जयपुर. राजस्थान में पहले चरण की सभी 12 सीटों पर मतदान संपन्न हो गया है. वोटिंग प्रतिशत पिछली बार की तुलना में 6 फीसदी के करीब कम रहा. इस बार मतदाताओं में कम उत्साह के चलते मतदान प्रतिशत 57.87 फीसदी तक ही पहुंच पाया. इनमें 57.26 ईवीएम और 0.61 पोस्टल बैलट से मतदान हुआ. हालांकि निर्वाचन आयोग की ओर से अभी फाइनल आंकड़ा आना बाकी है, लेकिन इन 12 सीटों की तुलना 2009, 2014 और 2019 से करें तो रोचक तस्वीर सामने आ रही है. कम मतदान इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि क्या इस बार भाजपा की हैट्रिक पर ब्रेक लगाएगा ? क्या इस कांग्रेस का खाता खुलेगा? दोनों ही स्थितियों में इस चुनाव 4 जून के आने वाले नतीजे चौंकाने वाला होगा.
कम मतदान भाजपा को नुकसान : प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले फेज में शुक्रवार को 12 सीटों पर करीब 57.87% मतदान हुआ. यह पिछले 2019 चुनाव के 63.72% मतदान से करीब 6% कम है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि कुल मतदान प्रतिशत में अंतर से ज्यादा यह मायने रखता है कि किस पार्टी का वोट प्रतिशत घटा है, यदि भाजपा का वोटिंग प्रतिशत घटता है तो 5 से 6 सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी सीधी टक्कर में होंगे. इनमें दौसा, चूरू, झुंझुनूं, नागौर, करौली-धौलपुर और गंगानगर जैसी सीटें हो सकती हैं.
वोटिंग प्रतिशत में गिरावट : हालांकि, अभी इसमें कुछ भी कहना थोड़ा जल्दबाजी सा जरूर लग रहा है, लेकिन जब जब भी मतदान प्रतिशत घटा है , तब तब कांग्रेस को फायदा और भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है. इन 12 सीटों की तुलना 2009, 2014 और 2019 से करें तो रोचक तस्वीर सामने आ रही है. वर्ष 2009 में इन 12 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत 48.12 रहा कांग्रेस को इसका लाभ मिला, वर्ष 2014 में मतदान सीधा 13 फीसदी से अधिक बढ़कर 61.66 प्रतिशत पहुंच गया, नतीजा सभी सीटें भाजपा के खाते में, साल 2019 में ये आंकड़ा 2 फीसदी से थोड़ा और बढ़ कर 63.71 फीसदी तक चला गया, परिणाम भाजपा की सभी सीटों पर जीत. लेकिन इस बार ये आंकड़ा करीब 5.84 फीसदी घटकर 57.87 फीसदी ही रह गया. अब नजरें 4 जून के नतीजों पर रहेगा.
कम वोटिंग किसकी चिंता बढ़ाएगा ? : पिछले राजनीतिक ट्रैक को देखे तो आमतौर पर राजस्थान में परसेप्शन है कि विधानसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़े तो राज्य सरकार को टेंशन हो जाती है, वहीं लोकसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो भाजपा को फायदा मिलता है. ऐसे में इस बार पहले चरण की सीटों पर कम वोटिंग ने भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है. सवाल ये भी है कि पहले चरण में कम वोटिंग होने से भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर में क्या अंतर रहेगा. सीट जीत-हार का असल खेल वोट शेयर के आंकड़ों में छिपा है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में करीब 24 फीसदी का अंतर रहा. इस कारण कांग्रेस पिछले दो बार से खाता भी नही खोल पाई. इस बार कम वोटिंग से कांग्रेस में खाता खुलने की कुछ आस जगी है.
इनका अपना - अपना दावा : मतदान के बाद भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा कि राजस्थान में 12 लोकसभा सीटों पर संपन्न हुए इस लोकतंत्र के महायज्ञ में प्रदेश की जनता ने अपने अमूल्य वोट की आहुति प्रदान की. ऐसे में भाजपा प्रदेश के मतदाताओं का अभिनंदन करती है. सीपी जोशी ने कहा कि 4 जून को लोकसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद एक बार फिर से देशभर में बड़ा जश्न मनाया जाएगा. प्रदेश की जनता ने लगातार तीसरी बार 25 की 25 सीटों पर कमल खिलाने का मानस बना लिया है और मतदाताओं का यह मन लोकसभा चुनावों के प्रथम चरण में साफ देखने को मिला. जबकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में प्रदेश की 12 सीटों पर संपन्न हुए चुनावों में सभी मतदाताओं का आभार और धन्यवाद. राजस्थान में कम मतदान का मतलब लोगों में डबल इंजन सरकार और मोदी की गारंटी के प्रति मोह भंग. इसका सीधा फायदा इंडिया गठबंधन को मिलेगा.