लखनऊ: यूपी में वैसे तो कई माफिया और कुख्यात अपराधी रहे हैं लेकिन, यदि मनबढ़ अपराधी की बात की जाए तो सबसे ऊपर श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम आता है. वैसे तो देश का सबसे पहला एनकाउंटर मुंबई में वडाला में मान्या सुर्वे का था लेकिन, यूपी में एनकाउंटर तब चर्चित हुआ जब श्रीप्रकाश शुक्ला ढेर किया गया.
दरअसल, गोरखपुर में जन्मा श्रीप्रकाश शुक्ला, पूर्वांचल का कब सबसे बड़ा शार्प शूटर बन गया पुलिस को पता ही नहीं चला. बिहार, गोरखपुर और लखनऊ में कई बड़ी घटनाओं को अंजाम देने के बाद श्रीप्रकाश ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या के लिए पांच करोड़ की सुपारी ले ली थी. जिसके बाद उसे जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिए 4 मई 1998 को तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने 50 जवानों का एक स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाया था.
प्रेमिका का नम्बर सर्विलांस पर लगाकर शुक्ला को किया था ढेर: यूपी एसटीएफ का हिस्सा रहे पूर्व आईपीएस राजेश पांडे बताते है कि श्रीप्रकाश शुक्ला तक पहुंचने के लिए टीम के पास एक भी लीड नहीं थी. ऐसे में हमने उसकी प्रेमिका के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर रखा. श्रीप्रकाश तो खुद अलग-अलग नम्बर और पीसीओ से कॉल करता था लेकिन, उसकी प्रेमिका का नम्बर सर्विलांस पर लेने से श्रीप्रकाश की हर गतिविधि एसटीएफ को मिल रही थी.
इसी दौरान 23 सितम्बर 1998 को जानकारी हुई कि शुक्ला गाजियाबाद के इंदिरापुरम में अपनी प्रेमिका से मिलने जा रहा है. STF ने पीछा किया, जिसे देख श्रीप्रकाश ने टीम के ऊपर फायर झोंक दिया. जवाबी कार्रवाई में यूपी के मोस्ट वांटेड अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला को मार गिराया गया.
कालिया के लिए दूल्हा-बराती बनी थी पुलिस: जिस वक्त पूर्वांचल में श्रीप्रकाश शुक्ला की माफियागिरी चल रही थी, उस दौरान लखनऊ में एक छोटा मोटा अपराधी रमेश कालिया बड़ा माफिया बनने की कोशिश में लगा था. लखनऊ और आसपास के जिलों में व्यापारियों से रंगदारी वसूलना, ठेके पर हक जमाना रमेश कालिया का प्रमुख काम था. वर्ष 2002 में बाराबंकी में सपा नेता रघुनाथ यादव समेत तीन लोगों की हत्या हुई और आरोप लगा रमेश कालिया पर, इसके बाद से उसका नाम बड़े अपराधियों में गिना जाने लगा.
वर्ष 2004 में उन्नाव में सपा एमएलसी और बाहुबली अजीत सिंह की हत्या हो गयी और इसके पीछे भी रमेश कालिया का ही नाम आया. जिसके बाद लखनऊ पुलिस किसी भी हाल में रमेश कालिया पर लगाम लगाना चाहती थी. जिसकी जिम्मेदारी तेज तर्रार आईपीएस नवनीत शिकेरा को दी गई. नवनीत शिकेरा ने एक स्पेशल टीम बनाई. लेकिन, रमेश पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ रहा था.
इसी दौरान कालिया ने एक बिल्डर इम्तियाज से 5 लाख रुपए की रंगदारी मांगी. पुलिस ने इम्तियाज के सहारे कालिया को पकड़ने की प्लानिंग की. आईपीएस नवनीत शिकेरा के कहने पर इम्तियाज ने कालिया को रंगदारी देने के लिए कॉल किया, जगह और समय तय हो गया.
