तक चलने वाले मधुश्रावणी पूजा में नवविवाहिताएं नमक का सेवन नहीं करती हैं. इस वर्ष मिथिलांचल में मधुश्रावणी सावन शुक्ल के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 25 जुलाई गुरुवार से शुरू हो गई, जिसका समापन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया 7 अगस्त को होगा.
जानें मधुश्रावणी का विधि विधान: मिथिलांचल में मधुश्रावणी त्यौहार का इतिहास सदियों पुराना है. मान्यता है कि नवविवाहित महिलाओं को उनके विवाहित जीवन में सहज बनाने के लिये इसकी शुरुआत की गई थी. नव विवाहित महिलाएं 16 श्रृंगार में दुल्हन के कपड़े पहनती हैं. अपने आसपास के घरों में लगे फूलों और पेड़ों के पत्ते इकट्ठा करती हैं और उन्हें बांस की बनी टोकरी जिसे मिथिला में (डाली) कहा जाता है में रखती हैं. शाम के समय में उस गांव की सभी नव विवाहित लड़कियां एक जगह इकट्ठा होकर इन फूलों से अपनी डाली को सजाती हैं.
माता पार्वती से जुड़ी कहानियां सुनाती: इस सजी हुई डाली के फूलों से अगले दिन भगवान शिव, माता गौरी और नाग देवता की पूजा करती हैं. इस पूजा को संपन्न करवाने के लिए परिवार की सबसे वरिष्ठ महिला- जिसे बिधकरी कहा जाता है. वे 14 दिनों तक प्रतिदिन भगवान शिव एवं माता पार्वती से जुड़ी कहानियां सुनाती हैं.
'14 दिनों के अनुष्ठान में महिला पंडित': मधुश्रावणी पर्व में नव विवाहित महिला अपने पति के लंबी उम्र के लिए भगवान महादेव माता पार्वती और विषहरा की पूजा करती हैं. 14 दिनों तक चलने वाले इस अनुष्ठान में मधुर श्रावणी का व्रत कथा सुनाया जाता है. सबसे दिलचस्प बात ये है कि कर्मकांड में पुरुषों का बोलबाला है. लेकिन मिथिलांचल में मधुश्रावणी पर्व में पंडित की भूमिका महिला निभाती हैं. 14 दिनों तक चलने वाले अनुष्ठान में पहले दिन मौन पंचमी कथा का वर्णन सुनाया जाता है.
महादेव की पारिवारिक कथा सुनाई जाती: दूसरे दिन की कथा में बिहुला एवं मनसा का कथा विषहरा का कथा एवं मंगला गौरी का कथा सुनाया जाता है. तीसरे दिन की कथा में पृथ्वी का जन्म एवं समुद्र मंथन का कथा सुनाया जाता है. चौथे दिन की कथा में माता सती की कथा सुनाई जाती है. पांचवें दिन के कथा में महादेव की पारिवारिक कथा सुनाया जाता है. छठे दिन की कथा में गंगा का कथा गौरी का जन्म एवं कामदहन की कथा सुनाई जाती है.
गौरी के विवाह की कथा सुनाई जाती: सातवें दिन की कथा माता गौरी की तपस्या की कथा सुनाई जाती है. आठवें दिन की कथा में गौरी के विवाह की कथा सुनाई जाती है. नौवे दिन की कथा में मैना का मोह एवं गौरी के विवाह कथा सुनाई जाती है. दसवें दिन की कथा में कार्तिक एवं गणेश भगवान के जन्म की कथा सुनाई जाती है. 11वे दिन संध्या के विवाह की कथा सुनाई जाती है. 12वें दिन बाल बसंत एवं गोसावन का कथा सुनाया जाता है और 13 वें दिन श्रीकर राजा के कथा को सुनाया जाता है.
माता पार्वती ने की थी व्रत की शुरुआत: ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने सर्व प्रथम मधुश्रावणी व्रत रखी थी. जन्मजन्मांतर तक शिव को अपने पति रूप में रखने के लिए इस पर्व में शिव पार्वती की कथा आज भी सुनाई जाती है. पूरे मिथिलांचल के हर एक गांव में मंदिरों पर एवं शिवालों पर गांव की नवविवाहिता एक जगह इकट्ठा होकर भगवान महादेव एवं माता पार्वती को खुश करने के लिए और अपना दांपत्य जीवन खुशहाल बनाने के लिए यह पर्व मानती है.
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