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ये कैसा 'रक्षा' बंधन? देहरादून के 'निर्भया' कांड से सुलगे कई सवाल, महिला अपराधों ने बढ़ाई 'तपिश' - Women crime and Rakshabandhan - WOMEN CRIME AND RAKSHABANDHAN

Women Crime And Raksha Bandhan, Rape Cases in Uttarakhand, Dehradun ISBT Gang Rape Case: देशभर में बढ़ते महिला अपराधों के बीच रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा रहा है. आज जहां सभी भाई अपनी बहनों की रक्षा, सुरक्षा, सम्मान का संकल्प लेंगे, वहीं, इस बीच बाहर न जाने कितनी ही महिलाओं पुरुषों की ज्यादती का शिकार हो रही होंगी. दहेज, यौन उत्पीड़न, दुष्कर्म जैसी घटनाओं पर समाज प्रदर्शन, कैंडल मार्च निकालकर इतिश्री कर लेता है. इसके बाद हालात बदले या नहीं, इससे किसी को कुछ लेना देना नहीं होता है.

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ये कैसा 'रक्षा' बंधन? (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 19, 2024, 5:53 PM IST

Updated : Aug 19, 2024, 7:21 PM IST

मनोचिकित्सक डॉ. निशा सिंगला का बयान (वीडियो- ETV Bharat)

देहरादून: देशभर में आज रक्षाबंधन धूमधाम से मनाया जा रहा है. बहनें अपने भाईयों की कलाईयों पर भरोसे का धागा बांध रही हैं. ये भरोसा न केवल अपनी बहनों की रक्षा, सुरक्षा का है बल्कि समाज की हर महिला के सम्मान से जुड़ा है, मगर इन कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं हुई हैं जिससे इस भरोसे को तार तार किया है. देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में भी महिला सुरक्षा, सम्मान को कलंकित करने वाली खबरें सामने आई. रुद्रपुर नर्स रेप हत्याकांड, देहरादून नाबालिग गैंगरेप, हल्द्वानी सुशीला तिवारी अस्पताल में नाबालिग से दुष्कर्म का प्रयास, ये वो घटनाएं हैं जो बीते कुछ दिनों में सामने आई हैं. इन सभी घटनाओं ने महिला सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हुए हैं.

निर्भया कांड के बाद भी नहीं बदले हालात: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में घटे निर्भया कांड को याद कर आज भी सिरहन हो उठती है. इतने विभत्स कांड का दाग देश के दामन पर लगने के 12 साल बाद कोलकाता में एक बहन के साथ फिर ऐसा ही कृत्य किया जाता है. फिर देश एकजुट होकर सड़कों पर उतरता है. ये आंदोलन हो रही रहा होता है कि देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में निर्भया कांड को दोहराया जाता है. उत्तराखंड परिवहन की बस में मानसिक रूप से कमजोर किशोरी को पांच 'राक्षसों' के कारण फिर उसी दर्दनाक स्थिति से गुजरना पड़ता है.

दुष्कर्म की घटनाओं से उठे सवाल: ये जो भी घटनाएं सामने आई हैं उसके बाद कुछ सवाल हैं जो अनायास ही जहन में आते हैं. जो लोग ऐसा दानवी कृत्य करते हैं उन आरोपियों का भी तो घर परिवार होगा. घर में मां-बहनें होंगी. वो इसके बाद कैसे अपने घर-परिवार में रह पाते हैं. इन आरोपियों ने भी तो बीते सालों में रक्षाबंधन के त्योहार पर अपनी बहनों से राखियां बंधवाई होंगी. उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिया होगा. ये लोग भी तो अपने घर की महिलाओं के सम्मान के लिए आवाज बुलंद करते होंगे, फिर घर से बाहर निकलते ही अन्य महिलाओं के लिए इनकी भावनाएं कैसे बदल गई?

सवाल कुछ और भी हैं...: कैसे इन सभी आरोपियों ने इस तरह की जघन्य घटनाओं को अंजाम दिया? कैसे ये जघन्य अपराध करते वक्त इनके हाथ नहीं कांपे, कैसे इनको अपनी बहनों का ख्याल नहीं आया? क्या दुष्कर्म, हत्या के आरोपी महिलाओं का सम्मान, सुरक्षा चेहरा या रिश्ता देखकर करते हैं? इन सब घटनाओं को देखकर तो ऐसा ही लगता है.

