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कारगिल की जंग का 'शेरशाह', जिसने 'दिल मांगे मोर' कहकर पाकिस्तान की बखिया उधेड़ी - Kargil War Hero Vikram Batra

Kargil War Hero Vikram Batra Story: कैप्टन विक्रम बत्रा हिमाचल के पालमपुर के रहने वाले थे. करगिल युद्ध में दिखाए गए अदम्य साहस के लिए आज भी उन्हें याद किया जाता है. चंडीगढ़ डीएवी कॉलेज में पढ़ाई खत्म करने के बाद 1995 में वो सेना में भर्ती हुए थे.

कारगिल का शेरशाह
कारगिल का शेरशाह (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 25, 2024, 6:25 PM IST

Updated : Jul 25, 2024, 9:35 PM IST

शिमला: कारगिल युद्ध की जीत के उपलक्ष्य में इस बार भारत रजत जयंती मना रहा है. दुनिया की इस सबसे मुश्किल जंग को आज 25 साल बीत चुके हैं. आज पूरा देश उन वीर जवानों को याद कर रहा है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी. इन वीर जवानों के खौलते हुए लहू से पहाड़ों पर पड़ी सफेद भी लाल हो गई थी. कारगिल जंग के कई नायक थे, जिन्होंने अपनी बहादुरी से दुश्मनों के कदम भारत की जमीन से उखाड़ दिए. उन्हीं में से एक हैं शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा, जिनके जिक्र के बिना करगिल की जीत की कहानी हमेशा अधूरी रहेगी, क्योंकि जब-जब कारगिल की बात होगी कैप्टन विक्रम बत्रा का जिक्र होना लाजमी हो जाएगा. कारगिल के उस शेरशाह के किस्से ही ऐसे हैं, जिन्हें सुनकर आपमें जोश भर जाएगा.

कैप्टन विक्रम बत्रा
कैप्टन विक्रम बत्रा (फाइल फोटो)

विक्रम बत्रा को करगिल का शेरशाह कहा जाता है. उनकी कहानी को इसी नाम से बनी फिल्म में पर्दे पर दिखाया गया था. फिल्म में कैप्टन विक्रम बत्रा का किरदार सिद्धार्थ मल्होत्रा ने निभाया था. शेरशाह सिर्फ एक फिल्म नहीं इससे हर भारतीय के जज्बात जुड़े हैं, क्योंकि इनके बिना करगिल की कहानी अधूरी है. इससे पहले भी करगिल युद्ध पर बनी फिल्म LOC KARGIL में भी विक्रम बत्रा का किरदार अभिषेक बच्चन ने निभाया था. विक्रम बत्रा का पंच लाइन 'ये दिल मांगे मोर' बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गया था. यही पंचलाइन उनकी पहचान बन गई थी. कारगिल में पड़ी बर्फ पिघल सकती है, लेकिन कैप्टन बत्रा की बहादुरी की कहानी कभी नहीं मिटाई जा सकती है.

डीएवी चंडीगढ़ से की पढ़ाई

देश के लिए बत्रा करगिल का शेरशाह थे, लेकिन माता-पिता के लिए लव थे. उनका जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल के पालमपुर में हुआ था. घुग्गर गांव के स्कूल टीचर जीएल बत्रा और मां कमलकांता बत्रा दो बेटियों के बाद एक बेटा चाहते थे. भगवान ने दोगुनी खुशियां उनकी झोली में डाल दीं और कमलकांता बत्रा ने जुड़वां बेटों को जन्म दिया, जो माता-पिता के लिए लव-कुश थे. विक्रम बड़े थे जिन्हें लव और छोटे भाई विशाल को कुश कहकर बुलाते थे. मां भी टीचर थी तो बत्रा ब्रदर्स की पढ़ाई की शुरुआत घर से ही शुरू हो गई थी. डीएवी स्कूल पालमपुर में पढ़ाई के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए वो चंडीगढ़ चले गए. स्कूल और कॉलेज के उनके साथी और टीचर आज भी उनकी मुस्कान, दिलेरी और उनके मिलनसार स्वभाव को याद करते हैं.

लाखों का सैलरी पैकेज ठुकराया

विक्रम बत्रा का सेलेक्शन मर्चेंट नेवी में हॉन्गकांग की एक शिपिंग कंपनी में हुआ था, ट्रेनिंग के लिए बुलावा भी आ चुका था, लेकिन उन्हें सेना की वर्दी से ज्यादा प्यार था. मर्चेंट नेवी की लाखों की तनख्वाह उनसे उनकी पहली मोहब्बत (आर्मी) को जुदा नहीं कर पाई. सेना के लिए कैप्टन बत्रा के मन में प्यार का बीज एनसीसी ने डाला था. 1995 में बत्रा ने सीडीएस की परीक्षा पास की.

