जयपुर. लोकसभा चुनाव की गहमा-गहमी के बीच देशभर की आंगनबाड़ी कर्मचारियों ने सम्मानजनक मानदेय और सम्मानपूर्ण सेवा शर्तों की मांग को लेकर आवाज बुलंद की है. देश के अलग-अलग राज्यों के आंगनबाड़ी संघों के प्रमुख पदाधिकारी रविवार को जयपुर में इकट्ठा हुए और अपनी मांगों को लेकर चर्चा की.
इस दौरान केंद्र की भाजपा सरकार पर आंगनबाड़ी कर्मचारियों के हितों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए पदाधिकारियों ने कहा कि पांच साल में केंद्र सरकार ने मानदेय में एक रुपए की भी बढ़ोतरी नहीं की. अब लोकसभा चुनावों में देशभर की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और उनके परिवार एकजुट होकर अपने हक की आवाज बुलंद करेंगे. उसी पार्टी को समर्थन देंगे, जो अपने चुनावी घोषणा पत्र में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की चार प्रमुख मांगों को शामिल करेगी.
कांग्रेस ने मानदेय दोगुना करने का किया वादा : ऑल इंडिया आंगनबाड़ी एम्प्लाइज फेडरेशन के राष्ट्रीय संयोजक छोटेलाल बुनकर ने बताया कि कांग्रेस ने हाल ही में अपने घोषणा पत्र में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय को दोगुना करने और सेवा शर्तों में सुधार की घोषणा की है. हालांकि, यह नाकाफी है. उन्होंने कहा कि आज जिस तेजी से महंगाई बढ़ रही है, उसके हिसाब से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय तीन गुना बढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने अन्य पार्टियों से भी मांग की है कि अपने घोषणा पत्र में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की चार प्रमुख मांगों को शामिल किया जाए.
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अभी 6 से 13 हजार रुपए मानदेय : दरअसल, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को अभी केंद्र सरकार की ओर 4500 रुपए फिक्स मानदेय दिया जा रहा है. यह राशि सभी राज्यों में एक समान है. इस राशि में राज्य सरकार अपनी ओर से अंशदान मिलाकर कार्यकर्ताओं को भुगतान करती है. इसी के चलते अलग-अलग राज्यों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय अलग-अलग है. राज्यों के अनुसार यह मानदेय 6 से लेकर 13 हजार रुपए तक है.
यह हैं चार प्रमुख मांगें : उन्होंने मांग की है कि फिलहाल केंद्र सरकार की ओर से 4500 रुपए मानदेय दिया जाता है, जिसे बढ़ाकर तीन गुना किया जाए. मानदेय वृद्धि को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ा जाए, ताकि महंगाई बढ़ने पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के महंगाई भत्ते के साथ मानदेय में बढ़ोतरी हो. सेवा शर्तों में सुधार के साथ केंद्र की ओर से उच्च अधिकार प्राप्त कमेटी बनाई जाए. इस कमेटी में संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए. केंद्र की ओर से पांच साल में मानदेय में बढ़ोतरी नहीं करने पर निंदा भी की गई.