पटना: 'हम बिहारी हैं. हमारे यहां मकर संक्रांति को तिला संकरायत कहते हैं. पूरे मिथिलांचल में इसी नाम से ही जाना जाता है. इस दिन लोग दही, चूड़ा, लाई, तिलवा, तिलकुट खाते हैं. मकर संक्रांति के 4 दिन पहले से घर में दही जमाने का काम शुरू हो जाता है, क्योंकि घर की बेटी, रिश्तेदारों के यहां भी दही-चूड़ा भेजा जाता है.
सुबह-सुबह नहाना जंग जीतने जैसा : तिला संकरायत से एक दिन पहले घूरा(अलाव) की व्यवस्था कर ली जाती है ताकि इस 'पौष की ठंड' में स्नान करने के बाद शरीर को गर्म किया जा सके. इस दिन सुबह-सुबह नहाना भी जंग जीतने के बराबर होता है. अन्य दिन तो लोग नहीं भी नहाते हैं लेकिन इस दिन बिना नहाए कोई उपाय नहीं होता. जो पहले स्नान करता है वह खुद को 'गामा पहलवान' से कम नहीं समझता है. दूसरे को भी बताता है कि "नहा लो ठंडा नहीं लगेगा."
लाई तिलवा खाने का जोश: मकर संक्रांति में लोग अन्य दिनों के मुकाबले जल्दी उठ जाते हैं. लेकिन ठंड के कारण बच्चे तो दूर बड़े-बड़े लोग भी रजाई से निकलने की हिम्मत नहीं करते. घर की दादी मां सबको हिम्मत देती रहती है कि "आई जे जतेक बेर पोखरि में डुबकी मारत, ओतेक तिल के लाई ओकरा भेटत."(जो पोखर में जितनी बार डुबकी लगाएगा, उसे उतने ही तिल के लड्डू मिलेंगे) लाई तिलवा के जोश में बच्चे नहाने चले जाते हैं.
करुआ तेल लगा के स्नान: इस दिन नदी, पोखर, कुआं के पानी से नहाया जाता है. लोग चापाकल पर भी नहा लेते हैं. सबसे ज्यादा तिंतित बच्चा पार्टी रहता है कि इस ठंड में कैसे नहाएं. रजाई से निकलने के बाद स्वेटर टोपी खोलने के बाद शरीर के बार तलवार की तरह तन जाता है. बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि "बहुआ करूआ तेल (सरसो चेल) लगा के नहा लिउ ठंडा नई लागत" कभी-कभी तो बच्चों के लिए गर्म पानी कर दिया जाता है.
नहीं नहाना एक सजा: आमतौर पर इस दिन धूप कम ही निकलती है. निकलती भी है तो देर से. जो इस दिन सुबह-सुबह नहीं नहाया, उसके लिए तो माने एक सजा है. दादी कहती है कि "बिना नहैने किच्छ खाए ला नै भेटत."(बिना नहाए खाने के लिए कुछ भी नहीं मिलेगा) नहाने के बाद सबसे पहले दादी और मां अपने बेटे-पोते तो तिल, गुड़ और चावल का प्रसाद देती है.
सबसे पहले भरना होता है तिलकट: मिथिलांचल में तिल, गुड़ और चावल का भी खास महत्व है. इसे तिलकट भरना कहा जाता है. इस दिन मां-दादी दोनों अपने बेटे और पोते को तिल, गुड़ और चावल देकर कहती हैं- 'तिलकत भरव नै' बेटा-पोता इसका जवाब हां में देता है. इसे तीन पर बोलकर दिया जाता है और हर बार जवाब हां में कहा जाता है.
मां वचन में क्या मांगती है?: तिलकट भरने का मतलब है कि मां अपने बच्चों से बचन लेती है. बच्चे कहीं भी देश या विदेश में रहे अपने मां का साथ अंतिम समय तक ना छोड़े. मरते समय उनका बेटा उनके आंखों के सामने रहे, इसी का वचन लिया जाता है. बेटा भी मां को वचन देता है कि वह अंतिम समय तक उसके साथ रहेगा और मरने के बाद कंधा जरूर देगा. दादी भी पोतों से यही वचन लेती है, क्योंकि पोता भी बेटे से कम प्यारा नहीं होता है.
