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अधर में भाजपा के इन नेताओं का लोकसभा चुनाव 2024 का टिकट, रिश्तो की डोर टूटेगी या राजनीति की गांठ

Lok Sabha Election 2024: सुल्तानपुर, पीलीभीत, प्रयागराज और बदायूं सीटों के भविष्य को लेकर भारतीय जनता पार्टी में कयासबजियों का जोर है. जिसमें सबसे ज्यादा सुरक्षित संघमित्रा मौर्य की सीट मानी जा रही है. जबकि प्रयागराज और पीलीभीत के अलावा सुलतानपुर सीट पर वर्तमान सांसदों का भविष्य खतरे में है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 19, 2024, 4:32 PM IST

लखनऊ: स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य के लिए टिकट की संभावना उनके समाजवादी पार्टी छोड़ने के साथ ही कुछ बढ़ गई है. संघमित्रा उन नेताओं में शामिल हैं, जिनके निकट रिश्तेदार अन्य दलों में हैं. समाजवादी पार्टी में गए मयंक जोशी की मां रीता बहुगुणा जोशी और वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी के टिकट के लिए भाजपा में स्पष्ट लाल झंडी हो चुकी है.

यह बात दीगर है कि मेनका गांधी और रीता बहुगुणा जोशी इस बात का पूरा प्रयास कर रही हैं कि उनको एक बार फिर से उनकी संसदीय सीट से टिकट भारतीय जनता पार्टी दे दे. लेकिन, आने वाले समय में यह देखने वाला होगा कि भारतीय जनता पार्टी की सियासत में रिश्तों की डोर बंधेगी या सियासत इन रिश्तों की डोर को तोड़ देगी.

संघमित्रा मौर्य का क्या होगा भविष्य: 2019 के लोकसभा चुनाव में संघमित्रा मौर्य ने बदायूं लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के नेता धर्मेंद्र यादव को पराजित किया था. संघमित्रा मौर्य समाजवादी पार्टी छोड़ने का ऐलान कर चुके स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं. जिस समय 2019 में संघमित्रा सांसद बनी थीं, स्वामी प्रसाद मौर्य भारतीय जनता पार्टी के कोटे से विधानसभा सदस्य थे और उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्री भी थे.

2022 के लोकसभा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य ने भारतीय जनता पार्टी का दामन छोड़ दिया था और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे. उन्होंने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा मगर वह पराजित हो गए थे. इसके बाद में लगातार संघमित्रा मौर्य को भारतीय जनता पार्टी में असमंजस भरे हालातों का सामना करना पड़ा है. इसके बावजूद वे भारतीय जनता पार्टी के संगठनात्मक कार्यों में लगातार जुटी रहीं. पार्टी के भीतर उनका माहौल अच्छा है और स्वामी प्रसाद मौर्य के समाजवादी पार्टी छोड़ने के बाद वह और भी बेहतर स्थिति में आ गई हैं.

वरुण और मेनका गांधी का क्या होगा भविष्य: वरुण गांधी पीलीभीत से सांसद हैं और उनकी मां मेनका गांधी सुलतानपुर संसदीय सीट से सांसद हैं. दोनों नेता 2019 के बाद से भारतीय जनता पार्टी में कमजोर हो गए हैं. वरुण गांधी लगातार विद्रोही रुख अपनाए हुए हैं. वे विपक्षी दलों से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मुद्दे उठाते रहे हैं. ऐसे में उनका टिकट कटना तय माना जा रहा है और वह विपक्षी पार्टियों के संपर्क में भी बताए जा रहे हैं. वरुण गांधी तो भारतीय जनता पार्टी से लड़ने के कोई खास इच्छुक भी नजर नहीं आ रहे. यह बात अलग है कि उनकी मां मेनका गांधी सुलतानपुर में लगातार मेहनत कर रही हैं.

रीता बहुगुणा का क्या होगा भविष्य: रीता बागोड़ा जोशी 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रयागराज से चुनाव लड़ी थीं. जिस समय उनको टिकट दिया गया था उस वक्त वह उत्तर प्रदेश की कैबिनेट मंत्री थीं. 2022 के विधानसभा चुनाव में वह अपने बेटे मयंक जोशी के लिए लखनऊ की कैंट विधानसभा क्षेत्र से टिकट चाहती थीं. मगर मयंक जोशी को टिकट नहीं मिल सका और उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक कैंट से चुनाव लड़े थे.

