मैनपुरी: यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा मैनपुरी जनपद की करहल की हो रही है. ये सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ है. यादव बाहुल क्षेत्र की इस सीट पर भाजपा अभी तक के इतिहास में सिर्फ एक बार ही जीत दर्ज कर सकी है. वह भी तब जब यादव कैंडिडेट उतारा. इस बार भाजपा ने फिर से यादव पर दांव खेला है और पूरा जोर लगा दिया है.
करहल सीट पर यादव Vs यादव: भाजपा की रणनीति से यहां का रण इस बार यादव Vs यादव हो गया है. दरअसल, भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के दामाद और पूर्व सपाई अनुजेश यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है. वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने भतीजे तेज प्रताप यादव को उतारा है. जो रिश्ते में अनुजेश यादव के भी भतीजे हैं. यानी करहल का रण यादव-यादव के बीच होने के साथ-साथ फूफा-भतीजे के बीच भी है.
मुलायम परिवार के दो सदस्य आमने-सामने: यानी, मुलायम सिंह यादव के परिवार के दो सदस्य इस चुनाव में आमने-सामने हैं. बात करें अन्य दलों की बसपा ने शाक्य बिरादरी पर दांव खेला है. बसपा ने अवलीश शाक्य को मैदान में उतारा है. इसके अलावा यूपी की उभरती हुई राजनीतिक पार्टी नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी भी चुनाव में ताल ठोंक रहे हैं. चंद्रशेखर ने प्रदीप कुमार को मौदान में उतारा है.
करहल में सपा की लगातार जीत का क्या है राज: फिलहाल, करहल के इस चुनाव में लड़ाई यादव वोटों पर आकर टिक गई है. अमूमन हर बार यादव वोट एकतरफा सपा को जाता रहा है और यही सपा के जीत की वजह भी रही है.
करहल जीत के लिए भाजपा ने फिर खेला यादव कार्ड: 2002 में बीजेपी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी. ये जीत भी भाजपा को उसके यादव प्रत्याशी ने दिलाई थी. सोबरन सिंह यादव ने पहली बार कमल खिलाया था. हालांकि, बाद में वह सपा में चले गए थे. इस बार यादव वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने फिर से यादव पर दांव खेला है.
करहल का क्या है जातीय समीकरण: करहल विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा 1 लाख 25 हजार यादव मतदाता हैं. दूसरे नंबर पर शाक्य वोट माना जाता है, जो तकरीबन 35 हजार है. वहीं, जाटव वोट 30 हजार है. इसके अलावा क्षत्रीय 30 हजार, ब्राह्मण 18 हजार, पाल 18 हजार, लोधी 13 हजार और 15 हजार मुसलमान मतदाता हैं. बीजेपी इस बार यादवों के अलावा सभी गैर यादव ओबीसी वोटों को अपने साथ रखने की जद्दोजहद में है.
क्या है करहल के मतदाताओं का मिजाज: करहल विधानसभा क्षेत्र में मतदाता अक्सर एक ही नेता पर भरोसा बनाए रखते हैं भले ही वह दल बदल ले. चुनावी इतिहास देखें से पता चलता है कि मतदाता कई नेताओं को लगातार दो तीन या पांच बार तक जिताते रहे हैं. यादव बहुल इलाकों में आज भी अखिलेश यादव का जलवा बरकरार है. लेकिन दूसरी ओर ओबीसी और सवर्ण बिरादरियों में बीजेपी का जोर दिखाई दे रहा है.
करहल के मतदाताओं का मिजाज एक ही नेता पर कई-कई बार भरोसा जताने का रहा है. मतदाता चेहरों पर रीझते रहे हैं. जिस पर एक बार भरोसा जताया, उसका साथ एकदम से नहीं छोड़ा. किसी को दो बार, किसी को तीन बार तो किसी को पांच बार विधानसभा तक पहुंचाया. भले ही चुने हुए चेहरे, अगले चुनाव में दल बदल लें, परंतु जीत उनको ही हासिल होती रही है.
करहल विधानसभा सीट का इतिहास: करहल सीट सही मायनों में 1957 के चुनाव में अस्तित्व में आई. उससे पहले 1952 में करहल वेस्ट कम शिकोहाबाद नाम से विधानसभा क्षेत्र का सृजन किया गया था. इसमें शिकोहाबाद का बड़ा हिस्सा शामिल था. उस चुनाव में केएमपीपी के बंशीदास धनगर ने जीत हासिल की थी.
करहल सीट से पहले विधायक कौन थे: वर्ष 1957 में करहल स्वतंत्र रूप से विधानसभा सीट बनी, तो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े नत्थू सिंह ने जीत हासिल की थी. इसके बाद सीट सुरक्षित कर दी गई, जो वर्ष 1974 में सामान्य हुई. सीट सामान्य होने पर नत्थू सिंह ने बीकेडी से भाग्य आजमाया और जनता ने उनको जीत दिलाई.
बाबू राम यादव लगातार 5 बार बने विधायक: वर्ष 1977 के चुनाव में नत्थू सिंह जेएनपी के टिकट पर मैदान में उतरे तो फिर जीत हासिल हुई. वर्ष 1985 में लोकदल से चुनाव लड़े बाबूराम यादव पहली बार विधायक बने थे. इसके बाद क्षेत्र की जनता उन पर ऐसी रीझी कि उनके दल बदलने के बाद भी जीत दिलाती रही.
बाबूराम यादव वर्ष 1989 के चुनाव में जनता दल, वर्ष 1991 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता. इसके बाद वह वर्ष 1993 और 1996 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक बने.
कमल खिलाने के बाद साइकिल पर सवार हो गए सोबरन सिंह यादव: वर्ष 2002 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर लड़े सोबरन सिंह यादव को मतदाताओं ने विजेता बनाया. इसके बाद सोबरन सिंह यादव सपा में शामिल हो गए और वर्ष 2007, 2012 व 2017 के चुनाव में भी उनको जीत मिली. वर्ष 2022 में सोबरन सिंह यादव ने यह सीट सपा मुखिया अखिलेश यादव के लिए छोड़ दी थी.
करहल सीट पर इस बार नहीं कोई पुराना कैंडिडेट: अब अखिलेश यादव के सीट छोड़ने के बाद हो रहे उपचुनाव में कोई पुराना चेहरा मैदान में नहीं है. सपा ने तेजप्रताप यादव को मैदान में उतारा है. वहीं भाजपा ने अनुजेश यादव और बसपा ने डॉ. अवनीश शाक्य को प्रत्याशी बनाया है.
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