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गंगा दशहरा: जानें क्यों मनाया जाता है पर्व, कथा और क्या है स्नान का महत्व - Importance Of Ganga Dussehra - IMPORTANCE OF GANGA DUSSEHRA

Importance Of Ganga Dussehra गंगा तटों पर आज गंगा दशहरे पर्व पर भक्त आस्था की डुबकी लगा रहे हैं. साथ ही दान कर पुण्य कमा रहे हैं. धार्मिक विद्वानों के अनुसार गंगा दशहरे के दिन ही गंगा नदी धरती पर आईं थीं. इसके लिए राजा भागीरथ ने कठोर तपस्या की थी. लेकिन राजा भागीरथ कौन थे, और उन्होंने ऐसा क्यों किया. पढ़ें पूरी कहानी...

Importance Of Ganga Dussehra
गंगा दशहरा (PHOTO- ETV BHARAT GRAPHICS)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 16, 2024, 11:09 AM IST

Updated : Jun 16, 2024, 3:15 PM IST

हरिद्वार में गंगा दशहरा पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ (VIDEO -ETV BHARAT)

हरिद्वारः आज गंगा दशहरा है. गंगा दशहरे के दिन दान और गंगा में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि गंगा दशहरा के दिन ही मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं. कहा जाता है कि राजा भागीरथ की कठिन तपस्या और ब्रह्मा के वरदान के बाद मां गंगा हिमालय की वादियों और पर्वतीय दुर्गम पहाड़ों से गुजरती हुई गंगा दशहरा के दिन ही हरिद्वार के ब्रह्म कुंड में समाहित हुईं थीं. इसलिए गंगा दशहरा पर्व पर हरिद्वार में गंगा स्नान का काफी महत्व है.

पूजा और स्नान का समय: हमारे हिंदू धर्म में गंगा दशहरा का बड़ा महत्व माना जाता है. ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व हर साल मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन ही मां गंगा का धरती पर पदार्पण हुआ था. इसी दिन राजा भागीरथ मां गंगा को पृथ्वी पर लेकर आए थे. गंगा दशहरा के दिन दान और गंगा स्नान का बड़ा महत्व है. कहा जाता है कि आज के दिन गंगा स्नान करने से जन्मों जन्मों के पापों से मुक्ति और भविष्य खुशियों से भर जाता है.

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, 16 जून की सुबह 2:32 मिनट से गंगा दशहरा शुरू हो जाएगा. जबकि 17 जून सुबह 4:34 तक इसका योग रहेगा. 16 जून सुबह 8 बजे से सुबह 10:37 तक विशेष पूजा अर्चना का समय है. ऐसे में आप गंगा स्नान और दान करके पुण्य भी कमा सकते हैं. जानकारों की मानें तो इस बार गंगा दशहरा के दिन तीन शुभ संयोग बन रहे हैं. जिसमें सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग और अमृत सिद्धि योग इन तीनों युगों में पूजा पाठ और मांगलिक कार्यक्रम का महत्व अधिक बढ़ जाता है.

इसलिए मनाया जाता है गंगा दशहरा: गंगा दशहरा मनाने की कहानी भगवान राम के वंशजों से जुड़ी है. राजा सगर की दो रानियां केशिनी और सुमति की कोई संतान नहीं थी. संतान प्राप्ति के लिए दोनों रानियां हिमालय में भगवान की पूजा अर्चना और तपस्या में लग गईं. तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी से राजा को 60 हजार अभिमानी पुत्र की प्राप्ति होगी. जबकि दूसरी रानी से एक पुत्र की प्राप्ति होगी. केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया. जबकि सुमति के गर्भ से एक पिंड का जन्म हुआ, उसमें से 60 हजार पुत्रों का जन्म हुआ.

मान्यता के अनुसार, राजा सगर के 60 हजार पुत्र बेहद अभिमानी और परिवार से बिल्कुल अलग थे. जबकि केशिनी का पुत्र अंशुमान, सुशील और विवेकी गुणों का था. एक दिन राजा सगर ने अपने यहां पर एक अश्वमेघ यज्ञ करवाया. राजा ने अपने 60 हजार पुत्रों को यज्ञ के घोड़े को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी. लेकिन देवराज इंद्र ने छलपूर्वक 60 हजार पुत्रों से घोड़ा चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया.