जिससे नाराज होकर मयंक जोशी ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी. मयंक जोशी के समाजवादी पार्टी में जाने के बाद से ही रीता बहुगुणा जोशी की स्थिति भारतीय जनता पार्टी में खराब होती जा रही थी. माना जा रहा है कि उनके हालातों में कोई खास सुधार नहीं हुआ है और वह इस बार लोकसभा की प्रत्याशी प्रयागराज से नहीं होंगी.

ये भी पढ़ेंः 'मैं आपको कुछ नहीं दे सकता', आचार्य की इस बात पर मोदी बोले- अच्छा है, वरना वीडियो बन जाता, केस हो जाता

लखनऊ: स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य के लिए टिकट की संभावना उनके समाजवादी पार्टी छोड़ने के साथ ही कुछ बढ़ गई है. संघमित्रा उन नेताओं में शामिल हैं, जिनके निकट रिश्तेदार अन्य दलों में हैं. समाजवादी पार्टी में गए मयंक जोशी की मां रीता बहुगुणा जोशी और वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी के टिकट के लिए भाजपा में स्पष्ट लाल झंडी हो चुकी है.

यह बात दीगर है कि मेनका गांधी और रीता बहुगुणा जोशी इस बात का पूरा प्रयास कर रही हैं कि उनको एक बार फिर से उनकी संसदीय सीट से टिकट भारतीय जनता पार्टी दे दे. लेकिन, आने वाले समय में यह देखने वाला होगा कि भारतीय जनता पार्टी की सियासत में रिश्तों की डोर बंधेगी या सियासत इन रिश्तों की डोर को तोड़ देगी.

संघमित्रा मौर्य का क्या होगा भविष्य: 2019 के लोकसभा चुनाव में संघमित्रा मौर्य ने बदायूं लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के नेता धर्मेंद्र यादव को पराजित किया था. संघमित्रा मौर्य समाजवादी पार्टी छोड़ने का ऐलान कर चुके स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं. जिस समय 2019 में संघमित्रा सांसद बनी थीं, स्वामी प्रसाद मौर्य भारतीय जनता पार्टी के कोटे से विधानसभा सदस्य थे और उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्री भी थे.

2022 के लोकसभा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य ने भारतीय जनता पार्टी का दामन छोड़ दिया था और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे. उन्होंने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा मगर वह पराजित हो गए थे. इसके बाद में लगातार संघमित्रा मौर्य को भारतीय जनता पार्टी में असमंजस भरे हालातों का सामना करना पड़ा है. इसके बावजूद वे भारतीय जनता पार्टी के संगठनात्मक कार्यों में लगातार जुटी रहीं. पार्टी के भीतर उनका माहौल अच्छा है और स्वामी प्रसाद मौर्य के समाजवादी पार्टी छोड़ने के बाद वह और भी बेहतर स्थिति में आ गई हैं.

वरुण और मेनका गांधी का क्या होगा भविष्य: वरुण गांधी पीलीभीत से सांसद हैं और उनकी मां मेनका गांधी सुलतानपुर संसदीय सीट से सांसद हैं. दोनों नेता 2019 के बाद से भारतीय जनता पार्टी में कमजोर हो गए हैं. वरुण गांधी लगातार विद्रोही रुख अपनाए हुए हैं. वे विपक्षी दलों से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मुद्दे उठाते रहे हैं. ऐसे में उनका टिकट कटना तय माना जा रहा है और वह विपक्षी पार्टियों के संपर्क में भी बताए जा रहे हैं. वरुण गांधी तो भारतीय जनता पार्टी से लड़ने के कोई खास इच्छुक भी नजर नहीं आ रहे. यह बात अलग है कि उनकी मां मेनका गांधी सुलतानपुर में लगातार मेहनत कर रही हैं.

रीता बहुगुणा का क्या होगा भविष्य: रीता बागोड़ा जोशी 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रयागराज से चुनाव लड़ी थीं. जिस समय उनको टिकट दिया गया था उस वक्त वह उत्तर प्रदेश की कैबिनेट मंत्री थीं. 2022 के विधानसभा चुनाव में वह अपने बेटे मयंक जोशी के लिए लखनऊ की कैंट विधानसभा क्षेत्र से टिकट चाहती थीं. मगर मयंक जोशी को टिकट नहीं मिल सका और उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक कैंट से चुनाव लड़े थे.

जिससे नाराज होकर मयंक जोशी ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी. मयंक जोशी के समाजवादी पार्टी में जाने के बाद से ही रीता बहुगुणा जोशी की स्थिति भारतीय जनता पार्टी में खराब होती जा रही थी. माना जा रहा है कि उनके हालातों में कोई खास सुधार नहीं हुआ है और वह इस बार लोकसभा की प्रत्याशी प्रयागराज से नहीं होंगी.

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