सहारनपुर : शिवालिक पहाड़ियों के बीच स्थित विश्व विख्यात सिद्धपीठ मां शाकंभरी देवी का मंदिर देश के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां सच्चे मन से जो भी भक्त शीश नवाकर मिन्नतें करता है मां शाकंभरी देवी उसकी मन्नतें पूरी करती हैं. मां शाकंभरी के बारे में विस्तार से मार्कण्डेय पुराण, पद्म पुराण, दुर्गा सप्तशती, कनकधारा स्रोत आदि में उल्लेख मिलता है.
मंदिर के गर्भगृह में मां शाकंभरी के साथ-साथ मां भीमा देवी, मां भ्रामरी, मां शताक्षी सहित गणपति जी की प्रतिमा भी स्थापित है. इस पवित्र तीर्थ स्थल के निकट माता के रक्षक बाबा भूरादेव का मंदिर भी है. मान्यता है कि माता के दर्शनों से पहले बाबा भूरादेव की पूजा-अर्चना की जाती है. मंदिर परिक्षेत्र में गौतम ऋषि की गुफा प्रेत शिला के साथ-साथ पंच महादेव मंदिरों में बडकेश्वर महादेव, कमलेश्वर महादेव, साकेश्वर महादेव, इंद्रेश्वर महादेव, मटकेश्वर महादेव मंदिरों के साथ ही मां छिन्नमस्ता देवी, रक्तदंतिका मंदिर आदि पवित्र स्थल स्थित हैं. यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर प्रसाद चढ़ाकर मिन्नतें मांगते हैं. सिद्धपीठ परिक्षेत्र से लगभग पांच किमी की दूर पहाड़ियों पर सहस्रा ठाकुर का मंदिर है. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यह मंदिर प्राचीन काल में एक ही पत्थर को तराशकर बनाया गया था. मान्यताओं के अनुसार, शाकंभरी देवी मां आदिशक्ति जगदंबा का ही एक सौम्य अवतार हैं. इन्हें चतुर्भुजी तो कहीं पर अष्टभुजाओं वाली के रूप में भी दर्शाया गया है. मां शाकंभरी देवी के मुख्य मंदिर के पास ही वीर खेत के नाम से प्रसिद्ध एक मैदान है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी मैदान पर मां शाकंभरी व दुर्गम नामक राक्षस का घोर युद्ध हुआ था.
'दुर्गम नाम के दैत्य ने की तपस्या' : ब्रह्मचारी सहजानंद महाराज ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार मान्यता हैं कि प्राचीन काल में दुर्गम नाम के दैत्य ने भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या करने के बाद वरदान में चारों वेद प्राप्त कर लिए थे. राक्षसों के हाथ चारों वेद लग जाने से सभी वैदिक क्रियाएं विलुप्त हो गई थीं, जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा के नहीं होने के कारण अकाल जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी. चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाने पर देवताओं ने शिवालिक पहाड़ियों की प्रथम चोटी पर जगतजननी मां जगदंबा की घोर तपस्या की. देवताओं की करूण पुकार सुनकर करूणामयी मां भगवती देवताओं के सम्मुख प्रकट हुईं ओर अपने आंसुओं की वर्षा की.
उन्होंने बताया कि सिद्धपीठ मां शाकंभरी देवी मंदिर पर वैसे तो हलवा-पूरी, ईलायची दाना, नारियल चुनरी, मेवे व मिष्ठान का प्रसाद चढ़ाया जाता है, लेकिन शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि मां शाकंभरी देवी का प्रमुख प्रसाद शिवालिक पहाड़ियों पर उगने वाला फल सराल है. मान्यता है कि मां शाकंभरी देवी ने देवताओं की भूख शांत करने के लिए शाक व सराल आदि फलों को पैदा किया था, इसलिए माता का मुख्य प्रसाद सराल माना गया है.
उन्होंने बताया कि मान्यता है कि देवताओं ओर राक्षसों के बीच चल रहे घोर युद्ध के दौरान माता की रक्षा के लिए मां भगवती का भक्त भूरादेव अपने साथियों के साथ युद्ध के मैदान में उतर पड़ा था. युद्ध के दौरान भूरादेव घायल हो गया. अपने भक्त को घायल देखकर करूणामयी मां ने भूरादेव को वरदान दिया कि जो भक्त मेरे दर्शनों से पूर्व तुम्हारे दर्शन करेगा उसी की यात्रा पूर्ण होगी. यही कारण है कि श्रद्धालु सर्वप्रथम बाबा भूरादेव के दर्शन करने के बाद ही मां शाकंभरी देवी के दर्शन करते हैं.
शारदीय नवरात्र मेला आज से होगा शुरू : सिद्धपीठ मां शाकंभरी देवी मंदिर परिक्षेत्र में वर्ष में तीन भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है. जिनमें शारदीय नवरात्र, चैत्र नवरात्र व होली के पर्व पर लगने वाले मेले प्रमुख हैं. गुरुवार से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं. भव्य मेला प्रथम नवरात्र से शुरू होकर पूर्णिमा तिथि तक चलता है. इस मेले में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर अपनी मिन्नतें मांगते हैं. सिद्धपीठ मां शाकंभरी देवी के दर्शनों को आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर व्यवस्थापक आदित्य प्रताप सिंह राणा की ओर से भी समुचित व्यवस्थाएं कराई गई हैं. पुलिस प्रशासन की ओर से भी श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर कड़े इंतजाम किए गए हैं.
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