जयपुर: राजस्थान की राजनीती में इन दिनों फोन टैपिंग और मंत्री किरोड़ी लाल मीणा सुर्खियों में हैं. किरोड़ी लाल के फोन टैपिंग के आरोपों को लेकर कांग्रेस नेता भजनलाल सरकार पर सवाल खड़े कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने गुरुवार को किरोड़ी लाल के आरोपों को लेकर सरकार पर निशाना साधा. हालांकि, बुधवार को मीणा ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि उनसे गलती हुई है. इसलिए उन्हें पार्टी की ओर से नोटिस भेजकर जवाब मांगा है और उन्होंने जवाब दे दिया है.
इसके बाद से कयास लगाए जा रहे हैं कि किरोड़ी लाल सुलह के मूड में हैं, लेकिन उनकी सियासत के अंदाज को जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा का कहना है कि मीणा की राजनीती हमेशा सत्ता के शीर्ष को चुनौती देने वाली रही है. भले ही वे सत्ता के साथ हों या विपक्ष में. मुख्यमंत्री दिवंगत भैरोंसिंह शेखावत हों, वसुंधरा राजे हों, अशोक गहलोत हों या अब भजनलाल शर्मा. किरोड़ी लाल का सियासी अंदाज यही रहा है कि ये जब सत्ता के शीर्ष पर थे, तब मीणा की इनसे पटरी नहीं बैठी.
विधानसभा से ली छुट्टी, आरोप पर गरमाई सियासत : श्याम सुंदर शर्मा ने बताया कि अगर भजनलाल सरकार के एक साल के सफर की बात करें तो पहले एसआई भर्ती निरस्त करने और युवाओं के हितों के मुद्दों को लेकर किरोड़ी लाल ने अपने ही दल की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. इसी बात को लेकर उन्होंने कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, शीर्ष नेतृत्व के दखल के बाद मंत्री पद तो संभाला, लेकिन विधानसभा सत्र शुरू हुआ तो उससे पहले बीमारी का हवाला देकर विधानसभा से छुट्टी ले ली. इसी बीच उन्होंने अपनी ही सरकार पर फोन टैपिंग के आरोप लगाकर सबको सकते में डाल दिया.
अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा : वे बोले- पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरे 5 साल मीणा के निशाने पर रहे. पेपर लीक का मुद्दा हो, युवाओं के रोजगार का मुद्दा हो, जलजीवन मिशन में भ्रष्टाचार का मुद्दा हो या उद्योग भवन के बेसमेंट में सोना-नकदी मिलने का मामला, किरोड़ी लाल सरकार के लिए सिरदर्द बने रहे. पुलवामा शहीदों की वीरांगनाओं के मुद्दे को लेकर भी उन्होंने सरकार के नाक में दम किया. इसी के चलते अशोक गहलोत ने कहा था कि किरोड़ी लाल नॉन इश्यू को इश्यू बनाने में माहिर हैं.
वसुंधरा राजे से नाराजगी के चलते छोड़ी थी पार्टी : उनका कहना है कि वसुंधरा राजे जब 2003 में मुख्यमंत्री बनीं तो किरोड़ी लाल को बतौर मंत्री कैबिनेट में जगह मिली थी, लेकिन उन्हें सत्ता का साथ रास नहीं आया. वसुंधरा राजे से खुलकर अदावत के बाद उन्होंने भाजपा छोड़कर अपनी राह अलग कर ली थी. बाद में उन्होंने नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) का हाथ थामा. हालांकि, समय बदला तो गिले शिकवे दूर हुए और वसुंधरा राजे ने ही किरोड़ी लाल मीणा की भाजपा में वापसी करवाई. इसके बाद उन्हें सांसद बनाकर राज्यसभा भेजा गया.
पत्नी मंत्री, खुद ने संभाला गहलोत के खिलाफ मोर्चा : उन्होंने कहा कि साल 2008 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने, तब किरोड़ी लाल की पत्नी गोलमा देवी भी विधायक थीं. उन्होंने पत्नी को मंत्री बनाया, लेकिन खुद सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की. सदन हो या सड़क, मीणा ने सरकार के खिलाफ मिर्चा खोलकर रखा और धरने-प्रदर्शन तक किए.
भैरोंसिंह सरकार को भी किया असहज : वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि प्रदेश की कमान भाजपा के वरिष्ठ नेता (अब दिवंगत) भैरोंसिंह शेखावत के हाथ में थी, तब भाजपा से विधायक किरोड़ी लाल मीणा की उनसे भी पटरी नहीं बैठी. वे सदन में हमेशा ऐसे मुद्दे उठाते, जिनके कारण सरकार को परेशानी झेलनी पड़ती. इसके चलते कई बार उनसे समझाइश भी की गई, लेकिन मीणा ने अपना अंदाज नहीं बदला, बल्कि समय के साथ उनका सत्ता से संघर्ष ज्यादा गहरा होता गया. इससे पहले कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे दिवंगत शिवचरण माथुर से किरोड़ी लाल के वैचारिक मतभेद की चर्चा आज भी सियासी गलियारों में होती है.