क्या है वचन मांगने की परंपरा?: ईटीवी भारत से बातचीत में ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ राज नाथ झा ने कहा कि मिथिला में यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. चाउर, तिल और गुड़ खिलाकर मां अपने संतान से और परिवार के छोटे सदस्यों से वचन मांगती है और बदले में आशीर्वाद देती है.
"तिल भगवान विष्णु का प्रिय है. इसे संघर्ष का प्रतीक भी माना जाता है. तिल के बने हुए सामग्री को कई कठिन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. उसी तरीके से घर के बेटों को भी यह शिक्षा दी जाती है कि संघर्ष के क्षणों में घबराना नहीं है. तिल के तरह संघर्ष करने से जीवन का स्वाद अच्छा होता है. तिल व गुड़ की तासीर गर्म होती है. हमेशा ऊर्जावान बने रहने के लिए खिलाया जाता है और स्वस्थ रहने के लिए आशीर्वाद भी दिया जाता है." -ज्योतिषाचार्य डॉ राज नाथ झा, ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान के निदेशक
शादी शुदा बेटी नहीं भरा जाता तिलकट: डॉ राजनाथ झा ने बताया कि घर की महिलाएं अपने से कम उम्र के परिवार के सदस्यों एवं बच्चों को तिलकट भरती है. अपने से बड़ों को यह नहीं खिलाया जाता है. घर की शादी शुदा बेटी को भी यह नहीं दिया जाता है. क्योंकि बेटी शादी होने के बाद दूसरे घर चली जाएगी और वह वहां की परंपरा निभाएगी. दूसरे कुल का कर्तव्य निभाएगी. हालांकि कुंवारी बेटियों को यह दिया जाता है.
तुसारी पूजा: डॉ राजनाथ झा ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन मिथिलांचल में कुंवारी बेटियों के लिए विशेष पूजा शुरू की जाती है, जिसे "तुसारी पूजा" कहा जाता है. तुसारी पूजा शुरू करने वाली लड़की मां गौड़ी की पूजा करती है. तुसारी पूजा मकर संक्रांति से शुरू होकर कुंभ संक्रांति यानी 1 महीने तक होती है.
"संस्कारी पति, सुखद दाम्पत्य जीवन, निरोगिता, संस्कारी संतान की कामना के लिए लड़की यह पूजा करती है. सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर या पूजा की जाती है. शाम को भी मां गौरी की पूजा लड़कियां करती हैं. पूजा की याद प्रक्रिया दो-तीन वर्षों तक चलती है जब तक लड़की की शादी न हो जाय." -ज्योतिषाचार्य राजनाथ झा
पुराणों में चर्चा: मकर संक्रांति की चर्चा पुराणों में भी है. महाभारत के दौरान मकर संक्रांति मनाया जाता था. भीष्म पितामह ने भी अपने शरीर को त्यागने के लिए मकर संक्रांति का दिन ही चुना था. यही कारण है कि मिथिलांचल की महिलाएं अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक अपने परिवार के छोटे सदस्यों एवं अपने बेटों को अपने कर्तव्य का बोध दिलाने के लिए यह वचन लेती है.
फोन पर भी वचन: दरभंगा की रहने वाली मीरा झा के दो बेटे हैं. दोनों बेटे बाहर नौकरी करते हैं. उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति को लेकर वचन लेने की परंपरा अब आधुनिक हो गई है. प्रतिदिन उनकी अपने बेटों से देर शाम फोन पर बात होती है, लेकिन मकर संक्रांति के दिन सबसे पहले वह अपने बेटों को फोन पर ही चावल तिल एवं गुड खिलाने का एहसास करते हुए उनके कर्तव्यों का बोध करवाती है. अपने बच्चों से वह पूछती है कि "जीवन के अंतिम क्षणों तक वह उनके हर सुख दुख में साथ देंगे या नहीं इसका वचन लेती हैं."
"मिथिला की समृद्ध परंपरा है, जिसमें मां को अपने संतानों पर यह भरोसा होता है कि वह न केवल खुशी के क्षण बल्कि दुख के क्षण भी उनके साथ देंगे." -मीरा झा, दरभंगा
क्यों मनाया जाता है मकर संक्रांति?: बता दें कि मकर संक्रांति का इतिहास 2000 से 3000 साल पुराना बताया जाता है. इसकी चर्चा पुराणों में है. इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है. यही कारण है कि मकर संक्रांति मनाया जाता है.
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