करनाल: हिंदू पंचांग के अनुसार नवरात्रि की अष्टमी पर कन्या पूजन का विधान है. इस दिन माता की हलवा पुरी की कढ़ाई की जाती है, जिसमें कन्या पूजन करके माता का प्रिय व्यंजन काले चने, हलवा, पुरी कन्याओं को खाने के लिए दिया जाता है. इसके बाद अगर कोई इंसान व्रत रखता है, तो उसका पारण किया जाता है. कन्या पूजन उत्तरी भारत में अष्टमी के दिन किया जाता है तो वहीं कुछ राज्यों में दुर्गा नवमी के दिन भी होता है. आईए जानते हैं कि कन्या पूजन का क्या महत्व होता है और इसका विधि विधान क्या है.
दुर्गा महाष्टमी पर कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त : जो जातक माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए और घर में सुख शांति के लिए उपवास रखते हैं या जो लोग उपवास भी नहीं रखते, वो लोग दुर्गाष्टमी या दुर्गा नवमी के दिन कन्या पूजन करके उनका आशीर्वाद लेते हैं, क्योंकि कन्या मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार दुर्गा अष्टमी का आरंभ 10 अक्टूबर को दोपहर 12:32 पर होगा, जबकि इसका समापन 11 अक्टूबर को 12:07 पर होगा. सनातन धर्म में प्रत्येक व्रत व त्योहार पूजा तिथि के साथ मनाया जाते हैं, इसलिए दुर्गा अष्टमी को 11 अक्टूबर के दिन मनाया जाएगा, लेकिन याद रहे 11 अक्टूबर को 12:07 से पहले ही कन्या पूजन कर लें. कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त का समय 11 अक्टूबर को सुबह 7:40 से 10:40 तक रहेगा.
दुर्गा नवमी पर कन्या पूजन : कुछ लोग दुर्गा अष्टमी के दिन कन्या पूजन करते हैं तो कुछ लोग दुर्गा नवमी के दिन कन्या पूजन करते हैं, ऐसे में जो लोग अष्टमी के दिन कन्या पूजन ना करके दुर्गा नवमी के दिन कन्या पूजन करते हैं तो कन्या पूजन करने का शुभ मुहूर्त जान लें, ताकि उनका कन्या पूजन सही प्रकार से मान्य हो और मां दुर्गा की कृपा उन पर बनी रहे. हिंदू पंचांग के अनुसार नवमी तिथि का प्रारंभ 11 अक्टूबर को दोपहर 12:07 से हो रहा है जबकि इसका समापन 12 अक्टूबर को सुबह 10:59 पर होगा. इसलिए नवमी 12 अक्टूबर को मनाई जाएगी और कन्या पूजन 12 अक्टूबर को सुबह 10:59 से पहले करें. 12 अक्टूबर को दुर्गा नवमी के दिन कन्या पूजन करने का शुभ मुहूर्त सुबह 7:50 से 9:14 तक रहेगा.
कन्या पूजन का विधि विधान : पंडित कर्मपाल ने बताया कि नवरात्रि में कन्या पूजन का बहुत महत्व है, अगर कोई भी इंसान माता रानी में अपनी श्रद्धा रखता है तो वह दुर्गा अष्टमी या दुर्गा नवमी के दिन कन्या पूजन करता है. लेकिन अगर कन्या पूजन सही विधि विधान से न किया जाए तो वह अमान्य हो जाता है. कन्या पूजन करने के लिए एक दिन पहले ही कन्या को निमंत्रण दें. जब कन्या आपके घर में आती हैं तो उनका अपने घर पर स्वागत करें. साफ पानी लेकर उनके पैर धोएं और फिर कपड़े से साफ करें. उसके बाद सभी कन्याओं के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करें. कन्याओं के लिए हो सके तो लाल रंग का आसन बनाएं, और वहां पर बैठाकर उनको तिलक करें और सभी को कलाई पर धागा बांधे. उसके बाद माता रानी के लिए भोग में तैयार किया गया प्रसाद में काले चने हलवा पुरी सभी कन्याओं खाने को दें. उसके बाद उनको अपनी इच्छा अनुसार दक्षिणा दें और घर से जाते हुए उनका आशीर्वाद लें, ताकि उनकी कृपा आपके परिवार पर बनी रहे.
इसे भी पढ़ें : कब है शारदीय नवरात्रि की अष्टमी, जानें तिथि, समय, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
कितने साल की कन्या और कितनी कन्या का किया जाता है पूजन : वेद पुराणों के अनुसार 9 साल तक की कन्याओं का पूजन किया जाता है, क्योंकि इनमें मां दुर्गा का रूप देखा जाता है. वैसे तो 9 कन्याओं का पूजन करें, लेकिन 9 कन्या ना हो तो 5 या 7 कन्याओं का भी पूजन कर सकते हैं. साथ में एक बालक का भी पूजन करें, इसे लांगुरा या लांगुरिया कहा जाता है. जैसे कन्या पूजन होता है उसी प्रकार बालक का भी पूजन किया जाता है.
कन्या पूजन का महत्व : नवरात्रि की अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन करना सबसे जरूरी होता है, क्योंकि कन्या को मां दुर्गा का अवतार माना जाता है और कन्या पूजन करने से माता रानी खुश होती है. घर में सुख समृद्धि आती है. शास्त्रों में 2 वर्ष की कन्या को कुमारी कहा गया है, 3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ती कहा गया है. 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी कहा गया है. 5 वर्ष की कन्या को रोहिणी कहा गया है. 6 वर्ष की कन्या को कालिका कहा गया है. 7 वर्ष की कन्या को चंडिका कहा गया है. 8 वर्ष की कन्या को शांभवी और 9 वर्ष की कन्या को मां दुर्गा का रूप माना जाता है. इसलिए 9 वर्ष की कन्या का पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है.