सुमति के 60 हजार पुत्रों को घोड़े के चुराने की सूचना मिली तो सभी घोड़े को ढूंढने लगे. तभी वह कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे. कपिल मुनि के आश्रम में उन्होंने घोड़ा बंधा देखा तो आक्रोश में घोड़ा चुराने की निंदा करते हुए कपिल मुनि का अपमान और उनके आश्रम में उत्पात मचाया. यह सब देख तपस्या में बैठे कपिल मुनि ने जैसे ही आंख खोली तो आंखों से ज्वाला निकली जिसने राजा के 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया. इस तरह राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों का अंत हो गया. लेकिन उनकी अस्थियां कपिल मुनि के आश्रम में ही पड़ी रही.

राजा भागीरथ ने की तपस्या: राजा सगर जानते थे कि उनके पुत्रों ने जो किया है, उसका परिणाम यही होना था. लिहाजा सभी के मोक्ष के लिए कोई उपाय खोजने बेहद जरूरी था. इसलिए राजा सगर से लेकर राजा भागीरथ (सगर के वंशज दिलीप के पुत्र) यानी उनके पूर्वजों ने अनेकों प्रयास किया. लेकिन कोई भी इस प्रयास में सफल नहीं हो पाया. अंत में भागीरथ के प्रयास से ही ये संभव हो पाया.

कहानियों में कहा गया है कि, भागीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा को हिमालय से धरती पर आना पड़ा. मां गंगा सबसे पहले पर्वत पर आईं. इसलिए उस दिन को हम गंगा सप्तमी के नाम से जानते हैं. और मां गंगा का आगमन जब मैदानी इलाके में हुआ, उस दिन को हम गंगा दशहरा पर्व के रूप में मनाते हैं. गंगा जब पहली बार मैदानी क्षेत्र में दाखिल हुई, तब जाकर हजारों सालों से रखी राजा सगर के पुत्रों की अस्थियों का विसर्जन हो पाया और राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति मिली. यही कारण है कि आज भी देश के कोने-कोने से लोग अस्थि विसर्जन और कर्मकांड करने के लिए हरिद्वार आते हैं.

मैदान में आकर गंगा बनती है नदी: धर्माचार्य प्रतीक मिश्रा पूरी कहते हैं कि हरिद्वार में गंगा का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि गंगा को पर्वतों की पुत्री कहा जाता है. लेकिन जब वह मैदान में दाखिल होती हैं तो वह युवती बन जाती है. इसीलिए हरिद्वार में मां गंगा का महत्व बढ़ जाता है. यहां पर आने वाले श्रद्धालु गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं और दान पुण्य करते हैं.

ये भी पढ़ेंः गंगा दशहरा: हरिद्वार के गंगा घाटों पर उमड़ा श्रद्धालुओं का रेला, पूजा और दान कर अर्जित कर रहे पुण्य

हरिद्वार में गंगा दशहरा पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ (VIDEO -ETV BHARAT)

हरिद्वारः आज गंगा दशहरा है. गंगा दशहरे के दिन दान और गंगा में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि गंगा दशहरा के दिन ही मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं. कहा जाता है कि राजा भागीरथ की कठिन तपस्या और ब्रह्मा के वरदान के बाद मां गंगा हिमालय की वादियों और पर्वतीय दुर्गम पहाड़ों से गुजरती हुई गंगा दशहरा के दिन ही हरिद्वार के ब्रह्म कुंड में समाहित हुईं थीं. इसलिए गंगा दशहरा पर्व पर हरिद्वार में गंगा स्नान का काफी महत्व है.

पूजा और स्नान का समय: हमारे हिंदू धर्म में गंगा दशहरा का बड़ा महत्व माना जाता है. ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व हर साल मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन ही मां गंगा का धरती पर पदार्पण हुआ था. इसी दिन राजा भागीरथ मां गंगा को पृथ्वी पर लेकर आए थे. गंगा दशहरा के दिन दान और गंगा स्नान का बड़ा महत्व है. कहा जाता है कि आज के दिन गंगा स्नान करने से जन्मों जन्मों के पापों से मुक्ति और भविष्य खुशियों से भर जाता है.

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, 16 जून की सुबह 2:32 मिनट से गंगा दशहरा शुरू हो जाएगा. जबकि 17 जून सुबह 4:34 तक इसका योग रहेगा. 16 जून सुबह 8 बजे से सुबह 10:37 तक विशेष पूजा अर्चना का समय है. ऐसे में आप गंगा स्नान और दान करके पुण्य भी कमा सकते हैं. जानकारों की मानें तो इस बार गंगा दशहरा के दिन तीन शुभ संयोग बन रहे हैं. जिसमें सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग और अमृत सिद्धि योग इन तीनों युगों में पूजा पाठ और मांगलिक कार्यक्रम का महत्व अधिक बढ़ जाता है.

