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लोकसभा चुनाव 2024: क्या RLD को रास आएगा आएगा भाजपा का साथ, पिछले दो चुनावों से नहीं चखा जीत का स्वाद - 4 June vote counting

राष्ट्रीय लोकदल के लिए यह लोकसभा चुनाव संजीवनी साबित हो सकता है. पार्टी इस बार लोकसभा में भी प्रतिनिधित्व हासिल कर सकती है. पिछले दो लोकसभा चुनाव में कुल 11 सीटों पर लड़ चुकी इस पार्टी को जीत का स्वाद चखने को नहीं मिला. इस बार जीत का सूखा खत्म होने की उम्मीद है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 3, 2024, 3:59 PM IST

Updated : Jun 3, 2024, 6:16 PM IST

लोकसभा चुनाव 2024
लोकसभा चुनाव 2024 (PHOTO CREDIT ETV BHARAT)
जानकारी देते RLD राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे (फोटो क्रेडिट- ईटीवी भारत)

लखनऊ: राष्ट्रीय लोकदल के लिए यह लोकसभा चुनाव संजीवनी साबित हो सकता है. पार्टी इस बार लोकसभा में भी प्रतिनिधित्व हासिल कर सकती है. पिछले दो लोकसभा चुनाव में कुल 11 सीटों पर लड़ चुकी इस पार्टी को जीत का स्वाद चखने को नहीं मिला. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर आठ सीटों पर चुनाव लड़ा और 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर तीन सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. अब 2024 के लोकसभा चुनाव में नए साथी भारतीय जनता पार्टी के साथ आरएलडी ने गठबंधन किया है और दो सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. पार्टी का दावा है कि यह दोनों प्रत्याशी जीत के दावेदार हैं और जीत हासिल करेंगे. इस बार पार्टी को लोकसभा चुनाव में जीत का स्वाद जरूर चखने को मिलेगा. पार्टी लोकसभा में अपना प्रतिनिधित्व जरूर दर्ज कराएगी.

2019 में किया था सपा-बसपा से गठबंधन

राष्ट्रीय लोकदल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था. गठबंधन में राष्ट्रीय लोक दल के हिस्से तीन सीटें भी आई थीं, लेकिन इन तीनों सीटों पर आरएलडी का कोई उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर पाया था. पार्टी का 2014 का शून्य का क्रम 2019 में भी नहीं टूटा, लेकिन इस बार पार्टी के नेताओं को पूरी उम्मीद है कि भारतीय जनता पार्टी के साथ एनडीए गठबंधन में मिलीं दो सीटों पर प्रत्याशी जीत हासिल करने में कामयाब होंगे और लोकसभा चुनाव में इस बार पार्टी को प्रतिनिधित्व जरूर मिलेगा. लोकसभा चुनाव में जीतने के बाद आरएलडी सभी सदनों में हिस्सेदार हो जाएगी. आरएलडी की तरफ से बागपत और बिजनौर पर उम्मीदवार उतारे गए हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जाट और मुस्लिम बाहुल्य इलाका माना जाता है. इस बेल्ट में कुल 27 सीटें हैं. पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी ने अकेले 19 सीटों पर जीत हासिल की थीं, जबकि आठ सीटें महागठबंधन के हिस्से में आई थीं. चार पर समाजवादी पार्टी और चार पर बहुजन समाज पार्टी जीती थी, लेकिन आरएलडी के नसीब में जीत नहीं लिखी थी.

2019 में पिता और बेटे को भी मिली थी हार

2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी ने जिन तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था उनमें दूसरे नंबर पर आई थी. जयंत चौधरी खुद बागपत लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे लेकिन बीजेपी के डॉक्टर सतपाल मलिक ने उन्हें 23 हजार वोटो से हरा दिया था. मथुरा से पार्टी के कुंवर नरेंद्र सिंह को हेमामालिनी के हाथों हार मिली थी. मुजफ्फरनगर सीट से पहली बार अजीत सिंह चुनाव लड़े थे, लेकिन बीजेपी के संजीव बालियान ने उन्हें साढ़े छह हजार से अधिक मतों से मार दी थी. खास बातें ये भी है कि पिता और बेटे जयंत को कांग्रेस पार्टी ने समर्थन दिया था. बावजूद इसके जीत नहीं मिल पाई थी. पार्टी तीनों सीटों पर रनर ही रह गई.