अपनी रेजिमेंट के साथियों के साथ कैप्टन विक्रम बत्रा
अपनी रेजिमेंट के साथियों के साथ कैप्टन विक्रम बत्रा (फाइल फोटो)

"तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर"

विक्रम बत्रा को सिर्फ बंदूक और गोली से ही प्यार नहीं था, वो यारों के यार भी थे. छुट्टियों में वो दोस्तों के साथ वक्त बिताने का कोई मौके नहीं छोड़ते थे. उन्हें अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा था. दरअसल करगिल की जंग से कुछ वक्त पहले विक्रम बत्रा अपने घर आए थे. तब उन्होंने अपने दोस्तों को एक कैफे में पार्टी दी थी. बातचीत के दौरान उनके एक दोस्त ने कहा कि तुम अब फौजी हो अपना ध्यान रखना, जिसपर विक्रम बत्रा का जवाब था ''चिंता मत करो, मैं तिरंगा लहराकर आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, लेकिन आऊंगा जरूर''.

5140 से गूंजा ये दिल मांगे मोर

विक्रम 13 जैक में थे. करगिल में जंग के मैदान में उन्हें 5140 को कैप्चर करने के लिए भेजा गया था. उनके कमांडिंग ऑफिसर ने उनका कोड नेम 'शेरशाह' रखा था. 5140 की चोटी जीतने के लिए रात के अंधेरे में पहाड़ की खड़ी चढ़ाई से दुश्मन की निगाहों से बचते हुए पाकिस्तानियों को धूल चटाई और उस पोस्ट पर कब्जा किया. जीत के बाद वायरलेस से बेस पर संदेश पहुंचाना था तो वायरलेस पर विक्रम बत्रा की आवाज गूंजी 'ये दिल मांगे मोर'.

कैप्टन विक्रम बत्रा की चिट्ठी
कैप्टन विक्रम बत्रा की चिट्ठी (फाइल)

लेफ्टिनेंट से बने कैप्टन

विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 5140 पर कब्जा कर अपने काम को बखूबी अंजाम दिया था. इसके बाद कैप्टन बत्रा देश में हीरो बन गए थे. 5140 पीक पर तिरंगा फहराते हुए कैप्‍टन विक्रम बत्रा का फोटो जब अखबार में आया था तो ये देश उनका फैन बन गया. इस मिशन के बाद से वो कारगिल का शेर के नाम से फेमस हो गए. अगले दिन जब एक टीवी चैनल पर विक्रम बत्रा ने ये दिल मांगे मोर कहा तो मानो देश के युवाओं के रग-रग में जोश भर गया. करगिल पहुंचते वक्त विक्रम बत्रा लेफ्टिनेंट थे, लेकिन 5140 की चोटी से पाकिस्तानियों का सफाया करने के बाद उन्हें जंग के मैदान में ही कैप्टन प्रमोट किया गया और अब वो थे कैप्टन विक्रम बत्रा.

तिरंगा भी फहराया और तिरंगे में लिपटकर भी आया 'शेरशाह'

5140 की चोटी फतह करने के बाद भारतीय फौज के हौसले और भी बुलंद हो गए, जिसकी एक सबसे बड़ी वजह थे कैप्टन विक्रम बत्रा. 5140 पर तिरंगा लहराने के बाद तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने खुद उन्हें फोन पर बधाई दी थी. इसके बाद मिशन था 4875 की चोटी पर तिरंगा फहराना. कहते हैं कि उस वक्त कैप्टन विक्रम बत्रा की तबीयत खराब थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने कमांडिग ऑफिसर्स से इस मिशन पर जाने की इजाजत मांगी, लेकिन उन्हें साफ मना कर दिया गया था. बत्रा के बार बार आग्रह के बाद उन्हें मिशन पर जाने की अनुमति दे दी गई.

