रांची: मोदी कैबिनेट में कुर्मी कोटे से झारखंड के किसी भी सांसद को जगह नहीं मिली है. जबकि आदिवासी के बाद सबसे ज्यादा सीटों पर कुर्मी वोटरों का प्रभाव रहता है. जमशेदपुर से हैट्रिक लगाने वाले भाजपा के विद्युत वरण महतो और एनडीए की सहयोगी आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी के दोबारा गिरिडीह चुनाव जीतने पर भी दोनों में से किसी को मंत्री पद नहीं मिला. वहीं बिहार में एकमात्र सीट जीतने वाली 'हम' पार्टी के जीतन राम मांझी कई दलों के सिंगल सांसद को मोदी सरकार में जगह मिल गयी. इसकी वजह से यहां के कुर्मी संगठन ठगा महसूस कर रहे हैं. अब सवाल है कि इसको आजसू किस रूप में देख रहा है.
विधानसभा चुनाव पर पड़ सकता है असर
कुर्मी विकास मोर्चा के अध्यक्ष शीतल ओहदार ने ईटीवी भारत को बताया कि विद्युत वरण महतो हैट्रिक लगाए हैं. आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी दोबारा सांसद बने हैं. इनमें से किसी एक को तो जरुर मंत्री पद मिलना चाहिए था. हमलोग कुर्मी को एसटी का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं. हमलोग भाजपा को समर्थन देते हैं. इसी वजह से समाज में नाराजगी है.
अगर आगे चलकर मोदी कैबिनेट में कुर्मी प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है तो आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान होगा. उन्होंने बताया कि रांची सीट पर करीब 65 प्रतिशत वोट भाजपा की ओर गया था. जमशेदपुर में करीब 80 प्रतिशत कुर्मी वोट भाजपा को मिला है. हजारीबाग में करीब 45 प्रतिशत और धनबाद में भी 60 प्रतिशत से ज्यादा वोट भाजपा को मिला है. यह मान सकते हैं कि गिरिडीह में महज 15 प्रतिशत कुर्मी वोट आजसू को मिला.
कौन-कौन सी सीटों पर कुर्मी वोटर डालते हैं प्रभाव
लोकसभा सीट के लिहाज से जमशेदपुर, रांची, हजारीबाग, गिरिडीह और धनबाद सीट पर कुर्मी वोटरों का सीधा असर होता है. इसके अलावा खूंटी, चाईबासा और गोड्डा में भी कुर्मी वोटरों का प्रभाव रहता है. कुर्मी संगठनों का मानना है कि करीब 32 से 35 विधानसभा सीटों पर इस समाज का प्रभाव रहता है. ईचागढ़, सिल्ली, रामगढ़, मांडू, गोमिया, डुमरी जैसी विधानसभा सीटों पर 75 प्रतिशत से ज्यादा कुर्मी वोटर हैं.
इसके अलावा बाघमारा, टुंडी, घाटशिला, बहरागोड़ा, जुगसलाई, चंदनकियारी, बड़कागांव , बेरमो , बगोदर , सिंदरी, गोड्डा , पोड़ैयाहाट, महगामा, तमाड़, खरसावां, चक्रधरपुर सीट पर हार और जीत तय करने में कुर्मी वोटर की अहम भूमिका होती है. जबकि मनोहरपुर, सरायकेला, कांके, खिजरी, चतरा और सिमरिया में भी 30 प्रतिशत से ज्यादा कुर्मी वोटर हैं. कुर्मी संगठनों के मुताबिक सिंहभूम में भाजपा प्रत्याशी की हार का कारण कुर्मी वोट का बंटवारा बना. यहां झामुमो और जेबीकेएसएस में वोट बंट गया.
एनडीए के कप्तान पर है भरोसा- आजसू
आजसू नेता देवशरण भगत ने कहा कि मौसम देखकर लग रहा था कि आजसू को कैबिनेट में जगह मिलेगी. लेकिन नहीं मिली. पहली बात तो ये कि एनडीए की सरकार बनी है. हम लोगों ने एनडीए के नेता के रुप में नरेंद्र मोदी जी को कप्तान बनाया है. अब उनको तय करना है कि कौन प्लेयर कहां खेलेगा. अगर उसमें हस्तक्षेप करेंगे तो सवाल उठेंगे. जहां तक सभी दलों के प्रतिनिधित्व की बात है तो यह समझना जरूरी है कि झारखंड में विधानसभा का चुनाव होना है.
यहां भी एनडीए को सरकार बनाना है. हमारी नजर विधानसभा चुनाव पर है. ट्राइबल सीटें इंडिया गठबंधन को चली गयी हैं. भाजपा के कोर वोट भी दूसरों को गये हैं. जयराम महतो ने भी एनडीए का ही वोट काटा है. इसपर मंथन होना चाहिए. दोनों दलों को मिलकर विचार करना होगा. यहां जल्द से जल्द रणनीति बनाना चाहिए. उम्मीद है कि हमारे कप्तान झारखंड की परिस्थितियों को नजरअंदाज नहीं करेंगे.
मूलवासी को मिलनी चाहिए जगह- झामुमो
झामुमो भी इस मुद्दे को हवा दे रहा है. पार्टी के महासचिव सुप्रीयो भट्टाचार्य भी कह चुके हैं कि सरना धर्म कोड, ओबीसी आरक्षण और जातीय जनगणना को लागू करने के लिए मोदी कैबिनेट में जो हिस्सेदारी मिलनी चाहिए थी, वो नहीं मिली. यहां की माटी के पुत्रों को जगह नहीं मिली. आजसू को भी ठेंगा दिखा दिया. झामुमो ने सवाल उठाया कि रांची के सांसद संजय सेठ को राज्य मंत्री बना दिया गया. जबकि उन्होंने एचईसी के मजदूरों के हक की आवाज कभी नहीं उठायी. विधानसभा के चुनाव में सीट मांगने वाली पार्टी के नेता कैसे कह पाएंगे कि हमारा कमिटमेंट झारखंड के साथ है. झामुमो ने राज्यहित में एक और कैबिनेट और स्वतंत्र प्रभार का मंत्री बनाने की मांग की है.
लेकिन आजसू के रुख से साफ है कि उसको प्रदेश की राजनीति में ज्यादा इंटरेस्ट है. जयराम महतो का उभरना आजसू के लिए चुनौती बन सकता है. इसलिए कुर्मी संगठनों की नाराजगी और झामुमो की चुटकी के बावजूद आजसू के नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि 2024 के विधानसभा चुनाव पर भाजपा और आजसू को मिलकर फोकस करना होगा. क्योंकि दोनों दल 2019 में अलग-अलग विधानसभा चुनाव लड़कर इसका खामियाजा भुगत चुके हैं.
ये भी पढ़ें-