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काकोरी कांड की 100वीं वर्षगांठ; शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में बनी थी योजना, आजादी के 3 मतवालों ने अंग्रेजों के उड़ाए थे होश - Kakori Incident

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 9, 2024, 10:59 AM IST

काकोरी कांड के माध्यम से पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने देश में क्रांति की ऐसी अलख जगाई थी जिससे अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए मजबूर हो गए थे. काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार करने और उसे अंजाम देने में शाहजहांपुर के तीन महानायक अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की बड़ी भूमिका रही थी.

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पंडित राम प्रसाद बिस्मिल. (Photo Credit; ETV Bharat)

शाहजहांपुर: आज पूरा देश काकोरी कांड की 100वीं वर्षगांठ हर्षोल्लास से मना रहा है. आज ही के दिन 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया गया था, जिसमें शाहजहांपुर का बहुत बड़ा योगदान था. काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार करने और उसे अंजाम देने में शाहजहांपुर के तीन महानायक अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की बड़ी भूमिका रही थी.

राष्ट्रीय स्वाभिमान ट्रस्ट के संस्थापक असित पाठक ने शाहजहांपुर में राम प्रसाद बिस्मिल के मकान को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग फिर से उठाई. (Video Credit; ETV Bharat)

इसके बाद अंग्रेजों ने 19 दिसंबर 1927 को तीनों महानायकों को अलग-अलग जिलों में फांसी दे दी थी. काकोरी कांड के माध्यम से पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने देश में क्रांति की ऐसी अलख जगाई थी जिससे अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए मजबूर हो गए थे. देश की आजादी में बड़ा योगदान निभाने वाले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का पुश्तैनी घर आज तक ऐतिहासिक धरोहर नहीं बनाया जा सका है. इसे लेकर कई बार मांग उठाई जा चुकी है, लेकिन हर बार मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है.

शाहजहांपुर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान की जन्मस्थली है. यहां के आर्य समाज मंदिर से काकोरी कांड की रूपरेखा रची गई थी, जिसको 9 अगस्त 1927 को अंजाम तक पहुंचाया गया था. काकोरी कांड के बाद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान को अंग्रेजी हुकूमत ने जेल में डाल दिया था और 19 दिसंबर 1927 को तीनों क्रांतिकारियों को अलग-अलग जेलों में फांसी दे दी गई थी.

इन्हीं क्रांतिकारियों की यादों को शाहजहांपुरवासी अपने दिलों में लिए घूमते हैं. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान की अटूट दोस्ती की लोग कसमें खाते हैं. दोनों क्रांतिकारी यहां के मिशन स्कूल में पढ़ते थे. उसके बाद आर्य समाज मंदिर में बैठकर देश की आजादी के लिए कार्य योजना तैयार करते थे. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के पिता आर्य समाज मंदिर के पुजारी थे.

अशफाक उल्ला खान मुसलमान थे, बावजूद इसके दोनों में इतनी गहरी दोस्ती थी. दोनों एक ही थाली में खाना खाते और आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे. शहर के मोहल्ला खिरनी बाग की तंग गलियों में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का पुश्तैनी घर है, जिसको बिस्मिल की फांसी के बाद बदहाली की स्थिति में उनकी मां मूलमती ने बदहाली की स्थिति में बेच दिया था.

क्योंकि बिस्मिल की मां लोगों के घरों पर काम करके बमुश्किल अपना गुजारा चला पाती थीं. आज भी बिस्मिल का घर उन्हीं तंग गलियों में बदहाली की स्थिति में है जिसमें कश्यप परिवार रह रहा है. जिले के बाशिंदों ने कई बार बिस्मिल के मकान को संग्रहालय बनाने की मांग जनप्रतिनिधियों से उठाई लेकिन उनको सिर्फ अभी तक आश्वासन ही मिला है.

राष्ट्रीय स्वाभिमान ट्रस्ट के संस्थापक असित पाठक का कहना है कि पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के घर को संग्रहालय बनाने की मांग उन्होंने कई साल से कर रखी है लेकिन अभी तक उनकी मांग पूरी नहीं हुई है. उम्मीद है कि उनकी मांग पूरी होगी. इस सरकार के माध्यम से इस मांग को आगे बढ़ाया जाएगा और बिस्मिल के मकान को संग्रहालय बनाने के लिए आंदोलन भी किया जाएगा क्योंकि शहीदों की यादों को संजो कर रखा जाएगा.

