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कैंटोनमेंट बोर्ड के विलय को लेकर चिंतित प्रतिनिधि-कर्मचारी,12 साल बाद हुई बैठक में उठाया मुद्दा - Cantonment Board Meeting

12 साल बाद लखनऊ में 24 छावनी परिषद की मीटिंग हुई. इस मीटिंग में छावनी के प्रतिनिधि और कर्मचारियों ने अपनी समस्याओं को उठाया. इसके साथ ही छावनियों के विलय होने की आशंका पर चिंता जाहिर की है.

छावनी परिषद की मीटिंग
छावनी परिषद की मीटिंग (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 7, 2024, 10:35 PM IST

लखनऊ: जिस तरह सरकार लगातार छावनी परिषदों का विलय करने को लेकर दबाव बना रही है, उससे परिषदों के प्रतिनिधियों को डर सताने लगा है. सरकार के इस कदम को लेकर विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं. छावनी परिषद में किस-किस तरह की समस्याएं व्याप्त हैं, इसे लेकर बुधवार को रक्षा संपदा निदेशालय में मध्य कमान के विभिन्न राज्यों की 24 छावनी परिषदों के प्रतिनिधियों की कमांड स्तरीय जेसीएम मीटिंग बुलाई गई थी. इसमें प्रतिनिधियों ने छावनी परिषद में विभिन्न तरह की समस्याओं को सामने रखा और निराकरण करने का अनुरोध किया. अलग-अलग राज्यों के प्रतिनिधियों की सबसे बड़ी चिंता छावनी परिषदों का मर्जर को लेकर ही रही. इस मीटिंग में छावनी परिषद के कई अस्पतालों में मुफ्त दवा न मिलना और कई जगह पर कम प्रतिपूर्ति (रेंबरेंस) होने की समस्या रखी गई. रक्षा संपदा की प्रधान निदेशक भावना सिंह ने छावनी परिषद में जो भी समस्याएं हैं, उन्हें दूर करने का आश्वासन सभी छावनी परिषदों के प्रतिनिधियों को दिया.

लखनऊ में हुई छावनी परिषदों की बैठक. (Video Credit; ETV Bharat)
2012 में मध्य कमान के अंतर्गत आने वाले लखनऊ कैंट बोर्ड समेत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तराखंड राज्य की 24 छावनी परिषद की मीटिंग आयोजित की गई थी. तब से यह मीटिंग आयोजित नहीं हो पाई थी. अब 2024 में 12 साल बाद बुधवार को मध्य कमान स्थित रक्षा संपदा निदेशालय में यह कमांड स्तरीय जेसीएम मीटिंग हुई. 24 छावनी परिषद के कर्मचारी यूनियन के करीब 100 प्रतिनिधियों और वरिष्ठ कर्मचारियों ने हिस्सा लिया. जिसमें 24 छावनी परिषदों के कर्मचारियों की समस्याओं और लंबित मुद्दों को रखा गया.

छावनी परिषद का नगर निगम में विलय करने की सूचना से छावनी परिषद के कर्मचारी और यूनियन के प्रतिनिधि घबराए हुए हैं. उन्होंने इस बात को मीटिंग के दौरान प्रधान निदेशक रक्षा संपदा के समक्ष रखा. इलाहाबाद के प्रतिनिधि अशोक ने कहा कि छावनी परिषद ऐतिहासिक हैं. इन्हें विलय होने से बचाना चाहिए. सरकार को छावनी परिषदों के विलय पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि हमारा इतिहास ही खत्म हो जाएगा. अगर विलय होता है तो कर्मचारी कहां जाएंगे इसे लेकर फिक्र सता रही है. इस बात पर प्रधान निदेशक रक्षा संपदा भावना सिंह ने कहा कि यह भारत सरकार का निर्णय होगा कि छावनी परिषदों का विलय करना है या नहीं? इसमें हमारा कोई वश नहीं चलेगा. लेकिन वर्तमान में छावनी परिषदों की जो भी समस्याएं हैं, उन्हें हम जरूर दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. जिन कर्मचारियों का एसीपी या एरियर बकाया है उसका जल्द से जल्द भुगतान कैसे हो, इसे लेकर हम कदम उठा रहे हैं.

