कोटा. राजस्थान में कोटा-बूंदी लोकसभा सीट प्रदेश की हॉट सीटों में शुमार होने वाली है, क्योंकि यहां से वर्तमान में ओम बिरला सांसद हैं. वो लोकसभा के स्पीकर भी हैं. आने वाले दिनों में लोकसभा चुनाव है. भाजपा और कांग्रेस अपने लिए प्रत्याशियों की तलाश कर रही है, लेकिन लोकसभा सीट कोटा-बूंदी को भाजपा और जनसंघ का गढ़ माना जाता रहा है. आंकड़े भी काफी कुछ यही बयां करते हैं. साल 1957 में इस संसदीय सीट पर दो सांसद रहे थे, जिनमें एक कांग्रेस और एक जनसंघ का था. इसलिए यहां अब तक हुए 17 चुनावों में 18 सांसद चुने गए हैं.
बैरवा चार और जोशी तीन बार रहे सांसद : जनसंघ की बात की जाए तो औंकार लाल बैरवा यहां से लगातार चार बार सांसद रहे हैं. साल 1957, 1962, 1967 और 1971 में वे यहां से सांसद चुने गए थे. 1957 में कांग्रेस के प्रत्याशी नेमीचंद कासलीवाल के साथ ज्वाइंट रूप से सांसद रहे थे. इस साल एक कांस्टीट्यूएंसी से दो सांसदों का चुनाव हुआ था. इसके बाद दाऊ दयाल जोशी इस सीट से तीन बार लगातार सांसद बने. सन 1989, 1991 व 1996 में कोटा सीट से भाजपा के प्रत्याशी के रूप में जीते थे. हालांकि, अंतिम बार 1996 में जीत का अंतर महज 685 वोट ही रह गया था. इसके अलावा कृष्ण कुमार गोयल दो बार यहां से सांसद रहे हैं. वे 1977 और 1980 में जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर जीते थे. इसके बाद रघुवीर सिंह कौशल 1999 और 2004 में दो बार यहां से सांसद रहे हैं. इसके बाद 2014 और 2019 में ओम बिरला यहां से चुनाव जीते हैं.
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शांति धारीवाल 2 और रामनारायण मीणा 3 बार हारे : शांति धारीवाल 5 और रामनारायण मीणा भले ही छह बार कांग्रेस से विधायक बन गए हों, लेकिन कोटा लोकसभा सीट पर एक बार ही इन्हें सांसद बनने का मौका मिला है. धारीवाल को दो और रामनारायण मीणा को तीन बार हार का सामना भी करना पड़ा है. वर्तमान में शांति धारीवाल कोटा उत्तर से विधायक है, लेकिन वो लोकसभा कोटा के चुनाव में 1984 में यहां से सांसद भी बने हैं, लेकिन उसके बाद लगातार दो चुनावों 1989 व 1991 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा है. वहीं, इसी तरह से रामनारायण मीणा की बात की जाए तो रामनारायण मीणा 1998 में कोटा लोकसभा सीट से सांसद बने, लेकिन 1996, 1999 और 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा है.
ब्राह्मण और बनियों के वर्चस्व वाली सीट : राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार धीतेंद्र शर्मा के अनुसार कोटा सीट ब्राह्मण और बनियों के वर्चस्व वाली ही रही है. यहां से सात बार वैश्य और पांच बार ब्राह्मण समाज से आने वाले प्रत्याशी सांसद बने है. इस हिसाब से अनुमान लगाया जाए तो अब तक चुने गए 18 सांसदों में से 12 ब्राह्मण और वैश्य वर्ग से थे. हालांकि, ब्राह्मणों की बहुल संख्या वाली सीट पर बीते तीन टर्म से ब्राह्मण प्रत्याशी नहीं जीता है.
भाजपा और कांग्रेस से अंतिम बार ब्राह्मण प्रत्याशी के तौर पर 2009 के चुनाव में भाजपा ने श्याम शर्मा को मौका दिया गया था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. उनके सामने कोटा रियासत के पूर्व महाराव इज्यराज सिंह को कांग्रेस ने मौका दिया था. उन्होंने करीब 83 हजार 93 वोट से श्याम शर्मा को मात दी थी, जबकि अंतिम बार ब्राह्मण सांसद साल 2004 में रघुवीर सिंह कौशल रहे हैं, उन्होंने कांग्रेस के ब्राह्मण प्रत्याशी हरिमोहन शर्मा को 71778 वोटो से मात दी थी.
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महज 685 वोट से जीते थे जोशी : जीत के अंतर के इतिहास से देखा जाए तो सबसे बड़ी जीत 2019 में ओम बिरला की हुई थी, वह 279677 वोट से जीते थे और उन्होंने रामनारायण मीणा को मात दी थी. दूसरी सबसे बड़ी जीत भी उन्हीं के नाम है, उन्होंने इज्यराज सिंह को 2014 में 200782 वोट से हराया था. वहीं, सबसे कम अंतर की बात की जाए तो 1996 में भाजपा के दाऊ दयाल जोशी ने कांग्रेस प्रत्याशी रामनारायण मीणा को महज 685 वोट से मात दी थी. इसके बाद सबसे कम अंतर 1980 में था, जहां पर जनता पार्टी के कृष्ण कुमार गोयल ने भाजपा के बृजसुंदर शर्मा को महज 6620 वोटों से हराया था.