काराकाट : लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण यानी 1 जून को काराकाट लोकसभा सीट के लिए वोटिंग होगी. इस सीट पर लोगों की खास नजर इसलिए भी है कि इस सीट से भोजपुरी स्टार पवन सिंह न सिर्फ चुनाव लड़ रहे हैं बल्कि मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं. सियासी पंडितों का मानना है कि पवन सिंह की एंट्री से इस सीट का पूरा समीकरण बदल गया है. तो चलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं काराकाट लोकसभा सीट का इतिहास और ताजा समीकरण
काराकाट सीट का इतिहासः 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आए काराकाट लोकसभा सीट को कुशवाहा जाति का किला कहा जा सकता है, क्योंकि इस सीट पर 2009 से हुए अभी तक तीन चुनावों में कुशवाहा जाति के ही प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. हां, ये जरूर है कि तीनों बार जीत NDA कैंडिडेट के ही हिस्से में आई है. मतलब कुशवाहा जाति के साथ-साथ काराकाट NDA का भी मजबूत गढ़ है. NDA के टिकट पर 2009 और 2019 में महाबली सांसद रहे तो 2014 में उपेंद्र कुशवाहा ने इस सीट से जीत दर्ज की थी.
काराकाट में त्रिकोणीय मुकाबलाः वैसे तो बिहार की अधिकतर लोकसभा सीटों पर इस बार NDA और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर है लेकिन काराकाट में ऐसा बिल्कुल नहीं है. बीजेपी से निष्कासित किए जा चुके भोजपुरी स्टार पवन सिंह ने काराकाट के चुनावी दंगल को त्रिकोणीय बना दिया है. निर्दलीय पवन सिंह के अलावा इस सीट से NDA समर्थित आरएलएम के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा चुनावी मैदान में हैं तो महागठबंधन की ओर से सीपीआईएमएल के राजाराम सिंह ताल ठोक रहे हैं.
काराकाट लोकसभा सीटः 2009 से अब तकः इस सीट से 2009 में हुए चुनाव में NDA प्रत्याशी के तौर पर जेडीयू के महाबली सिंह ने आरजेडी की कांति सिंह को हराकर जीत दर्ज की. 2014 के चुनाव में जेडीयू ने NDA से नाता तोड़ा तो उसे खामियाजा भुगतना पड़ा और तब NDA की ओर से आरएलएसपी के उपेंद्र कुशवाहा ने आरजेडी की कांति सिंह को हराकर काराकाट में बाजी मारी और केंद्र में मंत्री भी बने, लेकिन 2019 में उपेंद्र कुशवाहा ने पाला बदलकर महागठबंधन की ओर से चुनाव लड़ा लेकिन तब NDA की ओर से जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे महाबली सिंह उन पर भारी पड़े और उपेंद्र को हराकर लगातार तीसरी बार काराकाट में NDA की विजय पताका लहराई.
'धान का कटोरा' कहा जाता है पूरा इलाकाः काराकाट लोकसभा क्षेत्र रोहतास और औरंगाबाद के विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर बनाया गया है और पूरे इलाके में धान की जबरदस्त पैदावार होती है. इसलिए ये इलाका बिहार के धान के कटोरे के रूप में मशहूर है. धान उत्पादन का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरे इलाके में करीब 400 राइस मिल हैं.
कभी था एशिया का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्रः वहीं इस क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाला डालमियानगर कभी एशिया का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र था. रामकृष्ण डालमिया ने करीब 3800 एकड़ के इलाके में दो दर्जन से अधिक औद्योगिक इकाइयां स्थापित की थी.डालमियानगर औद्योगिक टाउनशिप अपने दौर में देश इतनी बड़ी टाउनशिप थी, जिसे देखकर दूसरे राज्यों के लोगों को रस्क हुआ करता था.
काराकाट में 6 विधानसभा सीट: काराकाट लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीट आती हैं. जिनमें नोखा, डेहरी और काराकाट विधानसभा सीटं रोहतास जिले में है तो गोह, ओबरा और नबीनगर विधानसभा सीटें औरंगाबाद जिले में हैं. सबसे अहम बात कि सभी 6 विधानसभा सीटों पर महागठबंधन का कब्जा है.