विभिन्न छावनी परिषदों के प्रतिनिधियों ने समस्या उठाई कि उन्हें छावनी के अस्पतालों में पैसे देकर पर्चा बनवाना पड़ता है. 10 रुपए का पर्चा लगता है. इसके अलावा दवा के लिए भी पैसे देने होते हैं, जबकि ऐसा कोई आदेश नहीं है. तमाम छावनी परिषद में मुफ्त में दवा मिलती है. इस पर बैठक में मौजूद कई छावनी परिषद के प्रतिनिधियों ने हामी भी भरी. इसके बाद प्रधान निदेशक रक्षा संपदा भावना सिंह ने मीटिंग में मौजूद अधिकारियों से इसे गंभीरता से लेते हुए राहत देने की बात कही.

यह भी समस्या उठी कि इलाज के लिए जो कर्मचारी अपनी तरफ से पेमेंट करते हैं, उसकी प्रतिपूर्ति सिर्फ 40% फीसदी ही मिलती है. इस मामले को लेकर प्रधान निदेशक रक्षा संपदा ने साफ तौर पर कहा कि यह गंभीर विषय है, इस पर पूरा ध्यान देते हुए तत्काल राहत दिलाई जाएगी. छावनी परिषद के अस्पतालों में दवा और पर्चे के लिए पैसे लिए जाने को लेकर यह भी कहा गया कि कई अस्पतालों में पीपीपी मॉडल पर काम हो रहा है. ऐसे में हो सकता है कि इसी वजह से पैसे लिए जा रहे हों, लेकिन सभी के लिए एक ही तरह का नियम बनाया जाएगा. मृतक आश्रितों की भर्ती का भी मुद्दा रखा गया. कहा गया कि इतनी पोस्ट ही नहीं हैं कि मृतक आश्रितों तक की भर्ती पूरी हो पाए. इस ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.


मध्य कमान स्थित निदेशालय रक्षा संपदा में आयोजित बैठक में यह भी मुद्दा उठा कि जो टीचर फील्ड मैं नौकरी करते हैं, उन्हें तो दो माह की छुट्टी मिल जाती है, लेकिन जिनकी ऑफिस में ड्यूटी लगती है उन्हें छुट्टी ही नहीं मिलती. क्या उन्हें ओवर टाइम दिया जाएगा? इस पर उन्होंने कहा कि ये बिल्कुल गलत है. उन्हें छुट्टी मिलनी चाहिए. अगर आपके पास स्टाफ नहीं है तो स्टाफ की भर्ती करनी चाहिए. टीचर्स से काम नहीं लेना चाहिए. प्रधान निदेशक रक्षा संपदा भावना सिंह ने भरोसा दिया कि इस बजट में सबसे पहले कर्मचारियों का जो भी पैसा बकाया है. उसका ही भुगतान प्रमुखता से कराया जाएगा.

इसे भी पढ़ें-सेना चिकित्सा कोर में 219 रंगरूट बने सैनिक, दी गईं ट्रॉफियां

लखनऊ: जिस तरह सरकार लगातार छावनी परिषदों का विलय करने को लेकर दबाव बना रही है, उससे परिषदों के प्रतिनिधियों को डर सताने लगा है. सरकार के इस कदम को लेकर विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं. छावनी परिषद में किस-किस तरह की समस्याएं व्याप्त हैं, इसे लेकर बुधवार को रक्षा संपदा निदेशालय में मध्य कमान के विभिन्न राज्यों की 24 छावनी परिषदों के प्रतिनिधियों की कमांड स्तरीय जेसीएम मीटिंग बुलाई गई थी. इसमें प्रतिनिधियों ने छावनी परिषद में विभिन्न तरह की समस्याओं को सामने रखा और निराकरण करने का अनुरोध किया. अलग-अलग राज्यों के प्रतिनिधियों की सबसे बड़ी चिंता छावनी परिषदों का मर्जर को लेकर ही रही. इस मीटिंग में छावनी परिषद के कई अस्पतालों में मुफ्त दवा न मिलना और कई जगह पर कम प्रतिपूर्ति (रेंबरेंस) होने की समस्या रखी गई. रक्षा संपदा की प्रधान निदेशक भावना सिंह ने छावनी परिषद में जो भी समस्याएं हैं, उन्हें दूर करने का आश्वासन सभी छावनी परिषदों के प्रतिनिधियों को दिया.

लखनऊ में हुई छावनी परिषदों की बैठक. (Video Credit; ETV Bharat)
2012 में मध्य कमान के अंतर्गत आने वाले लखनऊ कैंट बोर्ड समेत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तराखंड राज्य की 24 छावनी परिषद की मीटिंग आयोजित की गई थी. तब से यह मीटिंग आयोजित नहीं हो पाई थी. अब 2024 में 12 साल बाद बुधवार को मध्य कमान स्थित रक्षा संपदा निदेशालय में यह कमांड स्तरीय जेसीएम मीटिंग हुई. 24 छावनी परिषद के कर्मचारी यूनियन के करीब 100 प्रतिनिधियों और वरिष्ठ कर्मचारियों ने हिस्सा लिया. जिसमें 24 छावनी परिषदों के कर्मचारियों की समस्याओं और लंबित मुद्दों को रखा गया.

