पटनाः बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे की किताब 'आरोग्य पथ पर बिहार जन स्वास्थ्य का मंगल काल' का विमोचन हुआ. बिहार में एनडीए कार्यकाल में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर किए गए कामों पर यह पुस्तक लिखी गयी है. किताब के विमोचन समारोह में बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर, दोनों उपमुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, विधानसभा परिषद के सभापति सहित कई मंत्री और विधायक मौजूद रहे. प्रभात प्रकाशन से आई इस किताब को लेकर मंगल पांडे से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की.
सवाल : आपके मन में यह बात कैसे आई कि मंत्री मंगल पांडे ने बहुत काम कर लिया, अब लिखा जाए. क्या लेखक मन दबा हुआ था?
मंगल पांडे : मैं लगातार 5 वर्ष से अधिक स्वास्थ्य मंत्री रहा, यह बिहार में किसी भी मंत्री का सर्वाधिक कार्यकाल है. कुछ दिनों के लिए मैं हटा था, उस वक्त जो मुझे खाली समय मिला, मेरे मन में यह विषय जरूर आया कि एनडीए के शासनकाल में जो 2005 से लेकर स्वास्थ्य सेवाएं, जो नीतीश कुमार के नेतृत्व में बेहतर हुई है, उन सारी चीजों को जनता के सामने जरूर प्रस्तुत करना चाहिए. हम कहां से चले थे और कहां पहुंच गए.
सवाल : आप संगठन से जुड़े हुए हैं, पश्चिम बंगाल के प्रभारी भी हैं, मंत्री भी हैं, लिखने का समय कैसे निकाले?
मंगल पांडे : मेरा कोशिश होती है कि मैं समय का सदुपयोग करूं. जब मैं यात्रा करता हूं तो मैं यह काम करता हूं. चाहे मैं गाड़ी में रहूं या कहीं भी रहूं. मैं उस हर मिनट का उपयोग करता हूं. लिखने में, पढ़ने में, संवाद स्थापित करने में, इस पुस्तक की भी जो पूरी यात्रा है, लगभग डेढ़ वर्ष लग गए. इस पुस्तक को लिखने में डेढ़ साल में जब जब मैं यात्रा पर रहा उस कार्यकाल में मैंने इस पुस्तक को लिखा है.
सवाल : कितना अंतर पाते हैं एक मंत्री मंगल पांडे में और एक लेखक मंगल पांडे में?
मंगल पांडे : अंदर की सोच, अंदर की आवाज, अंदर के विचार, भविष्य की सोच और संभावनाएं, टारगेट सब कुछ मेरे अंदर था. मैं अपने संपादक विनोद दुबे का भी धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने इस पूरे लेखन में मेरी किताब का संपादन किया.
सवाल : इस किताब में ऐसी कौन सी बात है जब मंगल पांडे को लगा कि बहुत कठिन है. जिसे लिखने में वक्त लगा?
मंगल पांडे : कोरोना काल का पूर्ण समय जो था, 2 साल का वक्त था. इसका एक-एक शब्द मुझे बहुत सोच कर लिखना पड़ा. संपूर्ण मानव जीवन के लिए वह एक चुनौती भरा क्षण था. निश्चित तौर पर स्वास्थ्य मंत्री के के नाते मेरे लिए भी बहुत चुनौती थी. वैश्विक रूप से जिस प्रकार की खबरें चल रही थी, मन में भय रहता था, घबराहट में रहते थे, पता नहीं कैसे संभालेंगे? जो भी हमारे पास संसाधन थे उसके सहारे उसे ठीक किया था. उसकी चर्चा इस पुस्तक में की है.
सवाल : यह किताब किन लोगों के लिए लाभदायक होगा.
मंगल पांडे : मैं समझता हूं कि जो लोग स्वास्थ्य सेवाओं में शोध कर रहे हैं, जो स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी प्राप्त करना चाहे, जो राजनीतिक रूप से समझना चाहे कि 2005 के पहले सेवा स्वास्थ्य सेवा बिहार में कैसी थी और आज कैसी है. वह अवलोकन कर सकते हैं. तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं. जो हेल्थ सेक्टर में काम करने वाले डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ है, वह भी पढ़ेंगे तो उन्हें ध्यान में आएगा कि स्पेशलाइजेशन होता है.
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