देहरादून: राजनीति में कब क्या हो जाए यह किसी को खबर नहीं होती, और खासकर बीजेपी जिस तरह से चौंकाने वाले फैसले ले रही है उसके बाद तो अंतिम पंक्ति में बैठा नेता भी यह नहीं सोच पा रहा कि आखिरकार उसको पार्टी कौन सी जिम्मेदारी कब दे दे. यहां तक कि जो नेता कुर्सी पर बैठा है उसे भी ये नहीं मालूम होता कि अगले पल वो उस कुर्सी पर रहेगा या नहीं. ऐसा ही कुछ हरियाणा में भी हुआ है. ताजा घटनाक्रम में लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले बीजेपी ने बड़ा सियासी उलटफेर करते हुए मुख्यमंत्री को बदल दिया है.
हरियाणा में बीजेपी ने मनोहर लाल खट्टर को सीएम पद से हटाते हुए नायब सैनी को प्रदेश का नया मुख्यमंत्री बनाया है. हालांकि, बीजेपी ने इस तरह का चौंकाने वाला फैसला कोई पहली बार नहीं लिया है, इससे पहले भी बीजेपी कई राज्यों में चुनाव से ठीक पहले ऐसे प्रयोग कर चुकी है, जिसमें बीजेपी को सफलता भी मिली है. ऐसा ही कुछ बीजेपी ने साल 2021 में उत्तराखंड में भी किया था, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से पार्टी ने इस्तीफा दिलवा दिया और उनकी जगह तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड का सीएम बनाया था. हालांकि तीरथ सिंह रावत भी चार महीने ही सीएम रह पाए थे और फिर उनकी जगह पुष्कर सिंह धामी को सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया था.
साल 2021 में उत्तराखंड में किया प्रयोग रहा सफल: हरियाणा में हुए घटनाक्रम के बाद उत्तराखंड की पुरानी यादें ताजा हो गईं जब 2017 का चुनाव प्रचंड बहुमत से जीतने के बाद बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद पर त्रिवेंद्र सिंह रावत को बैठाया था. तीन साल तो त्रिवेंद्र सरकार की जमकर तारीफ हुई, लेकिन चौथा साल पूरा होने से ठीक पहले ही बीजेपी हाईकमान ने साल 2021 में त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया. दरअसल, पार्टी में कुछ विधायकों की त्रिवेंद्र से बढ़ी नाराजगी आलाकमान तक पहुंच गई थी. बीजेपी चुनाव से पहले इस गतिरोध को भांप लेती है और इसको दूर करने के लिए बकायदा राजधानी देहरादून के एक होटल में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के साथ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी मंच साझा करते हैं. नितिन गडकरी यहां तक कहते हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ही उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के रूप में पूरे 5 साल पूरा करेंगे और पार्टी सीएम बदलाव का कोई फैसला नहीं लेने वाली. इसी मंच से केंद्रीय मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की तारीफों के पुल बांधते हैं.
पीएम ने बांधे थे तारीफों के पुल: इसके बाद कोरोना काल के दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत दिल्ली का दौरा करते हैं. वहां वो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिलते हैं. केंद्रीय मंत्री से उनकी यह मुलाकात सामरिक दृष्टि से चौखुटिया में हवाई पट्टी बनाए जाने को लेकर होती है. इस मुलाकात के बाद राजनाथ सिंह भी त्रिवेंद्र सिंह रावत की तारीफ करते हुए नहीं थकते. यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कोविड काल के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रशासनिक कौशलता और कार्यशैली की खूब तारीफ भी की थी.
प्रधानमंत्री की इस शाबाशी के बाद त्रिवेंद्र सरकार को बूस्ट भी मिला. लेकिन किसी को क्या पता था कि उन्हें गैरसैंण में चल रहे विधानसभा सत्र के पहले दिन ही बीच से ही दिल्ली बुला लिया जाएगा. दिल्ली पहुंचे तो त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस्तीफा देने के लिए कहा गया और ये तब हुआ जब राज्य में बजट सत्र शुरू हो गया था. त्रिवेंद्र सिंह रावत सत्र में शामिल भी नहीं हो पाए थे. साल 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी का ये फैसला सबके लिए चौंकाने वाला था. बताया जाता है कि बीजेपी को पहले ही आभास हो गया था कि यदि त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री के पद पर बने रहे तो 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.
