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हाईकोर्ट का अहम फैसला; शादी में मिले गिफ्ट की लिस्ट बनाएं वर-वधू पक्ष; साइन करके वेरीफाई करें; सरकार भी बनाए नियम - High Court

इलाहाबाद हाई कोर्ट दहेज मामले की याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. वर और वधू पक्ष को शादी में मिले उपहारों की सूची कर सत्यापन कराना चाहिए. सरकार को ऐसे कानून पर विचार करना चाहिए.

इलाहाबाद हाई कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट (Photo Credit: Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 15, 2024, 10:36 PM IST

Updated : May 16, 2024, 11:14 AM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि वर और वधू पक्ष को शादी में मिले उपहारों की सूची बनानी चाहिए. इस तरह की सूची को दोनों पक्ष अपने-अपने हस्ताक्षर बना कर सत्यापित भी करे. इससे दहेज संबंधित विवादों के निपटारे में आसानी होगी. कोर्ट ने राज्य सरकार से भी जानकारी मांगी है कि क्या सरकार ने दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत कोई नियम बनाया है, यदि नहीं बनाया तो इस पर विचार करे. अंकित सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने यह आदेश दिया.

कोर्ट ने कहा कि दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 कानून में यह भी नियम है कि वर एवं वधू को मिलने वाले उपहारों की सूची बननी चाहिए. इससे यह स्पष्ट होगा कि क्या-क्या मिला था. शादी के दौरान रिश्तेदारों से मिलने वाले सभी उपहारों को दहेज के दायरे में नहीं रखा जा सकता है. कोर्ट ने पूछा कि दहेज की मांग के आरोप लगाने वाले लोग अपनी शिकायत के साथ ऐसी सूची क्यों नहीं लगाते हैं. दहेज प्रतिषेध अधिनियम का सही तरीके से पालन होना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि नियमावली के अनुसार दहेज और उपहारों में अंतर है. 'दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 को इसी भावना के तहत बनाया गया था कि भारत में शादियों में गिफ्ट देने का रिवाज है. भारत की परंपरा को समझते हुए ही उपहारों को अलग रखा गया है. दहेज प्रतिषेध अधिकारियों की भी तैनाती की जानी चाहिए. लेकिन आज तक शादी में ऐसे अधिकारियों को नहीं भेजा गया. राज्य सरकार को बताना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों नहीं किया, जबकि दहेज की शिकायतों से जुड़े मामले बढ़ रहे हैं.

इसे भी पढ़ें-कानून के गलत प्रयोग पर रद नहीं किया जा सकता वैध मध्यस्थता अवार्ड: HC

प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि वर और वधू पक्ष को शादी में मिले उपहारों की सूची बनानी चाहिए. इस तरह की सूची को दोनों पक्ष अपने-अपने हस्ताक्षर बना कर सत्यापित भी करे. इससे दहेज संबंधित विवादों के निपटारे में आसानी होगी. कोर्ट ने राज्य सरकार से भी जानकारी मांगी है कि क्या सरकार ने दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत कोई नियम बनाया है, यदि नहीं बनाया तो इस पर विचार करे. अंकित सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने यह आदेश दिया.

कोर्ट ने कहा कि दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 कानून में यह भी नियम है कि वर एवं वधू को मिलने वाले उपहारों की सूची बननी चाहिए. इससे यह स्पष्ट होगा कि क्या-क्या मिला था. शादी के दौरान रिश्तेदारों से मिलने वाले सभी उपहारों को दहेज के दायरे में नहीं रखा जा सकता है. कोर्ट ने पूछा कि दहेज की मांग के आरोप लगाने वाले लोग अपनी शिकायत के साथ ऐसी सूची क्यों नहीं लगाते हैं. दहेज प्रतिषेध अधिनियम का सही तरीके से पालन होना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि नियमावली के अनुसार दहेज और उपहारों में अंतर है. 'दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 को इसी भावना के तहत बनाया गया था कि भारत में शादियों में गिफ्ट देने का रिवाज है. भारत की परंपरा को समझते हुए ही उपहारों को अलग रखा गया है. दहेज प्रतिषेध अधिकारियों की भी तैनाती की जानी चाहिए. लेकिन आज तक शादी में ऐसे अधिकारियों को नहीं भेजा गया. राज्य सरकार को बताना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों नहीं किया, जबकि दहेज की शिकायतों से जुड़े मामले बढ़ रहे हैं.

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Last Updated : May 16, 2024, 11:14 AM IST
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