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प्रोफेसर विमल जायसवाल के मामले में कमेटी के सामने रखे गए कागज, जल्द दर्ज होंगे बयान - LUCKNOW UNIVERSITY

प्रोफेसर विमल जायसवाल के मामले की जांच शुरू हो गई है. कुलपति की अध्यक्षता में गठित हुई कमेटी ने इसकी पहली बैठक की.

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प्रोफेसर विमल कुमार जायसवाल (Photo Credit- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 22, 2025, 6:58 PM IST

लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय के एप्लाइड इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर विमल जायसवाल के मामले की जांच शुरू हो गई है. उच्च शिक्षा विभाग की ओर से लखनऊ विश्वविद्यालय के ही कुलपति प्रोफेसर आलोक राय की अध्यक्षता में 14 सदस्य कमेटी का गठन किया था, जिसकी पहली बैठक हो गई है. शासन के निर्देश पर गठित जांच समिति की पहली बैठक में प्रोफेसर जायसवाल की नियुक्ति से जुड़े दस्तावेज रखे गए. कमेटी की ओर से प्रोफेसर जायसवाल को एक पत्र भेजा गया है. अगली बैठक में उनके बयान दर्ज होंगे.

शासन की ओर से 8 जनवरी को इस मामले में एक जांच समिति का गठन किया गया था. एलयू वीसी को कमेटी की कमान सौंपा गई थी. हालांकि एलयू वीसी के विदेश में होने के कारण इसकी एक भी बैठक उस समय नहीं हो पाई थी. जबकि शासन की ओर से 15 दिन के अंदर ही पूरे मामले की जांच रिपोर्ट सॉफ्टवेयर के निर्देश दिए गए थे. वहीं दूसरी तरफ विधायक अभय सिंह की ओर से मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कमेटी के अध्यक्ष बदलने की मांग की गई थी. जांच कमेटी गठन होने के 10 दिन बिकने के बाद भी कोई बैठक न होने पर यह अटकलें लगाई जा रही थी, कि शासन की ओर से शायद कमेटी का अध्यक्ष बदला जा सकता है. लेकिन कमेटी की पहली बैठक होने के बाद अब इस पर भी विराम लग गया है.

इसे भी पढ़ें - लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. वीके जायसवाल के खिलाफ जांच के आदेश; गलत जानकारी के बलबूते नॉन क्रीमी लेयर संवर्ग में नियुक्ति पाने का मामला - LUCKNOW UNIVERSITY NEWS


प्रोफेसर विमल जायसवाल की नियुक्ति साल 2005 में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर ओबीसी नॉन क्रीमी लेयर संवर्ग में हुई थी. शिकायतकर्ता ने कहा है कि प्रोफेसर विमल के पिता सियाराम जयसवाल लखनऊ विश्वविद्यालय के कॉमर्स विभाग के हेड रहे थे. वह उच्च शिक्षा आयोग के अध्यक्ष भी रह थे. ऐसे में वह ओबीसी के नॉन क्रीमी लेयर के तहत नहीं आते हैं. गलत तरह से उनकी नियुक्ति की गई है. उन पर यह भी आरोप है कि उनका प्रोफेसर के पद पर प्रमोशन भी गलत तरह से किया गया है. निर्धारित मानकों को पूरा किए बिना ही उनका प्रमोशन कर दिया गया है. इसके अलावा विभिन्न प्रशासनिक पदों पर रहते हुए अनिमियताओं के भी कई आरोप लगाये गये हैं.

यह भी पढ़ें - छात्रा बनकर साथी प्रोफेसर की करते थे शिकायत, AMU प्रशासन ने सस्पेंड किया - ALIGARH NEWS

लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय के एप्लाइड इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर विमल जायसवाल के मामले की जांच शुरू हो गई है. उच्च शिक्षा विभाग की ओर से लखनऊ विश्वविद्यालय के ही कुलपति प्रोफेसर आलोक राय की अध्यक्षता में 14 सदस्य कमेटी का गठन किया था, जिसकी पहली बैठक हो गई है. शासन के निर्देश पर गठित जांच समिति की पहली बैठक में प्रोफेसर जायसवाल की नियुक्ति से जुड़े दस्तावेज रखे गए. कमेटी की ओर से प्रोफेसर जायसवाल को एक पत्र भेजा गया है. अगली बैठक में उनके बयान दर्ज होंगे.

शासन की ओर से 8 जनवरी को इस मामले में एक जांच समिति का गठन किया गया था. एलयू वीसी को कमेटी की कमान सौंपा गई थी. हालांकि एलयू वीसी के विदेश में होने के कारण इसकी एक भी बैठक उस समय नहीं हो पाई थी. जबकि शासन की ओर से 15 दिन के अंदर ही पूरे मामले की जांच रिपोर्ट सॉफ्टवेयर के निर्देश दिए गए थे. वहीं दूसरी तरफ विधायक अभय सिंह की ओर से मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कमेटी के अध्यक्ष बदलने की मांग की गई थी. जांच कमेटी गठन होने के 10 दिन बिकने के बाद भी कोई बैठक न होने पर यह अटकलें लगाई जा रही थी, कि शासन की ओर से शायद कमेटी का अध्यक्ष बदला जा सकता है. लेकिन कमेटी की पहली बैठक होने के बाद अब इस पर भी विराम लग गया है.

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प्रोफेसर विमल जायसवाल की नियुक्ति साल 2005 में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर ओबीसी नॉन क्रीमी लेयर संवर्ग में हुई थी. शिकायतकर्ता ने कहा है कि प्रोफेसर विमल के पिता सियाराम जयसवाल लखनऊ विश्वविद्यालय के कॉमर्स विभाग के हेड रहे थे. वह उच्च शिक्षा आयोग के अध्यक्ष भी रह थे. ऐसे में वह ओबीसी के नॉन क्रीमी लेयर के तहत नहीं आते हैं. गलत तरह से उनकी नियुक्ति की गई है. उन पर यह भी आरोप है कि उनका प्रोफेसर के पद पर प्रमोशन भी गलत तरह से किया गया है. निर्धारित मानकों को पूरा किए बिना ही उनका प्रमोशन कर दिया गया है. इसके अलावा विभिन्न प्रशासनिक पदों पर रहते हुए अनिमियताओं के भी कई आरोप लगाये गये हैं.

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