लखनऊः कभी 80 और 90 के दशक मे चरम पर रहे खालिस्तानी मूवमेंट का असर अब भी उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र मे दिख रहा है. सोमवार को पीलीभीत के पूरनपुर क्षेत्र की बड़ी नहर के किनारे यूपी पुलिस और पंजाब पुलिस ने सयुंक्त अभियान मे 3 खालिस्तानी आतंकवादियों को ढेर कर दिया गया है. पंजाब पुलिस द्वारा यह सूचना मिली थी की यह आतंकी पीलीभीत में छुपे हुए हैं. जिसके बाद यह ऑपरेशन अंजाम दिया गया. हालांकि यह पहली बार नहीं है, पहले भी पीलीभीत को खालिस्तानी आतंकी छुपने के लिए इस्तेमाल करते थे. पश्चिम देशों में बढ़े खालिस्तान कट्टरपंथ के समर्थन का असर अब भारत में पंजाब के अलावा देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश पर भी दिखा है. जिस क्षेत्र में यह घटना हुई है, वो एक सिख बाहुल्य इलाका है. आतंकवादियों के यहां पर होने से फिर सुरक्षा एजेंसीयो के कान खड़े हैं. भारी मात्रा मे हथियार,एके-47 मिलने से कई गंभीर सवाल उठते हैं. इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने पीलीभीत के कप्तान रहे 2 पूर्व डीजीपी से बात की.
पूर्व डीजीपी बृजलाल 1986 से 1988 के बीच पीलीभीत जिले के करीब सवा दो साल तक कप्तान रहे है. इनके कार्यकाल के दौरान खलिस्तान मूवमेंट ने खाफी हलचल मचा राखी थी. सितंबर 1987 में पीलीभीत में 2 संतों और 2 पुलिस कांस्टेबल की हत्या के मामले मे बृजलाल खुद पंजाब जाकर एक ऑपरेशन को अंजाम दिया था. इसके बाद कई कारवाई पीलीभीत क्षेत्र में किया था.
बड़े फार्म हाउस छुपने का सुरक्षित अड्डाः दरअसल, 1950 में पंजाब के कई बड़े किसान उत्तर प्रदेश के पीलीभीत और अन्य तराई इलाकों में सस्ती जमीन ले कर बस गए थे. इनके जंगल से सटे हुए बड़े फार्म हाउस बने हुए थे. जो कि बाद में खालिस्तानी आतंकवादियों के लिए सुरक्षित छुपने का अड्डा बन गया. ताजी हुई घटना पर बृजलाल कहते हैं कि यूपी का यह इलाका हमेशा से ही इन आतंकियों की पनाहगाह रहा है. इन पर समय-समय पर कारवाई करने की जरूरत है. साथ ही इन इलाकों मे अलर्ट रहने की भी जरूरत है.
शुरुआत में आपसी रंजिश के लिए पंजाब के लोगों ने बुलाया थाः पूर्व डीजीपी रहे सुलखन सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि वह पीलीभीत में 1991 में 1992 तक बतौर कप्तान तैनात रहे हैं. सुलखन सिंह बताते हैं वो दौर बहुत अलग था और खालिस्तानी आतंकी पूरी तरह से पीलीभीत समेत तराई बेल्ट में हावी थे. हफ्ता वसूली से लेकर कॉन्ट्रैक्ट किलिंग के केस चरम पर थे. पहले तो इन आतंकियों को यहा पंजाब से बसे लोगों ने आपसी रंजिश के चलते बुलाया और पनाह देकर इस्तेमाल किया. लेकिन बाद में यह आतंकी यहां खुद से ऑपरेट कर अपने संगठन के लिए फन्डिंग भी जुटते थे.
जंगल में बने घर छिपने का था बड़ा सहाराः सुलखान सिंह बताते हैं कि उस समय पीलीभीत के 12 में से 10 थाने खालिस्तानी गतिविधियों से प्रभावित रहे थे. कई भिड़ंत हुई, जिसमे आतंकियों के साथ पुलिसवालों की भी जान गई. जंगल इलाकों मे बने पंजाब से आए किसानों के फार्म हाउस या झाला (किसान घर) इन आतंकियों के छिपने का बड़ा सहारा था. सुलखन सिंह बताते है कि उनके समय में तो पीलीभीत से सटे सभी जिले भी खालिस्तानी मूवमेंट से प्रभावित रहते थे.
आईईडी से ब्लास्ट कर 7 पुलिसकर्मियों को उतारा था मौत के घाटः थान हजारा की घटना को याद करते हुए सुलखन सिंह बताते हैं कि एक व्यक्ति की हत्या कर उसकी लाश को ट्रैप की तरह इस्तेमाल किया. जैसे ही पुलिस मौके पर पहुंची तो आईईडी ब्लास्ट कर दिया. यह पहली ऐसी घटना थी, जिसमे 7 पुलिस कर्मी शहीद हुए थे. घटनाएं बढ़ी तो पुलिस को भी आधुनिक हथियार मिले. ट्रेनिंग दी गई और लोकल सहायता से बक्तरबंद गाड़िया भी बनवाई गई, जिससे की खालिस्तानी आतंकियों की आधुनिक एके-47 के हमले से बचा जा सके. पंजाब पुलिस से मिलने वाली सूचना पर ऑपरेशन भी किए गए.
पहली बार पूरी रात चली थी मुठभेड़ः पूर्व डीजीपी बताते हैं कि 1984 में हुए दंगों के बाद से यह घटनाए और बढ़ गई थी. यह लोग उन जगहों पर हमले करते थे, जहां चौरासी के दंगों की घटना हुई थी, यह इनका पैटर्न था. पहली मुठभेड़ के बारे में सुलखन सिंह कहते हैं कि 31 दिसम्बर की पूरी रात मुठभेड़ चली. जिसमे 3 आतंकवादी मारे गए, यह पूरे तराई क्षेत्र का पहला एनकाउंटर था. पूर्व डीजीपी का कहना है कि अगर पंजाब में खालिस्तानी गतिविधियां बढ़ रही है तो यहा यूपी में इनके संगठन छुपने के ठिकाने जरूर बनाएंगे. इसके लिए हमारी सुरक्षा एजेंसियों हमेशा सतर्क रहने की जरूरत है.