2019 में वोट प्रतिशत तो बढ़ा पर नहीं मिली जीत

आरएलडी को 2014 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 0.9% वोट मिले थे तब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का साथ मिला था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ आने से आरएलडी का वोट प्रतिशत बढ़कर 1.7% हो गया था. 2014 का लोकसभा चुनाव आरएलडी ने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. आठ लोकसभा सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन जीत एक भी नहीं पाए. मथुरा से जयंत चौधरी को शिकस्त मिली थी. बागपत से चौधरी अजीत सिंह चुनाव हार गए थे. अमरोहा से राकेश टिकैत, बिजनौर से जयाप्रदा, बुलंदशहर से अंजू उर्फ मुस्कान, फतेहपुर सीकरी से अमर सिंह, हाथरस से निरंजन सिंह धनगर और कैराना से करतार सिंह भडाना को टिकट दिया गया था. अभिनेत्री जयाप्रदा रामपुर लोकसभा चुनाव से दो बार जीत हासिल करने में सफल रहीं, लेकिन बिजनौर में आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ीं तो उन्हें सिर्फ 24348 वोट मिले थे.

नफा नुकसान भांपकर जयंत आए बीजेपी के साथ

राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने 10 साल से पार्टी के हार के सूखे को खत्म करने के लिए ही इस बार भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन का दांव खेला है. जयंत चौधरी को समझ आ गया कि पार्टी को किससे नफा और किससे नुकसान हो सकता है. पिछले दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, सपा और बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन कर हार का स्वाद चख चुके जयंत को भारतीय जनता पार्टी के साथ आने में ही फायदा दिखा. इसी के चलते बीजेपी की तरफ से दो सीटों के ऑफर पर भी जयंत चौधरी मान गए. अब चार जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा कि जयंत का यह कदम पार्टी के लिए कैसा साबित हुआ.

पार्टी की ये है स्थिति

पार्टी के अध्यक्ष जयंत चौधरी राज्यसभा सांसद हैं. उत्तर प्रदेश में नौ विधायक हैं. एक कैबिनेट मंत्री है और एक एमएलसी भी है, लेकिन लोकसभा में राष्ट्रीय लोकदल का प्रतिनिधित्व नहीं है. इस बार पार्टी के दो उम्मीदवार चुनाव जीतकर लोकसभा में भी दाखिल होने की उम्मीद लगाए हैं. ऐसे में यह चुनाव हर तरह से आरएलडी के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है भाजपा का साथ आरएलडी को रास आ सकता है.

क्या कहते हैं राष्ट्रीय प्रवक्ता

राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे का कहना है कि इस बार के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और एनडीए गठबंधन अकेले उत्तर प्रदेश में ही 75 से ज्यादा सीटें जीतेगा. हमारी पार्टी के दोनों उम्मीदवार चुनाव जरूर जीतेंगे. इंडी गठबंधन के नेता जो भी कहें लेकिन केंद्र की सत्ता में फिर से एनडीए सरकार की वापसी हो रही है. एग्जिट पोल में साफ हो गया है कि यूपी में एनडीए बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और पूरे देश में एनडीए की ही लहर है. हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बेहतरीन प्रदर्शन करेंगे. इंडी गठबंधन ने चौधरी चरण सिंह के नाम पर वहां पर राजनीति करनी शुरू की थी जिसे जनता ने सिरे से खारिज कर दिया. चार जून को नतीजे एनडीए के ही पक्ष में आएंगे.

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2019 में किया था सपा-बसपा से गठबंधन

राष्ट्रीय लोकदल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था. गठबंधन में राष्ट्रीय लोक दल के हिस्से तीन सीटें भी आई थीं, लेकिन इन तीनों सीटों पर आरएलडी का कोई उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर पाया था. पार्टी का 2014 का शून्य का क्रम 2019 में भी नहीं टूटा, लेकिन इस बार पार्टी के नेताओं को पूरी उम्मीद है कि भारतीय जनता पार्टी के साथ एनडीए गठबंधन में मिलीं दो सीटों पर प्रत्याशी जीत हासिल करने में कामयाब होंगे और लोकसभा चुनाव में इस बार पार्टी को प्रतिनिधित्व जरूर मिलेगा. लोकसभा चुनाव में जीतने के बाद आरएलडी सभी सदनों में हिस्सेदार हो जाएगी. आरएलडी की तरफ से बागपत और बिजनौर पर उम्मीदवार उतारे गए हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जाट और मुस्लिम बाहुल्य इलाका माना जाता है. इस बेल्ट में कुल 27 सीटें हैं. पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी ने अकेले 19 सीटों पर जीत हासिल की थीं, जबकि आठ सीटें महागठबंधन के हिस्से में आई थीं. चार पर समाजवादी पार्टी और चार पर बहुजन समाज पार्टी जीती थी, लेकिन आरएलडी के नसीब में जीत नहीं लिखी थी.