साथी बचाने के लिए दी अपनी कुर्बानी

4875 पर मिशन के दौरान विक्रम बत्रा के एक साथी को गोली लग गई जो सीधा दुश्मनों की बंदूकों के निशाने पर था. घायल साथी को बचाते हुए ही दुश्मन की गोली कैप्टन विक्रम बत्रा को लग गई और करगिल जंग के उस सबसे बड़े नायक को शहादत मिली. विक्रम बत्रा ने एक बार बातों-बातों में दोस्तों से कहा था कि वो तिरंगा लहराकर आएंगे या फिर तिरंगे में लिपटकर आएंगे लेकिन आएंगे जरूर. करगिल की जंग में जाबांज कैप्टन विक्रम बत्रा ने 5140 पर तिरंगा लहराया और फिर 4875 के मिशन के दौरान शहादत पाई. विक्रम बत्रा ने तिरंगा लहराया भी और तिरंगे में लिपकर पालमपुर लौटे भी.

4875 की पहचान आज बत्रा टॉप

करगिल की जंग में शेरशाह पाकिस्तान के लिए खौफ का दूसरा नाम हो गया था. 4875 की चोटी से पाकिस्तानियों को खदेड़कर तिरंगा लहराने वाले विक्रम बत्रा से पाकिस्तानी सैनिक और घुसपैठिये थर-थर कांपते थे. 4875 की चोटी को फतह करने के दौरान विक्रम बत्रा शहीद हो गए, भारतीय जाबांजों ने उस चोटी पर भी तिरंगा फहराया और आज इस चोटी को बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है.

क्या था दिल मांगे मोर

कैप्टन बत्रा का स्लोगन दिल मांगे मोर यानि अब उनका लक्ष्य दूसरा मिशन है. वो और दुश्मनों को ढेर करना चाहते हैं. वो सिर्फ यहीं नहीं रुकना चाहते. 'शेरशाह' और एलओसी मूवी में एक सीन है, जिसमें कैप्टन बत्रा माधुरी दीक्षित के बारे में बात कर रहे हैं, जहां लड़ते हुए पाकिस्तानी सिपाही उनसे कहता है कि माधुरी दीक्षित हमें दे दे, हम सब यहां से लौट जाएंगे. कैप्टन विक्रम बत्रा हंसते हुए कहते हैं, माधुरी दीक्षित दूसरी फिल्म की शूटिंग में व्यस्त हैं, इसी बीच कैप्टन ने दुश्मन के बंकर में ग्रनेड फेंकते हुए कहा कि अभी इसी से काम चला ले.'

कैप्टन बत्रा भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बहादुरी के किस्से आज भी लोगों के मन में जिंदा हैं और आने वाली पीढ़ियों को देश सेवा के लिए प्रेरित करते रहेंगे. विक्रम बत्रा हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे.

ये भी पढ़ें: करगिल युद्ध में भारत ने ऐसे 'धोया' था पाकिस्तान, अमेरिका से भी पड़ी थी 'लात

शिमला: कारगिल युद्ध की जीत के उपलक्ष्य में इस बार भारत रजत जयंती मना रहा है. दुनिया की इस सबसे मुश्किल जंग को आज 25 साल बीत चुके हैं. आज पूरा देश उन वीर जवानों को याद कर रहा है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी. इन वीर जवानों के खौलते हुए लहू से पहाड़ों पर पड़ी सफेद भी लाल हो गई थी. कारगिल जंग के कई नायक थे, जिन्होंने अपनी बहादुरी से दुश्मनों के कदम भारत की जमीन से उखाड़ दिए. उन्हीं में से एक हैं शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा, जिनके जिक्र के बिना करगिल की जीत की कहानी हमेशा अधूरी रहेगी, क्योंकि जब-जब कारगिल की बात होगी कैप्टन विक्रम बत्रा का जिक्र होना लाजमी हो जाएगा. कारगिल के उस शेरशाह के किस्से ही ऐसे हैं, जिन्हें सुनकर आपमें जोश भर जाएगा.

कैप्टन विक्रम बत्रा
कैप्टन विक्रम बत्रा (फाइल फोटो)

विक्रम बत्रा को करगिल का शेरशाह कहा जाता है. उनकी कहानी को इसी नाम से बनी फिल्म में पर्दे पर दिखाया गया था. फिल्म में कैप्टन विक्रम बत्रा का किरदार सिद्धार्थ मल्होत्रा ने निभाया था. शेरशाह सिर्फ एक फिल्म नहीं इससे हर भारतीय के जज्बात जुड़े हैं, क्योंकि इनके बिना करगिल की कहानी अधूरी है. इससे पहले भी करगिल युद्ध पर बनी फिल्म LOC KARGIL में भी विक्रम बत्रा का किरदार अभिषेक बच्चन ने निभाया था. विक्रम बत्रा का पंच लाइन 'ये दिल मांगे मोर' बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गया था. यही पंचलाइन उनकी पहचान बन गई थी. कारगिल में पड़ी बर्फ पिघल सकती है, लेकिन कैप्टन बत्रा की बहादुरी की कहानी कभी नहीं मिटाई जा सकती है.