छावनी परिषद का नगर निगम में विलय करने की सूचना से छावनी परिषद के कर्मचारी और यूनियन के प्रतिनिधि घबराए हुए हैं. उन्होंने इस बात को मीटिंग के दौरान प्रधान निदेशक रक्षा संपदा के समक्ष रखा. इलाहाबाद के प्रतिनिधि अशोक ने कहा कि छावनी परिषद ऐतिहासिक हैं. इन्हें विलय होने से बचाना चाहिए. सरकार को छावनी परिषदों के विलय पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि हमारा इतिहास ही खत्म हो जाएगा. अगर विलय होता है तो कर्मचारी कहां जाएंगे इसे लेकर फिक्र सता रही है. इस बात पर प्रधान निदेशक रक्षा संपदा भावना सिंह ने कहा कि यह भारत सरकार का निर्णय होगा कि छावनी परिषदों का विलय करना है या नहीं? इसमें हमारा कोई वश नहीं चलेगा. लेकिन वर्तमान में छावनी परिषदों की जो भी समस्याएं हैं, उन्हें हम जरूर दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. जिन कर्मचारियों का एसीपी या एरियर बकाया है उसका जल्द से जल्द भुगतान कैसे हो, इसे लेकर हम कदम उठा रहे हैं.

विभिन्न छावनी परिषदों के प्रतिनिधियों ने समस्या उठाई कि उन्हें छावनी के अस्पतालों में पैसे देकर पर्चा बनवाना पड़ता है. 10 रुपए का पर्चा लगता है. इसके अलावा दवा के लिए भी पैसे देने होते हैं, जबकि ऐसा कोई आदेश नहीं है. तमाम छावनी परिषद में मुफ्त में दवा मिलती है. इस पर बैठक में मौजूद कई छावनी परिषद के प्रतिनिधियों ने हामी भी भरी. इसके बाद प्रधान निदेशक रक्षा संपदा भावना सिंह ने मीटिंग में मौजूद अधिकारियों से इसे गंभीरता से लेते हुए राहत देने की बात कही.

यह भी समस्या उठी कि इलाज के लिए जो कर्मचारी अपनी तरफ से पेमेंट करते हैं, उसकी प्रतिपूर्ति सिर्फ 40% फीसदी ही मिलती है. इस मामले को लेकर प्रधान निदेशक रक्षा संपदा ने साफ तौर पर कहा कि यह गंभीर विषय है, इस पर पूरा ध्यान देते हुए तत्काल राहत दिलाई जाएगी. छावनी परिषद के अस्पतालों में दवा और पर्चे के लिए पैसे लिए जाने को लेकर यह भी कहा गया कि कई अस्पतालों में पीपीपी मॉडल पर काम हो रहा है. ऐसे में हो सकता है कि इसी वजह से पैसे लिए जा रहे हों, लेकिन सभी के लिए एक ही तरह का नियम बनाया जाएगा. मृतक आश्रितों की भर्ती का भी मुद्दा रखा गया. कहा गया कि इतनी पोस्ट ही नहीं हैं कि मृतक आश्रितों तक की भर्ती पूरी हो पाए. इस ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.


मध्य कमान स्थित निदेशालय रक्षा संपदा में आयोजित बैठक में यह भी मुद्दा उठा कि जो टीचर फील्ड मैं नौकरी करते हैं, उन्हें तो दो माह की छुट्टी मिल जाती है, लेकिन जिनकी ऑफिस में ड्यूटी लगती है उन्हें छुट्टी ही नहीं मिलती. क्या उन्हें ओवर टाइम दिया जाएगा? इस पर उन्होंने कहा कि ये बिल्कुल गलत है. उन्हें छुट्टी मिलनी चाहिए. अगर आपके पास स्टाफ नहीं है तो स्टाफ की भर्ती करनी चाहिए. टीचर्स से काम नहीं लेना चाहिए. प्रधान निदेशक रक्षा संपदा भावना सिंह ने भरोसा दिया कि इस बजट में सबसे पहले कर्मचारियों का जो भी पैसा बकाया है. उसका ही भुगतान प्रमुखता से कराया जाएगा.

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