जयपुर. चुनाव परिणाम की तारीख नजदीक आने के साथ-साथ सत्ताधारी पार्टी के नेताओं की धड़कन भी बढ़ती जा रही है. राजस्थान में चुनावी नतीजे किस राजनीतिक दल के हक में नजर आएंगे, इसकी तस्वीर मतदान के एक माह बाद भी साफ नहीं हो सकी है. कयास, वोटिंग परसेंटेज, उम्मीदवार का चेहरा और स्थानीय रसूख के आधार पर चुनावी नतीजे को लेकर आंकलन का दौर, हर दिन सोशल मीडिया से लेकर आपसी चर्चाओं का मुद्दा बना हुआ है. खास तौर पर सत्ताधारी पार्टी के लिए आलाकमान की नजर में चुनाव परिणाम छह महीने का रिपोर्ट कार्ड होगा, जो बचे हुए साढ़े 4 साल में राजस्थान की सियासी सूरत को तय करने का आधार भी बन सकता है. मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ चुनावी जिम्मेदारी संभाल रहे वरिष्ठ नेताओं की भी अग्नि परीक्षा इन परिणाम के बीच तय हो जाएगी. सबसे अहम सवाल यह है कि पिछले दो संसदीय चुनाव में राज्य में क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा को इस बार क्या नुकसान होने जा रहा है और अगर ऐसा है भी तो कितनी सीटों पर नुकसान होने की संभावना है? साथ ही विपक्षी दल को इसका कितना फायदा होने के आसार है.
भाजपा की बड़ी चूक : भाजपा के कुछ नेताओं की बयानबाजी को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि चुनाव परिणाम आशा अनुरूप नहीं रहने वाले हैं. वहीं, कांग्रेस के लिए हर एक सीट पर जीत की संभावना उम्मीदों को आगे बढ़ा रही है. वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप शर्मा के अनुसार राजस्थान में पिछले दो लोकसभा चुनाव में भाजपा को सभी 25 सीटों पर विजय मिली थी और विधानसभा चुनाव में वो पुनः सरकार में आ गई. कुलदीप शर्मा कहते हैं कि यह सब पार्टी की तरफ से पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को साइडलाइन रखने के बावजूद हुआ. ऐसे में भाजपा के राजनीतिज्ञों को लगा कि लोकसभा चुनाव में 25 सीटें जीतना फिर से बहुत सहज है, क्योंकि वोट मोदी के नाम पर गिरेंगे. इसलिए आधी सीटों पर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के चेहरे बदल दिए गए और यही राजस्थान में बड़ी चूक हो गई.
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जातिगत समीकरण हुए नजरअंदाज : वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप शर्मा बताते हैं कि प्रदेश में इस बार के चुनाव में जहां-जहां जाट और मुसलमान वोट एक साथ पड़ा है, वहां भाजपा गहरे संकट में दिख रही है. खास तौर पर चूरू, झुंझुनू, नागौर और बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर परिणाम को लेकर उठ रहे सवाल इसकी मिसाल है. साथ ही परंपरागत राजपूत वोट बैंक का मान भी भाजपा इस बार नहीं रख सकी. हालांकि, इसके बावजूद जोधपुर सीट पर भाजपा सहज जीत रही है, क्योंकि गहलोत खेमा जालौर में जुट गया और जोधपुर का टिकट सचिन पायलट के खाते में आ गया था. लिहाजा कांग्रेस वहां मतदान की तिथि तक पिछड़ गई. यही जयपुर ग्रामीण में भी हुआ, जो पायलट का टिकट था और वहां यादव वोट भाजपा के साथ चला गया. साथ ही जाट भी आधे बंट गए.
भाजपा की इन सीटों पर मानी जा रही है जीत : बीते ढाई दशक में राजस्थान में कई लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी स्थिति मजबूत की है. ऐसे में इन सीटों पर पार्टी के लिए जीत की प्रबल संभावना राजनीतिक पंडितों के आकलन में नजर आ रही है. इन सीटों में प्रमुख रूप से राजधानी जयपुर, झालावाड़, उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, पाली, अलवर, अजमेर और बीकानेर शामिल है. खास बात यह है कि इनमें कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की सीट भी शामिल है. गौरतलब है कि प्रदेश से जीतकर केंद्र में मंत्री बने नेताओं में सिर्फ अर्जुन मेघवाल की सीट को ही कंफर्म माना जा रहा है, जबकि कड़े मुकाबले में पहली बार सांसदी का चुनाव लड़ रहे भूपेंद्र यादव अलवर से जीत के करीब पहुंच चुके हैं.
केंद्र के इन नेताओं के लिए टक्कर का मुकाबला : राजस्थान में हाड़ौती को भी जनसंघ के जमाने से राइट विंग का गढ़ माना जाता है, लेकिन इस दफा दो बार के सांसद और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला अपने ही करीबी की बगावत के बाद जीत को लेकर कड़ी मशक्कत करते देखे गए हैं. कोटा में उनके लिए इस बार जीत पहले दो विजय के जैसे आसान नहीं रहने वाली है. हालांकि, कोटा में भाजपा का कैडर मजबूत है, लिहाजा बिरला चुनाव निकाल लेंगे. इसी तरह केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी एक कड़ी चुनौती का सामना करते देखे गए, उनके लिए जीत की हैट्रिक जोधपुर की अवाम से मिले तो तोहफे से कम नहीं होगी. चुनाव पहले के आंकलन में बाड़मेर में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी को जीत की दहलीज से काफी दूर देखा जा रहा है. कुलदीप शर्मा कहते हैं कि इस सीट पर जाट, मुसलमान और मेघवाल वोट हासिल करने वाली पार्टी को ही जीत मिलेगी.