डीएवी चंडीगढ़ से की पढ़ाई

देश के लिए बत्रा करगिल का शेरशाह थे, लेकिन माता-पिता के लिए लव थे. उनका जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल के पालमपुर में हुआ था. घुग्गर गांव के स्कूल टीचर जीएल बत्रा और मां कमलकांता बत्रा दो बेटियों के बाद एक बेटा चाहते थे. भगवान ने दोगुनी खुशियां उनकी झोली में डाल दीं और कमलकांता बत्रा ने जुड़वां बेटों को जन्म दिया, जो माता-पिता के लिए लव-कुश थे. विक्रम बड़े थे जिन्हें लव और छोटे भाई विशाल को कुश कहकर बुलाते थे. मां भी टीचर थी तो बत्रा ब्रदर्स की पढ़ाई की शुरुआत घर से ही शुरू हो गई थी. डीएवी स्कूल पालमपुर में पढ़ाई के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए वो चंडीगढ़ चले गए. स्कूल और कॉलेज के उनके साथी और टीचर आज भी उनकी मुस्कान, दिलेरी और उनके मिलनसार स्वभाव को याद करते हैं.

लाखों का सैलरी पैकेज ठुकराया

विक्रम बत्रा का सेलेक्शन मर्चेंट नेवी में हॉन्गकांग की एक शिपिंग कंपनी में हुआ था, ट्रेनिंग के लिए बुलावा भी आ चुका था, लेकिन उन्हें सेना की वर्दी से ज्यादा प्यार था. मर्चेंट नेवी की लाखों की तनख्वाह उनसे उनकी पहली मोहब्बत (आर्मी) को जुदा नहीं कर पाई. सेना के लिए कैप्टन बत्रा के मन में प्यार का बीज एनसीसी ने डाला था. 1995 में बत्रा ने सीडीएस की परीक्षा पास की.

अपनी रेजिमेंट के साथियों के साथ कैप्टन विक्रम बत्रा
अपनी रेजिमेंट के साथियों के साथ कैप्टन विक्रम बत्रा (फाइल फोटो)

"तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर"

विक्रम बत्रा को सिर्फ बंदूक और गोली से ही प्यार नहीं था, वो यारों के यार भी थे. छुट्टियों में वो दोस्तों के साथ वक्त बिताने का कोई मौके नहीं छोड़ते थे. उन्हें अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा था. दरअसल करगिल की जंग से कुछ वक्त पहले विक्रम बत्रा अपने घर आए थे. तब उन्होंने अपने दोस्तों को एक कैफे में पार्टी दी थी. बातचीत के दौरान उनके एक दोस्त ने कहा कि तुम अब फौजी हो अपना ध्यान रखना, जिसपर विक्रम बत्रा का जवाब था ''चिंता मत करो, मैं तिरंगा लहराकर आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, लेकिन आऊंगा जरूर''.

5140 से गूंजा ये दिल मांगे मोर

विक्रम 13 जैक में थे. करगिल में जंग के मैदान में उन्हें 5140 को कैप्चर करने के लिए भेजा गया था. उनके कमांडिंग ऑफिसर ने उनका कोड नेम 'शेरशाह' रखा था. 5140 की चोटी जीतने के लिए रात के अंधेरे में पहाड़ की खड़ी चढ़ाई से दुश्मन की निगाहों से बचते हुए पाकिस्तानियों को धूल चटाई और उस पोस्ट पर कब्जा किया. जीत के बाद वायरलेस से बेस पर संदेश पहुंचाना था तो वायरलेस पर विक्रम बत्रा की आवाज गूंजी 'ये दिल मांगे मोर'.

कैप्टन विक्रम बत्रा की चिट्ठी
कैप्टन विक्रम बत्रा की चिट्ठी (फाइल)

लेफ्टिनेंट से बने कैप्टन

विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 5140 पर कब्जा कर अपने काम को बखूबी अंजाम दिया था. इसके बाद कैप्टन बत्रा देश में हीरो बन गए थे. 5140 पीक पर तिरंगा फहराते हुए कैप्‍टन विक्रम बत्रा का फोटो जब अखबार में आया था तो ये देश उनका फैन बन गया. इस मिशन के बाद से वो कारगिल का शेर के नाम से फेमस हो गए. अगले दिन जब एक टीवी चैनल पर विक्रम बत्रा ने ये दिल मांगे मोर कहा तो मानो देश के युवाओं के रग-रग में जोश भर गया. करगिल पहुंचते वक्त विक्रम बत्रा लेफ्टिनेंट थे, लेकिन 5140 की चोटी से पाकिस्तानियों का सफाया करने के बाद उन्हें जंग के मैदान में ही कैप्टन प्रमोट किया गया और अब वो थे कैप्टन विक्रम बत्रा.

