जोधपुर: पश्चिमी राजस्थान में केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान काजरी द्वारा कम पानी या भारी पानी में भी नकदी फसल लेने के लिए प्रोत्साहित की गई बेर की खेती लाभदायक साबित हो रही है. किसानों के खेतों अन्य फसलों की तरह ही काजरी में विकसित बेर की किस्मों की फसल भी लहलहा रही है. काजरी द्वारा विकसित गोला किस्म के बेर को 'रेगिस्तान का सेब' कहा जाता है. सेब का उत्पादन इस बार जोरदार हुआ है, क्योंकि पूरे पश्चिमी राजस्थान में अच्छी बारिश हुई थी.
काजरी के वैज्ञानिक डॉ. धीरज सिंह बताते हैं कि हमारे यहां 40 से ज्यादा बेर की किस्मों का संग्रह किया गया है. नई किस्मों पर भी काम चल रहा है. गोला बेर का पेड़ 50 से 70 किलो फल एक सीजन में देता है. उन्होंने बताया कि पश्चिमी राजस्थान के किसान अपनी रोजमर्रा की खेती के साथ-साथ बेर का उत्पादन करने लगा है. खेत के अलग-अलग हिस्सों में बेर के पेड़ लगाए जा सकते हैं. 3 वर्ष के बाद पेड़ फल देना शुरू कर देते हैं.
उन्होंने बताया कि किसान द्वारा सामान्य खेती की सिंचाई से ही बेर के पेड़ को पानी मिल जाता है. इसके अलावा एक बार पेड़ लगने के बाद बारिश के पानी से ही हर साल फल प्राप्त किया जा सकता है. इसके लिए अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ता, बल्कि किसान हर वर्ष अतिरिक्त आमदनी ले सकता है.
देश में बेर पर सर्वाधिक शोध काजरी में : बेर की फसलों पर सर्वाधिक शोध जोधपुर काजरी में हुआ है, जिससे देश के किसानों के लिए कई किस्में विकसित की गईं हैं, जो कम पानी में पनपती हैं, जिसका फायदा किसानों को होता है. इन दिनों यहां पर कश्मीरी सेब नामक किस्म पर काम चल रहा है. काजरी अब तक 42 किस्म के बेर उत्पादित कर चुका है. बेर उत्पादन में सबसे पहले गोला बेर आता है. आगे धीरे-धीरे एप्पल, टिकडी, इलायची व थाई एप्पल का फल आएगा. गोला के अलावा प्रमुख रूप से पश्चिमी राजस्थान में सेब, कैथली, छुहारा, दंडन, उमरान, काठा, टिकडी, इलायची व थाई एप्पल जनवरी से मार्च तक बाजार में बिकते हैं.
बेर कम लागत और कम मेहनत से मिलने वाली नकदी फसल : कम परिश्रम और लगने के बाद बारिश के पानी से सालान फल देने वाली बेर की फसल किसान के लिए सबसे सरल नकदी फसल है. फल के रूप में पेड़ से बेर उतरते ही बाजार में बेचा जा सकता है. काजरी के वैज्ञानिक बताते हैं कि बड़-छोटी जोत के किसान अपने खेत के चारों तरफ 20-30 पेड़ लगाकर हर साल 30 से 45 हजार रुपये की अतिरिक्त आय कर सकते हैं. छोटी जोत के किसान बेर का बगीचा लगा सकते हैं. दिसंबर से मार्च तक बेर की फसल आती है. पश्चिमी राजस्थान में एक हजार एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में किसान अभी बेर की खेती करते हैं.