ये भी पढ़ेंः काकोरी ट्रेन एक्शन के 100 साल; ट्रेन के गार्ड की गवाही ने क्रांतिकारियों को दिलाई थी फांसी, पढ़िए आजादी के मतवालों की वीरगाथा

शाहजहांपुर: आज पूरा देश काकोरी कांड की 100वीं वर्षगांठ हर्षोल्लास से मना रहा है. आज ही के दिन 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया गया था, जिसमें शाहजहांपुर का बहुत बड़ा योगदान था. काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार करने और उसे अंजाम देने में शाहजहांपुर के तीन महानायक अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की बड़ी भूमिका रही थी.

राष्ट्रीय स्वाभिमान ट्रस्ट के संस्थापक असित पाठक ने शाहजहांपुर में राम प्रसाद बिस्मिल के मकान को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग फिर से उठाई. (Video Credit; ETV Bharat)

इसके बाद अंग्रेजों ने 19 दिसंबर 1927 को तीनों महानायकों को अलग-अलग जिलों में फांसी दे दी थी. काकोरी कांड के माध्यम से पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने देश में क्रांति की ऐसी अलख जगाई थी जिससे अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए मजबूर हो गए थे. देश की आजादी में बड़ा योगदान निभाने वाले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का पुश्तैनी घर आज तक ऐतिहासिक धरोहर नहीं बनाया जा सका है. इसे लेकर कई बार मांग उठाई जा चुकी है, लेकिन हर बार मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है.

शाहजहांपुर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान की जन्मस्थली है. यहां के आर्य समाज मंदिर से काकोरी कांड की रूपरेखा रची गई थी, जिसको 9 अगस्त 1927 को अंजाम तक पहुंचाया गया था. काकोरी कांड के बाद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान को अंग्रेजी हुकूमत ने जेल में डाल दिया था और 19 दिसंबर 1927 को तीनों क्रांतिकारियों को अलग-अलग जेलों में फांसी दे दी गई थी.

इन्हीं क्रांतिकारियों की यादों को शाहजहांपुरवासी अपने दिलों में लिए घूमते हैं. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान की अटूट दोस्ती की लोग कसमें खाते हैं. दोनों क्रांतिकारी यहां के मिशन स्कूल में पढ़ते थे. उसके बाद आर्य समाज मंदिर में बैठकर देश की आजादी के लिए कार्य योजना तैयार करते थे. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के पिता आर्य समाज मंदिर के पुजारी थे.

अशफाक उल्ला खान मुसलमान थे, बावजूद इसके दोनों में इतनी गहरी दोस्ती थी. दोनों एक ही थाली में खाना खाते और आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे. शहर के मोहल्ला खिरनी बाग की तंग गलियों में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का पुश्तैनी घर है, जिसको बिस्मिल की फांसी के बाद बदहाली की स्थिति में उनकी मां मूलमती ने बदहाली की स्थिति में बेच दिया था.

क्योंकि बिस्मिल की मां लोगों के घरों पर काम करके बमुश्किल अपना गुजारा चला पाती थीं. आज भी बिस्मिल का घर उन्हीं तंग गलियों में बदहाली की स्थिति में है जिसमें कश्यप परिवार रह रहा है. जिले के बाशिंदों ने कई बार बिस्मिल के मकान को संग्रहालय बनाने की मांग जनप्रतिनिधियों से उठाई लेकिन उनको सिर्फ अभी तक आश्वासन ही मिला है.

राष्ट्रीय स्वाभिमान ट्रस्ट के संस्थापक असित पाठक का कहना है कि पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के घर को संग्रहालय बनाने की मांग उन्होंने कई साल से कर रखी है लेकिन अभी तक उनकी मांग पूरी नहीं हुई है. उम्मीद है कि उनकी मांग पूरी होगी. इस सरकार के माध्यम से इस मांग को आगे बढ़ाया जाएगा और बिस्मिल के मकान को संग्रहालय बनाने के लिए आंदोलन भी किया जाएगा क्योंकि शहीदों की यादों को संजो कर रखा जाएगा.

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