तिरंगा भी फहराया और तिरंगे में लिपटकर भी आया 'शेरशाह'

5140 की चोटी फतह करने के बाद भारतीय फौज के हौसले और भी बुलंद हो गए, जिसकी एक सबसे बड़ी वजह थे कैप्टन विक्रम बत्रा. 5140 पर तिरंगा लहराने के बाद तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने खुद उन्हें फोन पर बधाई दी थी. इसके बाद मिशन था 4875 की चोटी पर तिरंगा फहराना. कहते हैं कि उस वक्त कैप्टन विक्रम बत्रा की तबीयत खराब थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने कमांडिग ऑफिसर्स से इस मिशन पर जाने की इजाजत मांगी, लेकिन उन्हें साफ मना कर दिया गया था. बत्रा के बार बार आग्रह के बाद उन्हें मिशन पर जाने की अनुमति दे दी गई.

साथी बचाने के लिए दी अपनी कुर्बानी

4875 पर मिशन के दौरान विक्रम बत्रा के एक साथी को गोली लग गई जो सीधा दुश्मनों की बंदूकों के निशाने पर था. घायल साथी को बचाते हुए ही दुश्मन की गोली कैप्टन विक्रम बत्रा को लग गई और करगिल जंग के उस सबसे बड़े नायक को शहादत मिली. विक्रम बत्रा ने एक बार बातों-बातों में दोस्तों से कहा था कि वो तिरंगा लहराकर आएंगे या फिर तिरंगे में लिपटकर आएंगे लेकिन आएंगे जरूर. करगिल की जंग में जाबांज कैप्टन विक्रम बत्रा ने 5140 पर तिरंगा लहराया और फिर 4875 के मिशन के दौरान शहादत पाई. विक्रम बत्रा ने तिरंगा लहराया भी और तिरंगे में लिपकर पालमपुर लौटे भी.

4875 की पहचान आज बत्रा टॉप

करगिल की जंग में शेरशाह पाकिस्तान के लिए खौफ का दूसरा नाम हो गया था. 4875 की चोटी से पाकिस्तानियों को खदेड़कर तिरंगा लहराने वाले विक्रम बत्रा से पाकिस्तानी सैनिक और घुसपैठिये थर-थर कांपते थे. 4875 की चोटी को फतह करने के दौरान विक्रम बत्रा शहीद हो गए, भारतीय जाबांजों ने उस चोटी पर भी तिरंगा फहराया और आज इस चोटी को बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है.

क्या था दिल मांगे मोर

कैप्टन बत्रा का स्लोगन दिल मांगे मोर यानि अब उनका लक्ष्य दूसरा मिशन है. वो और दुश्मनों को ढेर करना चाहते हैं. वो सिर्फ यहीं नहीं रुकना चाहते. 'शेरशाह' और एलओसी मूवी में एक सीन है, जिसमें कैप्टन बत्रा माधुरी दीक्षित के बारे में बात कर रहे हैं, जहां लड़ते हुए पाकिस्तानी सिपाही उनसे कहता है कि माधुरी दीक्षित हमें दे दे, हम सब यहां से लौट जाएंगे. कैप्टन विक्रम बत्रा हंसते हुए कहते हैं, माधुरी दीक्षित दूसरी फिल्म की शूटिंग में व्यस्त हैं, इसी बीच कैप्टन ने दुश्मन के बंकर में ग्रनेड फेंकते हुए कहा कि अभी इसी से काम चला ले.'

कैप्टन बत्रा भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बहादुरी के किस्से आज भी लोगों के मन में जिंदा हैं और आने वाली पीढ़ियों को देश सेवा के लिए प्रेरित करते रहेंगे. विक्रम बत्रा हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे.

ये भी पढ़ें: करगिल युद्ध में भारत ने ऐसे 'धोया' था पाकिस्तान, अमेरिका से भी पड़ी थी 'लात

Last Updated : Jul 25, 2024, 9:35 PM IST
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