इन घटनाओं में शामिल आरोपियों को भरा-पूरा परिवार है. देहरादून ISBT गैंगरेप की बात करें तो इस घटना में शामिल आरोपियों की उम्र 30 से 57 साल के बीच है. ये सभी अपने परिवार चलाने के लिए ही नौकरी करते हैं. सवाल यहां केवल आरोपियों का ही नहीं हैं. बल्कि ये भी है कि ऐसा कृत्य करने वाले लोगों के परिवार को किस घृणा से गुरजना पड़ता होगा. कोई मां-बाप अपने बेटे को हाथों में हथकड़ी लगाए नहीं देखना चाहते और वो भी ऐसा घृणित कार्य को करने के बाद. उन मां-बाप पर क्या गुजरती होगी. उस बहन पर क्या गुजरती होगी जो कल तक उस भाई के घर आने पर जश्न मनाती थी, जो उसके हाथ पर राखी बांधकर उसे अपनी रक्षा का दायित्व सौंपती थी.

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक: ऐसी घटनाओं के सामने आने के बाद ये आरोपी क्या कभी अपनी परिवार की महिलाओं को मुंह दिखा पाएंगे? क्या इनके परिवार की महिलाएं इनके साथ बाहर जाने में सुरक्षित महसूस कर पाएंगी? क्यों वो ऐसे लोगों को माफ कर पाएंगी? ऐसे कई सवाल हैं जो जहन में आते हैं. इन्ही सवालों को लेकर मनोचिकित्सक की राय जाननी चाही. गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सालय में कार्यरत साइकियाट्रिक डॉ. निशा सिंगला ने कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज में महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए रेप और हत्या व देहरादून आईएसबीटी में 16 वर्षीय किशोरी के साथ हुई रेप की घटना पर चिंता जाहिर की है.

उन्होंने कहा कि दरिंदगी का शिकार हुई महिलाओं के परिजनों पर दुखों का पहाड़ टूट जाता है. आईएसबीटी में दुष्कर्म की शिकार हुई किशोरी की यात्रा के दौरान किसी ने मदद नहीं की बल्कि मदद के नाम पर कुछ लोगों ने इसका फायदा उठाते हुए उसके साथ यौन शोषण किया. उन्होंने कहा कि महिलाओं पर आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने वाले एंटी सोशल होते हैं और सोसाइटी में अच्छा रोल प्ले करने में इनकी कोई भूमिका नहीं होती. बल्कि ऐसे लोगों का व्यवहार घर में भी इसी प्रकार का होता है.

इस तरह की लोगों की प्रवृत्ति हमेशा नकारात्मक रहती है. ऐसे लोग महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझते हैं. इस तरह के कृत्यों को अंजाम देने वाले लोगों को किसी का भय नहीं होता, लेकिन ऐसी मानसिकता के लोगों के अंदर डर होना जरूरी है. डॉ निशा सिंगला ने उत्तराखंड में एक नाबालिक लड़की के साथ रोडवेज बस में हुए रेप मामले में सभी ड्राइवर और कंडक्टरों का मेडिकल एग्जामिनेशन अनिवार्य रूप से कराये जाने की मांग की है.

उन्होंने महिलाओं पर बढ़ते रेप और हत्या के मामलों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनकी ओपीडी में कई मरीज ऐसे आते हैं, जो सरकारी विभागों और स्कूलों में कार्यरत हैं, लेकिन नशे के आदी हैं उन्होंने कहा कि अपॉइंटमेंट से पहले टीचरों, गार्ड्स, हेल्परों, डॉक्टरों, फार्मासिस्टों, बॉर्ड ब्वॉय, ड्राइवरों, कंडक्टरों के मेडिकल एग्जामिनेशन की अनिवार्यता होनी चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि वह नशे का आदी तो नहीं है. एक सरल प्रक्रिया के तहत यूरीन की जांच करके यह पता लगाया जा सके कि वो ड्रग एडिक्ट तो नहीं है, इसका पता चलते ही उस व्यक्ति का तत्काल अपॉइंटमेंट रिजेक्ट कर देना चाहिए.