काराकाट में में जातिगत समीकरणः काराकाट में मतदाताओं की कुल संख्या 18 लाख 72 हजार 409 है जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 9 लाख 87 हजार 378 है और महिला मतदाताओं की संख्या 8 लाख 85 हजार 31 है.जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां सबसे अधिक करीब 3 लाख यादव मतदाता हैं. वहीं कोइरी-कुर्मी मिलाकर करीब ढाई लाख वोटर्स हैं. तीसरे नंबर पर राजपूत मतदाता हैं जिनकी संख्या करीब दो लाख है. इसके अलावा 75 हजार ब्राह्मण और करीब 50 हजार भूमिहार वोटर्स भी हैं,
क्या हैं बड़े मुद्दे ? : 2024 का लोकसभा चुनाव आम तौर पर मोदी लाओ और मोदी हराओ पर टिका हुआ है, लेकिन पवन सिंह की एंट्री के बाद काराकाट में स्थिति बदल गई है. NDA कैंडिडेट के रहते चुनावी मैदान में पवन सिंह के आने के बाद बीजेपी ने पवन सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता जरूर दिखा दिया है लेकिन पवन सिंह मोदी के काम और नारों पर ही वोट मांग रहे हैं, वहीं युवाओं का बड़ा हुजूम पवन सिंह के साथ दिख रहा है. मोदी जिताओ- मोदी हराओ के अलावा कई स्थानीय मुद्दे भी काराकाट की फिजा में तैर रहे हैं. मसलन-डालमियानग औद्योगिक क्षेत्र के कायाकल्प, बंजारी सीमेंट फैक्ट्री और बिस्कोमान के पुनर्स्थापन का मुद्दा बड़ा प्रभाव डालने वाला है.
"देश में चुनाव के दो ट्रेंड हैं- मोदी हराओ, मोदी जिताओ. लेकिन पवन सिंह के मैदान में आ जाने से काराकाट की लड़ाई त्रिकोणीय है. पवन सिंह के पक्ष में युवा काफी गोलबंद हैं. हालांकि अंत में लड़ाई NDA बनाम महागठबंधन के बीच हो सकती है, क्योंकि पवन सिंह के पास संगठन का अभाव है. साथ ही अभी पीएम का दौरा भी बाकी है, उससे माहौल जरूर बदलेगा." सुरेंद्र तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार
"काराकाट लोकसभा इलाके में करीब 1 लाख लोगों को रोजगार देनेवाली डालमियानगर फैक्ट्री बंद है. इस पर कोई बात नहीं कर रहा है, हालांकि उपेंद्र कुमार कुशवाहा ने वादा जरूर किया है कि अगर मैं संसद में चला जाता हूं तो इस पर बात जरूर करूंगा. इसके अलावा पवन सिंह हो या राजाराम सिंह हो किसी ने मुखर होकर कुछ नहीं बोला है. हां, पवन सिंह ने फिल्म सिटी बनाने का शिगूफा जरूर छोड़ दिया है." चंद्रकांत, स्थानीय
"रोहतास उद्योग को चालू करान के लिए मैं 15 साल से प्रयास कर रहा हूं. 2014 में उपेंद्र कुशवाहा को मैंने ज्ञापन दिया था और उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था कि मंत्री बनने के बाद डालमियानगर कारखाना खुलवाएंगे वहीं 2019 में भी पीएम ने सुअरा हवाई अड्डे की सभा में कारखाना चालू कराने की घोषणा की थी, लेकिन कारखाना नहीं शुरू हुआ. इस बार अगर पीएम ऐसी कुछ घोषणा करते हैं तो माहौल बदल सकता है." सच्चिदानंद प्रसाद, अध्यक्ष, रोहतास डिस्ट्रिक्ट चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स
त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे उपेंद्र कुशवाहाः फिलहाल यही कहा जा सकता है कि काराकाट में मुकाबला पूरी तरह त्रिकोणीय है और पवन सिंह के खड़े होने से NDA के कैडर वोटर्स उपेंद्र कुशवाहा से दूर जा सकते हैं.वहीं माले के राजाराम सिंह को अपनी जाति के वोटर्स के अलावा आरजेडी के कोर वोटर्स पर भरोसा है. अब देखना ये है कि उपेंद्र कुमार कुशवाहा पवन की आंधी से अपनी सियासी साख कैसे बचाते हैं.