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बदले हुए चेहरों पर भी असमंजस : साधारणत: राजनीति की परिपाटी रही है कि किसी क्षेत्र में नेता विशेष का विरोध होने पर पार्टी अक्सर चेहरा बदल देती है. इस सियासी रवायत का राजस्थान में हाल के चुनाव पर खास असर देखने को नहीं मिला है. अंदरखाने की हलचल के बाद चूरू में जिस तरह से पार्टी ने पैरा ओलंपिक खिलाड़ी देवेंद्र झाझड़िया पर दांव खेला, वो पूर्व सांसद राहुल कस्वा के आगे मजबूत नहीं दिखा. बांसवाड़ा में कांग्रेस नेता को भाग्य आजमाने की जिम्मेदारी सौंपी गई तो गठबंधन में बाप (भारतीय आदिवासी पार्टी) ने भी यहां मुश्किल पैदा कर दी. जालौर में लुंबाराम जीत के करीब है, लेकिन आशंका बरकरार है. नागौर, दौसा और झुंझुनू के हालात बता रहे हैं कि पार्टी चेहरा बदलकर भी कोई खास कमाल नहीं करने वाली है. यहां तक कि अब श्रीगंगानगर का चुनाव परिणाम भी नजदीकी मुकाबले की तरफ देखा जा रहा है.
खड़े सिक्के में किसकी चित, किसकी पट : शेखावाटी की कहावत है कि जब तस्वीर साफ नहीं होती तो मान लीजिए सिक्का खड़ा है और अभी उसका पहलू साफ नहीं है. राजस्थान की कुछ लोकसभा सीटों पर फिलहाल संभावित परिणाम को लेकर इसी तरह की स्थिति नजर आ रही है. इन सीटों में लगातार दो बार से भाजपा की जीत का आधार बन रही जयपुर ग्रामीण और टोंक सवाई माधोपुर संसदीय सीट शामिल है. पूर्वी राजस्थान की भरतपुर और करौली धौलपुर सीट को लेकर भी दोनों दल फिलहाल आश्वस्त नजर नहीं आ रहे हैं. मोदी के चेहरे पर दो बार राजस्थान में फुल हाउस जीत का सेहरा बांधने वाली पार्टी अगर एक दर्जन से अधिक सीटों पर संभावनाओं के बीच बात कर रही है, तो फिर सत्ता के साथ सरकार चला रहे मुखिया के लिए चिंतित होना लाजमी है.
चुनाव परिणाम के बीच राजनीतिक दल नेतृत्व क्षमता को लेकर भी अपना आकलन रखेंगे, जो आने वाले समय में प्रदेश में बदलते सियासी चेहरे को लेकर निर्णय का आधार बनेगा. लिहाजा भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस भी बेताबी से 4 जून का इंतजार कर रही है. कुलदीप शर्मा कहते हैं कि दौसा में कांग्रेस जीत की ओर दिख रही है, दौसा ही नहीं, भरतपुर, टोंक सवाई माधोपुर में भी कांग्रेस मजबूत है.
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पार्टी नेतृत्व को लेकर क्या रहेगी तस्वीर : कुलदीप शर्मा के अनुसार मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पर इस परिणाम का असर पूरे देश से मिली सीटों से तय होगा. भाजपा कोई जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेगी. उनका कहना है कि राजस्थान में कहावत है कि 'ठंडी करके खायेंगे', इसलिए भजनलाल पर कोई संकट ऊपर से नहीं है, यह नीचे से शुरू होगा यानी डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और वसुंधरा राजे ग्रुप क्या रुख अपनाता है, उससे आगे की बातें तय होगी. हालांकि, वे मानते हैं कि चुनावों के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बदलना तय है. मोदी जी का बहुमत और प्रधानमंत्री बनना भी तय है.
सीपी जोशी केंद्र में मंत्री बन सकते हैं तो अगला अध्यक्ष कौन होगा. यह बड़ा प्रश्न है. कुलदीप शर्मा के अनुसार भजनलाल शर्मा पूरे पांच साल के मुख्यमंत्री हैं या नहीं, यह चर्चा पहले दिन से है, लेकिन दो सवाल उनसे जरूर होंगे. एक चूरू का फीडबैक सही नहीं गया और दूसरा बाड़मेर में वे भाटी को रोक नहीं सके. इसके अलावा तीसरा सवाल है कि भरतपुर, दौसा में ईआरसीपी की घोषणा के बाद हार होती है, तो यह गहरे प्रश्न हैं. भाजपा के लिए गुर्जर और मीणा वोटों में बिखराव भी चिंता का विषय है.
सबसे बड़ी बात यह कि नागौर और बांसवाड़ा में चुनाव भाजपा बहुत मजबूती से नहीं लड़ सकी. इसका जवाब भी भजनलाल शर्मा और चुनाव राजनीतिज्ञों को देना होगा. उनके मुताबिक राजस्थान के चुनाव परिणाम इस बार बहुत चौंकाने वाले होंगे और इस खड़े सिक्के की खनक दूर तक सुनाई देगी. जब यह गिरेगा तो किसी का ताज भी ले गिर सकता है.