मेरठ : बागपत लोकसभा सीट जाटलैंड की बहुचर्चित सीट मानी जाती है. इस बार रालोद-भाजपा का गठबंधन है. इसके बावजूद यह पहला अवसर है जब चौधरी परिवार का कोई सदस्य खुद यहां से चुनावी रण में नहीं है. यहां की जनता ने कभी बीएसपी के हाथी और सपा की साइकिल को दिल्ली नहीं पहुंचने दिया. इस सीट से कई रोचक किस्से भी जुड़े हैं. आइए जानते हैं इस लोकसभा सीट की कई अहम जानकारियां, और भौगोलिक स्थिति...
यूपी में कई ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां से आज तक समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी कभी संसद तक नहीं पहुंच पाए. इन्हीं में से एक बागपत भी है. बागपत जाटलैंड की बहुचर्चित लोकसभा सीट है. इस सीट पर कई बार रालोद का कब्जा रहा है. यहां से नल और कमल के प्रत्याशी संसद पहुंचते रहे हैं. एक दौर था जब बागपत सीट को रालोद का मजबूत गढ़ कहा जाता था, लेकिन यहां की जनता चौधरी अजित सिंह को हरा चुकी है.
सपा-बसपा ने मंथन के बाद उतारे प्रत्याशी : इस बार भाजपा गठबंधन धर्म निभा रही है. नल से रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने पार्टी के सबसे पुराने कार्यकर्ता डॉ. राजकुमार सांगवान को प्रत्याशी बनाया है. भले ही प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की कितनी भी बार सरकारें क्यों न रहीं हों, लेकिन बागपत की जनता ने संसद जाने का मौका कभी साइकिल और हाथी को नहीं दिया. इस बार सपा व बसपा ने यहां बहुत विचार करके प्रत्याशी उतारे हैं.
16 प्रत्याशी कर चुके हैं नामांकन : सपा ने तो प्रत्याशी चयन के बाद पुनः अपनी रणनीति में बदलाव करके प्रत्याशी बदला है. बागपत लोकसभा से इस बार 16 प्रत्याशियों ने नामांकन किया. इनमें जांच के बाद नौ प्रत्याशियों के नामांकन पत्र निरस्त कर दिए गए. अब भाजपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी डाॅ. राजकुमार सांगवान, सपा प्रत्याशी अमरपाल शर्मा, बसपा प्रत्याशी प्रवीण बैंसला, आजाद अधिकार सेना के प्रत्याशी मुकेश कुमार शर्मा, सर्वजन समता पार्टी के महेंद्र सिंह, सर्वजन लोक शक्ति पार्टी की रूबी कश्यप और स्वतंत्र जनता राज पार्टी के सुखवीर सिंह मैदान में हैं. हालांकि आज नामांकन वापसी का आखिरी दिन है, उसके बाद यह तय हो जाएगा कि कुल कितने प्रत्याशी मैदान में रहते हैं.
सिवालखास व छपरौली विधानसभा पर रालोद का है कब्जा : बागपत लोकसभा सीट वर्ष 1967 में अस्तित्व में आई थी. इस लोकसभा क्षेत्र में बागपत जिला समेत गाजियाबाद और मेरठ का कुछ इलाका भी आता है. बागपत लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा हैं. इनमें बागपत जिले की छपरौली, बड़ौत और बागपत के अलावा गाजियाबाद जिले की मोदी नगर विधानसभा और मेरठ की सिवालखास विधानसभा भी शामिल हैं. इन विधानसभाओं की अगर बात करें तो वर्तमान में बड़ौत, बागपत और मोदीनगर विधानसभा पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि सिवालखास और छपरौली विधानसभा पर रालोद का.
1962 में कांग्रेस प्रत्याशी ने दर्ज की थी जीत : पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह को यहां की जनता ने कई बार चुनाव जिताया. उनके पौत्र जयंत को हराया भी है. 1957 और 1962 के चुनावों में बागपत लोकसभा क्षेत्र क्षेत्र सरधना लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हुआ करता था. 1962 में कांग्रेस के कृष्ण चंद्र शर्मा सरधना लोकसभा से चुनाव जीते थे, जिन्होंने निर्दलीय रघुवीर सिंह शास्त्री को पराजित किया था.
1967 में बागपत लोकसभा क्षेत्र बन गया तो निर्दलीय रघुवीर सिंह शास्त्री ने कांग्रेस के कृष्ण चंद्र शर्मा को पराजित किया. 1971 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के रामचंद्र विकल चुनाव जीतने में सफल रहे. इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव में चौधरी चरण सिंह बागपत सीट से चुनाव में उतरे. तब कांग्रेस के रामचंद्र विकल को उन्होंने 1लाख 21 हजार वोटों से शिकस्त दी थी.
