नागौर : खींवसर के उपचुनाव का बिगुल बज गया है. हनुमान बेनीवाल एक फिर सुर्खियों में रहेंगे, क्योंकि कांग्रेस गठबंधन धर्म निभाए या नहीं निभाए, लेकिन इस सीट से बेनीवाल का अपनी पार्टी का उम्मीदवार उतारना तय है. बेनीवाल ने खुद सांसद चुने जाने के बाद यह सीट खाली की थी. दूसरी ओर भाजपा से इस बार भी कभी बेनीवाल के खास रहे रेवंतराम डांगा पर ही दांव खेलना लगभग तय माना जा रहा है.
हालांकि, चर्चा ज्योति मिर्धा की भी दावेदारी है जो लगातार दो चुनाव हार चुकी हैं. डांगा को सहानुभूति का फायदा मिल सकता है, क्योंकि हनुमान बेनीवाल कड़े मुकाबले में उनसे महज 2059 मतों से जीते थे. गत बार सांसद बनने के बाद हनुमान ने अपने भाई को इसी सीट से विधायक बनाया था, लेकिन इस बार बेनीवाल ने परिवार की बजाय अन्य को उतारने के संकेत दिए हैं.
मंगलवार को खींवसर क्षेत्र में आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले एक सामाजिक कार्यक्रम में बेनीवाल ने इस बार खींवसर से परिवार के बजाय किसी और को उतारने के संकेत दिए, साथ ही उन्होंने भाजपा के संभावित प्रत्याशी डांगा पर निशाना साधते हुए कहा कि विरोधियों को तो मैं पहले निपट चुका हूं, लेकिन अपनों से मुकाबला करना पड़ रहा है. वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण धींगरा का कहना है कि भाजपा जहां सत्ता के बूते खींवसर का उपचुनाव जीतने का जतन करेगी तो बेनीवाल के राज्य में पार्टी के वजूद को बनाए रखने के लिए मशक्कत करनी होगी. बेनीवाल को विरोधी और भाजपा चारों ओर से घेरने का प्रयास करेंगे.
बेनीवाल के लिए करो या मरो का चुनाव : 2019 के विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल की पार्टी ने राजस्थान में तीन सीटें जीती थी, जिससे बेनीवाल का हौसला मजबूत हुआ था, लेकिन 2023 के चुनाव में आशा के अनुरूप पार्टी को सफलता नहीं मिली. बेनीवाल खुद अकेले ही खींवसर से चुनाव जीत कर आए थे, जबकि राज्य में 50 से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए थे. फिलहाल, विधानसभा में उनकी पार्टी की मौजूदगी नहीं है. ऐसे में खींवसर का यह उपचुनाव उनके लिए करो मरो की स्थिति का है. बेनीवाल को पता है कि अगर यह चुनाव नहीं जीता तो उनकी पार्टी और कार्यकर्ताओं के यह बड़ा सेटबैक होगा.
बावरी समाज छात्रावास शिलान्यास समारोह @ खींवसर मुख्यालय ! pic.twitter.com/AUyQoQEPhW
— HANUMAN BENIWAL (@hanumanbeniwal) October 15, 2024
चुनाव का असर रहेगा पूरे मारवाड़ पर : खींवसर के उपचुनाव का असर पूरे मारवाड़ के जाट बाहुल्य इलाकों में पड़ेगा, जहां हनुमान बेनीवाल की युवाओं पर मजबूत पकड़ है. आरएलपी को इस चुनाव में सफलता नहीं मिलती है तो बेनीवाल की पकड़ कमजोर होगी. ऐसे में इस सीट पर मजबूत उम्मीदवार उतारना होगा. हालांकि, सबसे मजबूत उम्मीदवार बेनीवाल खुद है. वो खुद वापस चुनाव में उतर जाते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा, क्योंकि अंतोगत्वा उनको राज्य में अपनी खोई हुई ताकत वापस हासिल करनी है. यही कारण है कि हनुमान बेनीवाल पिछले कुछ दिनों से खींवसर विधानसभा क्षेत्र में लगातार कार्यकर्ताओं के बीच डटे हुए हैं.
डांगा थे कभी खास, अचानक बदला था पाला : गत विधानसभा चुनाव में खींवसर भाजपा के प्रत्याशी बने रेवत राम डांगा कभी हनुमान बेनीवाल के खास व्यक्ति थे. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के लिए डांगा ने बहुत काम किया, लेकिन चुनाव से ठीक पहले वह भाजपा में शामिल हो गए और बेनीवाल के सामने ही पार्टी ने उनको उतार दिया. यहां त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था, जिसमें डांगा महज 2059 वोटों से हार गए. यही कारण है कि अब बेनीवाल क्षेत्र में सक्रिय हैं. उन्होंने उपचुनाव से पहले सांसद कोष से बड़ी संख्या में विकास कार्य की स्वीकृतियां जारी की. इतना ही नहीं, सांसद का चुनाव लड़ने से पहले भी उन्होंने अपने एमएलए का पूरा फंड क्षेत्र के लिए जारी कर दिया था.