प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हत्या की सजा के लिए मकसद और पूर्व योजना का साबित किया जाना जरूरी है. कोर्ट ने हत्या को गैर इरादतन हत्या में तब्दील करते हुए आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे दोषी की अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर ली और उसे जेल में बिताई जा चुकी अवधि तक की सजा को पर्याप्त माना है. यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह व न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की खंडपीठ ने बबलू की अपील पर दिया.
बदायूं के उसहैत थाने में मृतक के भाई दिगंबर सिंह ने अपीलकर्ता पर 2013 में मुकदमा दर्ज कराया था. आरोप लगाया था उसके भाई की मामूली विवाद में गोली मार कर हत्या कर दी गई. आरोपी के निशानदेही पर बंदूक पुलिस ने बरामद की. ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. इस आदेश के अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी.
याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि इस मामले में हत्या का अपराध साबित करने के लिए आवश्यक तत्व मौजूद नहीं है. अपीलकर्ता को सिर्फ गैर इरादतन हत्या के तहत ही दोषी करार दिया जा सकता है. अपर शासकीय अधिवक्ता ने अपील का पुरजोर तरीके से विरोध किया. कहा कि यह पूर्व नियोजित तरीके से हत्या की गई है. कोर्ट ने हत्या को गैर इरादतन हत्या मानते हुए अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर ली और अभियुक्त को जेल में बिताई गई अवधि तक की सजा दी है.
इविवि के विरुद्ध गलत तथ्यों पर दाखिल याचिका खारिज, याची पर दो हजार रुपये हर्जाना भी लगा
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इविवि के विरुद्ध गलत तथ्यों पर आधारित याचिका के लिए याची पर दो हजार रुपये हर्जाना लगाया है. साथ ही याचिका को वापस लिए जाने के आधार पर खारिज कर दिया. यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने सुमन लता की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया. याची ने यह याचिका अपनी अनुकम्पा नियुक्ति को लेकर दाखिल की थी.
सुनवाई के दौरान इविवि की ओर से कहा गया कि याची ने न्यायालय के समक्ष पूरी ईमानदारी से अपना पक्ष नहीं रखा है. इस पर याची के अधिवक्ता ने याचिका वापस लेने की प्रार्थना की. मुख्य स्थायी अधिवक्ता कुणाल रवि सिंह ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई. इस पर कोर्ट ने याची को बेहतर विवरण के साथ नई याचिका दाखिल करने की अनुमति देते हुए याचिका को खारिज कर दिया. साथ ही याची पर दो हजार रुपये का हर्जाना लगाया जो हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में जमा किया जाएगा.
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