2019 में पिता और बेटे को भी मिली थी हार

2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी ने जिन तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था उनमें दूसरे नंबर पर आई थी. जयंत चौधरी खुद बागपत लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे लेकिन बीजेपी के डॉक्टर सतपाल मलिक ने उन्हें 23 हजार वोटो से हरा दिया था. मथुरा से पार्टी के कुंवर नरेंद्र सिंह को हेमामालिनी के हाथों हार मिली थी. मुजफ्फरनगर सीट से पहली बार अजीत सिंह चुनाव लड़े थे, लेकिन बीजेपी के संजीव बालियान ने उन्हें साढ़े छह हजार से अधिक मतों से मार दी थी. खास बातें ये भी है कि पिता और बेटे जयंत को कांग्रेस पार्टी ने समर्थन दिया था. बावजूद इसके जीत नहीं मिल पाई थी. पार्टी तीनों सीटों पर रनर ही रह गई.

2019 में वोट प्रतिशत तो बढ़ा पर नहीं मिली जीत

आरएलडी को 2014 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 0.9% वोट मिले थे तब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का साथ मिला था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ आने से आरएलडी का वोट प्रतिशत बढ़कर 1.7% हो गया था. 2014 का लोकसभा चुनाव आरएलडी ने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. आठ लोकसभा सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन जीत एक भी नहीं पाए. मथुरा से जयंत चौधरी को शिकस्त मिली थी. बागपत से चौधरी अजीत सिंह चुनाव हार गए थे. अमरोहा से राकेश टिकैत, बिजनौर से जयाप्रदा, बुलंदशहर से अंजू उर्फ मुस्कान, फतेहपुर सीकरी से अमर सिंह, हाथरस से निरंजन सिंह धनगर और कैराना से करतार सिंह भडाना को टिकट दिया गया था. अभिनेत्री जयाप्रदा रामपुर लोकसभा चुनाव से दो बार जीत हासिल करने में सफल रहीं, लेकिन बिजनौर में आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ीं तो उन्हें सिर्फ 24348 वोट मिले थे.

नफा नुकसान भांपकर जयंत आए बीजेपी के साथ

राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने 10 साल से पार्टी के हार के सूखे को खत्म करने के लिए ही इस बार भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन का दांव खेला है. जयंत चौधरी को समझ आ गया कि पार्टी को किससे नफा और किससे नुकसान हो सकता है. पिछले दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, सपा और बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन कर हार का स्वाद चख चुके जयंत को भारतीय जनता पार्टी के साथ आने में ही फायदा दिखा. इसी के चलते बीजेपी की तरफ से दो सीटों के ऑफर पर भी जयंत चौधरी मान गए. अब चार जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा कि जयंत का यह कदम पार्टी के लिए कैसा साबित हुआ.

पार्टी की ये है स्थिति

पार्टी के अध्यक्ष जयंत चौधरी राज्यसभा सांसद हैं. उत्तर प्रदेश में नौ विधायक हैं. एक कैबिनेट मंत्री है और एक एमएलसी भी है, लेकिन लोकसभा में राष्ट्रीय लोकदल का प्रतिनिधित्व नहीं है. इस बार पार्टी के दो उम्मीदवार चुनाव जीतकर लोकसभा में भी दाखिल होने की उम्मीद लगाए हैं. ऐसे में यह चुनाव हर तरह से आरएलडी के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है भाजपा का साथ आरएलडी को रास आ सकता है.

क्या कहते हैं राष्ट्रीय प्रवक्ता

राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे का कहना है कि इस बार के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और एनडीए गठबंधन अकेले उत्तर प्रदेश में ही 75 से ज्यादा सीटें जीतेगा. हमारी पार्टी के दोनों उम्मीदवार चुनाव जरूर जीतेंगे. इंडी गठबंधन के नेता जो भी कहें लेकिन केंद्र की सत्ता में फिर से एनडीए सरकार की वापसी हो रही है. एग्जिट पोल में साफ हो गया है कि यूपी में एनडीए बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और पूरे देश में एनडीए की ही लहर है. हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बेहतरीन प्रदर्शन करेंगे. इंडी गठबंधन ने चौधरी चरण सिंह के नाम पर वहां पर राजनीति करनी शुरू की थी जिसे जनता ने सिरे से खारिज कर दिया. चार जून को नतीजे एनडीए के ही पक्ष में आएंगे.

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Last Updated : Jun 3, 2024, 6:16 PM IST
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