12 फरवरी 2005 को इम्तियाज कालिया को पैसे देने पहुंचा. उसी जगह नवनीत शिकेरा और उनकी टीम बरात लेकर पहुंच गए. कालिया का घर लखनऊ के नील मत्था में था. बाहर बराती बन कर पुलिस खड़ी थी और अंदर इम्तियाज व कालिया के बीच पैसों को लेकर बहस हो रही थी. इसी दौरान दूल्हा और बराती बनी पुलिस ने कालिया के घर पर धावा बोल दिया. करीब आधे घंटे तक दोनों ओर से फायरिंग होने के बाद आखिरकार पुलिस ने रमेश कालिया को मार गिराया था.
कैसे मारा गया था निर्भय गुर्जर: यूपी और मध्य प्रदेश के बिहड़ में डकैत निर्भय गुर्जर का एक छत्र राज चलता था. यही वजह है कि दोनों राज्यों की सरकार ने उस पर 2.5-2.5 लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा था. निर्भय गुर्जर सिर्फ लूट और डकैती ही नहीं करता था बल्कि लोगों के हाथ पैर भी काट देता था.
उसके खिलाफ दोनों राज्यों में कुल 200 मुकदमे दर्ज थे. लिहाजा निर्भय की गिरफ्तारी लिए एक स्पेशल टीम बनाई गई. इसमें आईपीएस दलजीत चौधरी, आईपीएस अखिल कुमार समेत एक दर्जन पुलिस कर्मियों को शामिल किया गया. फिर चम्बल के जंगलों में पुलिस टीम एक माह तक कॉम्बिग करती रही. 8 नवंबर 2005 को निर्भय गुर्जर मिल गया और उसे टीम ने एनकाउंटर में ढेर कर दिया.
ददुआ के एनकाउंटर में खर्च हुए थे 80 करोड़: वैसे तो चम्बल में कई दुर्दांत डकैत रहे, लेकिन ददुआ का आतंक सबसे अधिक था. ददुआ ने करीब 250 हत्याएं की थीं. उसके खिलाफ मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में कुल 400 मुकदमे दर्ज थे. यूपी में उसके खिलाफ 10 लाख का इनाम घोषित था. ददुआ को भी पकड़ने का जिम्मा यूपी STF को ही सौंपा गया. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती थी कि बीहड़ में ददुआ को पकड़ा इतना आसान नहीं था.
ऐसे में उस वक्त ददुआ को पकड़ने के लिए लीड कर रहे अमिताभ यश ने खास प्लानिंग करते हुए पहली बार जंगल में एम्बुश लगाया. मुखबिर की सहायता से ददुआ के ठिकाने का पता चला और धीरे-धीरे एसटीएफ ददुआ के करीब पहुंचती गई. 22 जुलाई 2007 को जब ददुआ गैंग व STF का आमना सामना हुआ तो गैंग सदस्यों समेत ददुआ भी मारा गया. मिशन ददुआ में करीक 80 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे.
घनश्याम केवट को मारने के लिए घर में लगा दी थी आग: निर्भय गुर्जर, ददुआ की ही तरह घनश्याम केवट एक कुख्यात डकैत था. भले ही इस एनकाउंटर की कहानी फिल्मी हो लेकिन इसका लाइव टेलीकास्ट पूरी दुनिया ने देखा था. तीन दिन तक चले इस एनकाउंटर में चार पुलिसकर्मी शहीद हुए थे. आखिर में घनश्याम को मारने के लिए पुलिस को घर में आग तक लगानी पड़ी थी.
दरअसल, पुलिस को चित्रकूट के जामोली गांव में घनश्याम के छुपे होने की जानकारी मिली. सुचना मिलते ही 14 जून 2009 को करीब पांच सौ पुलिसकर्मियों ने उस गांव को घेर लिया. डकैत घनश्याम गांव के एक घर में छिपा हुआ था. वहीं से घनश्याम लगातार फायरिंग करता रहा. तीन दिन तक दोनों ओर से फायरिंग हुई जिसमें चार पुलिसकर्मी शहीद हो गए. आखिर में 16 जून को घनश्याम को निकालने के लिए घर में पुलिस ने आग लगा दी. आग भड़कते ही घनश्याम बाहर निकलकर भागने लगा और फिर एनकाउंटर में ढेर कर दिया गया.
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