क्या हैं रक्षाबंधन के मायने: रक्षाबंधन केवल रक्षा सूत्र का ही त्योहार नहीं है. रक्षा बंधन बहनों के साथ ही महिलाओं के सम्मान का प्रतीक है. समाज में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को लेकर आवाज बुलंद करने का त्योहार है. रक्षाबंधन महिलाओं की रक्षा का प्रतीक है. इस रक्षाबंधन पर न सिर्फ अपनी बहनों बल्कि सभी महिलाओं के सम्मान का संकल्प लें. महिलाओं की न केवल बल्कि ही सुरक्षा भी हम सभी की जिम्मेदारी है. अगर हम अपनी जिम्मेदारी को सही से निभा पाएंगे तभी रक्षाबंधन शब्द के मायने फलीभूत होंगे.

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मनोचिकित्सक डॉ. निशा सिंगला का बयान (वीडियो- ETV Bharat)

देहरादून: देशभर में आज रक्षाबंधन धूमधाम से मनाया जा रहा है. बहनें अपने भाईयों की कलाईयों पर भरोसे का धागा बांध रही हैं. ये भरोसा न केवल अपनी बहनों की रक्षा, सुरक्षा का है बल्कि समाज की हर महिला के सम्मान से जुड़ा है, मगर इन कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं हुई हैं जिससे इस भरोसे को तार तार किया है. देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में भी महिला सुरक्षा, सम्मान को कलंकित करने वाली खबरें सामने आई. रुद्रपुर नर्स रेप हत्याकांड, देहरादून नाबालिग गैंगरेप, हल्द्वानी सुशीला तिवारी अस्पताल में नाबालिग से दुष्कर्म का प्रयास, ये वो घटनाएं हैं जो बीते कुछ दिनों में सामने आई हैं. इन सभी घटनाओं ने महिला सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हुए हैं.

निर्भया कांड के बाद भी नहीं बदले हालात: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में घटे निर्भया कांड को याद कर आज भी सिरहन हो उठती है. इतने विभत्स कांड का दाग देश के दामन पर लगने के 12 साल बाद कोलकाता में एक बहन के साथ फिर ऐसा ही कृत्य किया जाता है. फिर देश एकजुट होकर सड़कों पर उतरता है. ये आंदोलन हो रही रहा होता है कि देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में निर्भया कांड को दोहराया जाता है. उत्तराखंड परिवहन की बस में मानसिक रूप से कमजोर किशोरी को पांच 'राक्षसों' के कारण फिर उसी दर्दनाक स्थिति से गुजरना पड़ता है.

दुष्कर्म की घटनाओं से उठे सवाल: ये जो भी घटनाएं सामने आई हैं उसके बाद कुछ सवाल हैं जो अनायास ही जहन में आते हैं. जो लोग ऐसा दानवी कृत्य करते हैं उन आरोपियों का भी तो घर परिवार होगा. घर में मां-बहनें होंगी. वो इसके बाद कैसे अपने घर-परिवार में रह पाते हैं. इन आरोपियों ने भी तो बीते सालों में रक्षाबंधन के त्योहार पर अपनी बहनों से राखियां बंधवाई होंगी. उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिया होगा. ये लोग भी तो अपने घर की महिलाओं के सम्मान के लिए आवाज बुलंद करते होंगे, फिर घर से बाहर निकलते ही अन्य महिलाओं के लिए इनकी भावनाएं कैसे बदल गई?

सवाल कुछ और भी हैं...: कैसे इन सभी आरोपियों ने इस तरह की जघन्य घटनाओं को अंजाम दिया? कैसे ये जघन्य अपराध करते वक्त इनके हाथ नहीं कांपे, कैसे इनको अपनी बहनों का ख्याल नहीं आया? क्या दुष्कर्म, हत्या के आरोपी महिलाओं का सम्मान, सुरक्षा चेहरा या रिश्ता देखकर करते हैं? इन सब घटनाओं को देखकर तो ऐसा ही लगता है.

इन घटनाओं में शामिल आरोपियों को भरा-पूरा परिवार है. देहरादून ISBT गैंगरेप की बात करें तो इस घटना में शामिल आरोपियों की उम्र 30 से 57 साल के बीच है. ये सभी अपने परिवार चलाने के लिए ही नौकरी करते हैं. सवाल यहां केवल आरोपियों का ही नहीं हैं. बल्कि ये भी है कि ऐसा कृत्य करने वाले लोगों के परिवार को किस घृणा से गुरजना पड़ता होगा. कोई मां-बाप अपने बेटे को हाथों में हथकड़ी लगाए नहीं देखना चाहते और वो भी ऐसा घृणित कार्य को करने के बाद. उन मां-बाप पर क्या गुजरती होगी. उस बहन पर क्या गुजरती होगी जो कल तक उस भाई के घर आने पर जश्न मनाती थी, जो उसके हाथ पर राखी बांधकर उसे अपनी रक्षा का दायित्व सौंपती थी.