तीरथ 4 महीने रहे सीएम: तब त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर पौड़ी सांसद तीरथ सिंह रावत को प्रदेश का नया सीएम बनाया गया था. लेकिन चार महीने के अंदर ही बीजेपी ने तीरथ सिंह रावत को भी सीएम की कुर्सी से हटा दिया था. तीरथ सिंह रावत को हटाने की वजह पार्टी ने संवैधानिक संकट बताया गया था.
तीरथ को हटाकर खटीमा विधायक को बनाया सीएम: बीजेपी ने एक के बाद एक मुख्यमंत्री को हटाने का फैसल इसलिए लिया क्योंकि साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा किसी तरह का कोई रिस्क लेना नहीं चाहती थी. तीरथ के बाद राज्य की कमान एकाएक खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी को दे दी गई. पार्टी का यह फैसला काफी हद तक कामयाब भी रहा. उत्तराखंड में बीजेपी ने धामी को मुख्यमंत्री बनने के बाद चुनाव में 47 सीटों पर विजय हासिल की और एक बार फिर से राज्य में बीजेपी की सरकार बनाने में कामयाब रही.
गुजरात में भी बीजेपी ने कुछ ऐसा ही किया था: सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, बीजेपी ने कुछ ऐसा ही दूसरे राज्यों में भी किया है. उत्तराखंड की तरह ही गुजरात में भी बीजेपी ने चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का चेहरा बदल दिया था. साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव से 15 महीने पहले अचानक विजय रुपाणी को हटाकर भूपेंद्र पटेल को नया मुख्यमंत्री बना दिया था. बताया जाता है कि बीजेपी माहौल को भांप गई थी और पार्टी हाईकमान को लगने लगा था कि विजय रूपाणी के सीएम रहते हुए बीजेपी 2022 में गुजरात विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाएगी. इसलिए बीजेपी ने सितंबर 2021 में विजय रूपाणी का इस्तीफा ले लिया और उनकी जगह भूपेंद्र पटेल को गुजरात का नया सीएम बनाया. यहां भी बीजेपी का सीएम को बदलने का प्रयोग सफल रहा, जिसका परिणाम ये हुआ है कि साल 2022 में गुजरात के अंदर बीजेपी ने अपनी बड़ी जीत दर्ज कराई.
कर्नाटक में फैसला गलत साबित हुआ: कुछ इसी तरह का खेल बीजेपी ने कर्नाटक में भी विधानसभा चुनाव 2023 से पहले खेला था, लेकिन यहां बीजेपी को सफलता नहीं मिली. साल 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने कर्नाटक में साल 2021 में तत्कालीन सीएम बीएस येदियुरप्पा को सीएम की कुर्सी से हटाते हुए बसवराज बोम्मई को नई सरकार की जिम्मेदारी सौंपी थी. लेकिन ये फैसला बीजेपी के लिए सही साबित नहीं हुआ और यहां 2023 में कांग्रेस की सरकार बनी.
अब हरियाणा में एक्सपेरिमेंट: अब हरियाणा में इसी एक्सपेरिमेंट को दोहराया गया है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बड़ा प्रयोग करते हुए करते हुए मनोहर लाल खट्टर को सीएम पद से हटाते हुए नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाया है. बीजेपी एंटी इनकंबेंसी और विधायकों की नाराजगी पर ब्रेक लगाने में कामयाब होकर आने वाले लोकसभा चुनाव में इसका असर देखना चाहती है. बीजेपी का इस समय फोकस हरियाणा की दस की दस लोकसभा सीटें जीतना है. हालांकि ये कितना सफल होता है, उसका पता तो आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम के बाद ही पता चलेगा.
क्या कहते हैं बीजेपी नेता: पार्टी के इस तरह के फैसलों पर उत्तराखंड में बीजेपी के मीडिया प्रभारी का कहना है कि पार्टी अपने हर सिपाही को मौका देती है. पार्टी जनती है कि किस को कब क्या जिम्मेदारी देनी है. ऐसा ही कुछ पार्टी ने हरियाणा में किया है.
क्या कहते हैं जानकार: बीजेपी के इस प्रयोग पर राजनीतिक जानकार नरेंद्र सेठी कहते हैं कि ये अटल वाली बीजेपी नहीं है. नरेंद्र सेठी का मानना है ऐसे प्रयोग करके बीजेपी राज्य में अपनी सरकार और फिर लोकसभा चुनाव में सीटों की संख्या तो बढ़ा लेती है, लेकिन इससे राज्य को बड़ा नुकसान झेलना पड़ता है.