1996 में सपा ने मुखिया गुर्जर को मैदान में उतारा था : 1996 में सपा ने मुखिया गुर्जर और बसपा ने चरण सिंह त्यागी को मैदान में उतारा था, लेकिन कांग्रेस के चुनावी रण में उतरे रालोद के दिवंगत नेता अजित सिंह ने तब यहां से जीत दर्ज की थी. देश में फिर एक बार 1997 में लोकसभा चुनाव हुए चौधरी अजित सिंह निर्दलीय लड़े और जीते. 1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां सोमपाल शास्त्री को अजित सिंह के सामने मैदान में उतारा और सोमपाल शास्त्री ने अजित सिंह को चुनाव हरा दिया.
2004 और 2009 के चुनाव में भाजपा दूसरे नंबर पर रही : इसके बाद बीजेपी ने उन्हें पुरस्कार स्वरूप मंत्री भी बनाया. उस चुनाव में सपा से डाॅ. मेहराजुद्दीन चुनाव मैदान में उतरे थे तो वहीं बसपा से अजय ने चुनाव लड़ा था, लेकिन दोनों प्रत्याशी तीसरे और चौथे नंबर की लड़ाई ही लड़ते दिखे. 1999 में लोकसभा चुनाव हुए तो अजित सिंह का बागपत की जनता ने फिर से साथ दिया और उसके बाद अजित सिंह का साथ यहां की जनता को पसंद आता गया, यही वजह है कि फिर तो 2004 और 2009 में भी अजित सिंह बागपत में चुनाव जीतकर संसद पहुंचते रहे. बीजेपी दूसरे नंबर पर रही.
2014 के चुनाव में मोदी लहर ने बदले समीकरण : देश में 2014 के लोकसभा चुनाव हुए तो मोदी लहर में अजित सिंह का साथ भी जनता ने नहीं दिया. यहां से भाजपा प्रत्याशी मुंबई पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह के सिर जीत का सेहरा बंधा. सपा प्रत्याशी गुलाम मोहम्मद तब दूसरे नंबर पर रहे थे और अजित सिंह गुलाम मोहम्मद से भी कम वोट पाए थे. यह पहला मौका था जब रालोद को यहां बुरी तरह से पराजय का सामना करना पड़ा था. अजित सिंह को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था.
2019 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो रालोद ने युवा चेहरे के तौर पर जयंत को यहां से खड़ा किया. बीजेपी ने अपने सांसद सत्यपाल सिंह को फिर प्रत्याशी बनाया. डॉक्टर सत्यपाल सिंह ने कुल 32.53 प्रतिशत लोगों का समर्थन पाकर चुनाव जीत लिया, हालांकि 50.29 प्रतिशत वोट उन्हें तब यहां मिले थे. RLD प्रत्याशी जयंत चौधरी को दूसरे स्थान पर रहना पड़ा था. जयंत चुनाव जीत नहीं पाए लेकिन 502287 वोट उन्हें यहां तब मिले थे. संसदीय सीट के कुल मतदाताओं में 31.07 प्रतिशत का समर्थन उन्हें मिला था.उन्हें कुल डाले गए वोटों में से 48.04 प्रतिशत वोट मिले थे. 23502 वोट से सत्यपाल सिंह चुनाव जीते थे.
सपा-बसपा का प्रदर्शन सुधरा, लेकिन नहीं मिली जीत : अब इस बार रालोद और भाजपा एक साथ हैं. ऐसे में सपा और बसपा अपनी रणनीति बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं. देखने वाली बात यह होगी कि परिणाम क्या आता है. भाजपा ने दो बार के सांसद का टिकट काटकर रालोद को यह सीट दे दी है. खास बात यह भी है कि बागपत लोकसभा सीट के अस्तित्व में आने के बाद सिर्फ एक बार ही गैर जाट यहां चुनाव जीत पाया है. सपा-बसपा अपना अपना पिछला प्रदर्शन जरूर सुधारती दिखी हैं. इसके बावजूद बागपत की जनता उनके दावों को खारिज करती आई हैं.
बागपत लोकसभा सीट में 1996 से अब तक के विजेता प्रत्याशी : 1996 चौधरी अजित सिंह (कांग्रेस), 1997 चौधरी अजित सिंह (निर्दलीय), 1998 सोमपाल शास्त्री (भाजपा), 1999 चौधरी अजित सिंह (रालोद), 2004 चौधरी अजित सिंह (रालोद), 2009 चौधरी अजित सिंह (रालोद), 2014 सत्यपाल सिंह (भाजपा), 2019 सत्यपाल सिंह (भाजपा).
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