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक: ऐसी घटनाओं के सामने आने के बाद ये आरोपी क्या कभी अपनी परिवार की महिलाओं को मुंह दिखा पाएंगे? क्या इनके परिवार की महिलाएं इनके साथ बाहर जाने में सुरक्षित महसूस कर पाएंगी? क्यों वो ऐसे लोगों को माफ कर पाएंगी? ऐसे कई सवाल हैं जो जहन में आते हैं. इन्ही सवालों को लेकर मनोचिकित्सक की राय जाननी चाही. गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सालय में कार्यरत साइकियाट्रिक डॉ. निशा सिंगला ने कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज में महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए रेप और हत्या व देहरादून आईएसबीटी में 16 वर्षीय किशोरी के साथ हुई रेप की घटना पर चिंता जाहिर की है.

उन्होंने कहा कि दरिंदगी का शिकार हुई महिलाओं के परिजनों पर दुखों का पहाड़ टूट जाता है. आईएसबीटी में दुष्कर्म की शिकार हुई किशोरी की यात्रा के दौरान किसी ने मदद नहीं की बल्कि मदद के नाम पर कुछ लोगों ने इसका फायदा उठाते हुए उसके साथ यौन शोषण किया. उन्होंने कहा कि महिलाओं पर आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने वाले एंटी सोशल होते हैं और सोसाइटी में अच्छा रोल प्ले करने में इनकी कोई भूमिका नहीं होती. बल्कि ऐसे लोगों का व्यवहार घर में भी इसी प्रकार का होता है.

इस तरह की लोगों की प्रवृत्ति हमेशा नकारात्मक रहती है. ऐसे लोग महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझते हैं. इस तरह के कृत्यों को अंजाम देने वाले लोगों को किसी का भय नहीं होता, लेकिन ऐसी मानसिकता के लोगों के अंदर डर होना जरूरी है. डॉ निशा सिंगला ने उत्तराखंड में एक नाबालिक लड़की के साथ रोडवेज बस में हुए रेप मामले में सभी ड्राइवर और कंडक्टरों का मेडिकल एग्जामिनेशन अनिवार्य रूप से कराये जाने की मांग की है.

उन्होंने महिलाओं पर बढ़ते रेप और हत्या के मामलों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनकी ओपीडी में कई मरीज ऐसे आते हैं, जो सरकारी विभागों और स्कूलों में कार्यरत हैं, लेकिन नशे के आदी हैं उन्होंने कहा कि अपॉइंटमेंट से पहले टीचरों, गार्ड्स, हेल्परों, डॉक्टरों, फार्मासिस्टों, बॉर्ड ब्वॉय, ड्राइवरों, कंडक्टरों के मेडिकल एग्जामिनेशन की अनिवार्यता होनी चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि वह नशे का आदी तो नहीं है. एक सरल प्रक्रिया के तहत यूरीन की जांच करके यह पता लगाया जा सके कि वो ड्रग एडिक्ट तो नहीं है, इसका पता चलते ही उस व्यक्ति का तत्काल अपॉइंटमेंट रिजेक्ट कर देना चाहिए.

क्या हैं रक्षाबंधन के मायने: रक्षाबंधन केवल रक्षा सूत्र का ही त्योहार नहीं है. रक्षा बंधन बहनों के साथ ही महिलाओं के सम्मान का प्रतीक है. समाज में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को लेकर आवाज बुलंद करने का त्योहार है. रक्षाबंधन महिलाओं की रक्षा का प्रतीक है. इस रक्षाबंधन पर न सिर्फ अपनी बहनों बल्कि सभी महिलाओं के सम्मान का संकल्प लें. महिलाओं की न केवल बल्कि ही सुरक्षा भी हम सभी की जिम्मेदारी है. अगर हम अपनी जिम्मेदारी को सही से निभा पाएंगे तभी रक्षाबंधन शब्द के मायने फलीभूत होंगे.

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Last Updated : Aug 19, 2024, 7:21 PM IST
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