इसलिए मनाया जाता है गंगा दशहरा: गंगा दशहरा मनाने की कहानी भगवान राम के वंशजों से जुड़ी है. राजा सगर की दो रानियां केशिनी और सुमति की कोई संतान नहीं थी. संतान प्राप्ति के लिए दोनों रानियां हिमालय में भगवान की पूजा अर्चना और तपस्या में लग गईं. तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी से राजा को 60 हजार अभिमानी पुत्र की प्राप्ति होगी. जबकि दूसरी रानी से एक पुत्र की प्राप्ति होगी. केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया. जबकि सुमति के गर्भ से एक पिंड का जन्म हुआ, उसमें से 60 हजार पुत्रों का जन्म हुआ.

मान्यता के अनुसार, राजा सगर के 60 हजार पुत्र बेहद अभिमानी और परिवार से बिल्कुल अलग थे. जबकि केशिनी का पुत्र अंशुमान, सुशील और विवेकी गुणों का था. एक दिन राजा सगर ने अपने यहां पर एक अश्वमेघ यज्ञ करवाया. राजा ने अपने 60 हजार पुत्रों को यज्ञ के घोड़े को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी. लेकिन देवराज इंद्र ने छलपूर्वक 60 हजार पुत्रों से घोड़ा चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया.

सुमति के 60 हजार पुत्रों को घोड़े के चुराने की सूचना मिली तो सभी घोड़े को ढूंढने लगे. तभी वह कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे. कपिल मुनि के आश्रम में उन्होंने घोड़ा बंधा देखा तो आक्रोश में घोड़ा चुराने की निंदा करते हुए कपिल मुनि का अपमान और उनके आश्रम में उत्पात मचाया. यह सब देख तपस्या में बैठे कपिल मुनि ने जैसे ही आंख खोली तो आंखों से ज्वाला निकली जिसने राजा के 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया. इस तरह राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों का अंत हो गया. लेकिन उनकी अस्थियां कपिल मुनि के आश्रम में ही पड़ी रही.

राजा भागीरथ ने की तपस्या: राजा सगर जानते थे कि उनके पुत्रों ने जो किया है, उसका परिणाम यही होना था. लिहाजा सभी के मोक्ष के लिए कोई उपाय खोजने बेहद जरूरी था. इसलिए राजा सगर से लेकर राजा भागीरथ (सगर के वंशज दिलीप के पुत्र) यानी उनके पूर्वजों ने अनेकों प्रयास किया. लेकिन कोई भी इस प्रयास में सफल नहीं हो पाया. अंत में भागीरथ के प्रयास से ही ये संभव हो पाया.

कहानियों में कहा गया है कि, भागीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा को हिमालय से धरती पर आना पड़ा. मां गंगा सबसे पहले पर्वत पर आईं. इसलिए उस दिन को हम गंगा सप्तमी के नाम से जानते हैं. और मां गंगा का आगमन जब मैदानी इलाके में हुआ, उस दिन को हम गंगा दशहरा पर्व के रूप में मनाते हैं. गंगा जब पहली बार मैदानी क्षेत्र में दाखिल हुई, तब जाकर हजारों सालों से रखी राजा सगर के पुत्रों की अस्थियों का विसर्जन हो पाया और राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति मिली. यही कारण है कि आज भी देश के कोने-कोने से लोग अस्थि विसर्जन और कर्मकांड करने के लिए हरिद्वार आते हैं.

मैदान में आकर गंगा बनती है नदी: धर्माचार्य प्रतीक मिश्रा पूरी कहते हैं कि हरिद्वार में गंगा का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि गंगा को पर्वतों की पुत्री कहा जाता है. लेकिन जब वह मैदान में दाखिल होती हैं तो वह युवती बन जाती है. इसीलिए हरिद्वार में मां गंगा का महत्व बढ़ जाता है. यहां पर आने वाले श्रद्धालु गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं और दान पुण्य करते हैं.

ये भी पढ़ेंः गंगा दशहरा: हरिद्वार के गंगा घाटों पर उमड़ा श्रद्धालुओं का रेला, पूजा और दान कर अर्जित कर रहे पुण्य

Last Updated : Jun 16, 2024, 3:15 PM IST
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