पटनाः कहा जाता है कि जब घर में फूट होती है तो दुश्मन भारी पड़ने लगते हैं. बिहार की सियासत में इन दिनों यही चर्चा है. चर्चा इस बात की है कि क्या अपनों की नाराजगी से NDA 2019 वाला प्रदर्शन नहीं दोहरा सका. क्या भितरघात नहीं होता तो 9 सीटों पर NDA की मात नहीं होती ?
2019 में 39 सीटों पर मिली थी जीतः 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA ने ऐतिहासिक सफलता हासिल की थी और बिहार की 40 सीटों में से एक सीट किशनगंज को छोड़कर सभी 39 सीटों पर विजय पताका फहराई थी. किशनगंज सीट पर कांग्रेस को कामयाबी मिली, लेकिन आरजेडी सहित महागठबंधन में शामिल सभी दलों को सूपड़ा साफ हो गया था.
2024 में छिन गईं 9 सीटः 2024 के लोकसभा चुनाव में तो NDA ने दावा किया था कि इस बार सभी 40 सीटों पर जीत दर्ज करेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका और पिछली बार की अपेक्षा NDA को 9 सीट का नुकसान हो गया. माना जा रहा है कि महागठबंधन की रणनीतियों के साथ-साथ अपनों की उदासीनता भी इस हार की बड़ी वजह रही है.
बीजेपी को 5 सीटों पर मिली हारः 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 17 कैंडिडेट उतारे थे और 100 फीसदी की स्ट्राइक रेट के साथ बीजेपी ने सभी सीटों पर कामयाबी हासिल की थी, लेकिन 2024 में बीजेपी को 5 सीटों पर हार मिली. बीजेपी ने इस बार 17 सीटों से चुनाव लड़ा था, जिनमें बीजेपी को औरंगाबाद, आरा, बक्सर, सासाराम और पाटलिपुत्र में हार का मुंह देखना पड़ा.
बक्सर में चौबे की नाराजगी पड़ी भारीः बक्सर लोकसभा सीट बीजेपी की पारंपरिक सीट मानी जाती है. पार्टी ने इस बार अश्विनी चौबे का टिकट काटकर मिथिलेश तिवारी को मैदान में उतारा. इस फैसले के बाद अश्विनी चौबे बक्सर के चुनावी अभियान से पूरी तरह दूर रहे. बक्सर में हार की बड़ी वजहों में अश्विनी चौबे की नाराजगी भी मानी जा रही है.
सासाराम में छेदी ने दिखाया बेगानापनः बात सासाराम लोकसभा सीट की करें तो यहां से भी बीजेपी ने कैंडिडेट बदला और छेदी पासवान की जगह शिवेश राम पर दांव खेला, लेकिन ये दांव उल्टा पड़ गया. पूरे चुनाव के दौरान छेदी पासवान निष्क्रिय रहे और शिवेश राम चुनाव हार बैठे.
मंत्री-विधायकों के इलाके में भी नहीं मिली अपेक्षित बढ़तः निश्चित तौर पर हार की कोई एक वजह नहीं रही होगी, लेकिन आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि अपने विधायकों-मंत्रियों के इलाकों में भी प्रत्याशियों को या तो मामूली बढ़त मिली या फिर पीछे रह गये. सासाराम लोकसभा क्षेत्र में आनेवाले चैनपुर से जमा खान विधायक हैं और बिहार सरकार में मंत्री हैं.बावजूद इसके बीजेपी कैंडिडेट को चैनपुर में सिर्फ 400 वोट की बढ़त मिली.
बड़हरा में पीछे रह गये आर के सिंहः आरा लोकसभा सीट से आर के सिंह की जीत पक्की मानी जा रही थी. इस सीट के अंतर्गत बड़हरा विधानसभा सीट पर बीजेपी के राघवेंद्र प्रताप सिंह विधायक हैं, लेकिन आर के सिंह बड़हरा विधानसभा इलाके में बड़े मतों के अंतर से पीछे रह गये.
कई जीती हुई सीटों पर भी हुआ यही हालः हारनेवाली सीटों के अलावा भी कई ऐसी सीट हैं, जहां NDA कैंडिडेट की जीत तो हो गयी लेकिन एकजुटता का अभाव दिखा. समस्तीपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत कल्याणपुर विधानसभा इलाके में NDA कैंडिडेट को मामूली बढ़त मिली, जबकि बिहार सरकार में मंत्री महेश्वर हजारी वहां से विधायक है. हालांकि इस सीट से महेश्वर हजारी के बेटे सन्नी हजारी ही NDA कैंडिडेट के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे.
जमुई में भी यही कहानीः वैसे तो जमुई लोकसभा सीट पर NDA प्रत्याशी अरुण भारती चुनाव जीतने में कामयाब रहे लेकिन इस लोकसभा सीट के तहत आनेवाली चकाई विधानसभा क्षेत्र से NDA प्रत्याशी को मामूली बढ़त ही मिल पाई, जबकि चकाई विधायक सुमित सिंह बिहार सरकार में मंत्री हैं.
विपक्ष ने किया वारः विधायकों और मंत्रियों के इलाकों में भी अच्छी बढ़त नहीं मिलने या फिर पिछड़ने को लेकर विपक्ष हमलावर है. आरजेडी के प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है कि "इनके प्रत्याशी अपने मंत्रियों के इलाकों मेंं भी बढ़त इसलिए नहीं बना पाए कि ये लोग कोई काम नहीं करते हैं. जाहिर है जनता में इनके प्रति नाराजगी है."
'हार की समीक्षा करेंगेः' वहीं बीजेपी का कहना है कि हार के कई कारण रहे हैं और इसकी समीक्षा की जरूरत है. पार्टी के प्रवक्ता राकेश सिंह का कहना है कि "कुछ सीटों पर हम हारे हैं. किन कारणों से हमें अपेक्षित सफलता नहीं मिली, इसकी समीक्षा होगा और पार्टी आगे की रणनीति बनाएगी."
'खतरे का संकेत दे रहे हैं नतीजे': कई लोकसभा सीटों पर NDA की हार को सियासी पंडित आनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए खतरे की घंटी बता रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय का मानना है कि " कई जगहों पर तो सांसद और विधायक या मंत्री में मतभेद थे.जिसके चलते ऐसी नौबत आई वहीं कई जगहों पर एंटी इनकंबेंसी फैक्टर भी हार का कारण रहा."
विधानसभा चुनाव में दिख सकता है असर ? : लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं और अब एक साल बाद बिहार विधानसभा के चुनाव होनेवाले हैं. ऐसे में लोकसभा सीटों पर हुए 'खेला' का असर विधानसभा के चुनाव में भी देखने को मिल सकता है, ऐसी आशंका से बिल्कुल इंकार नहीं किया जा सकता है.