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Jharkhand Election 2024: पिछले चुनाव में बोकारो से भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों ने खर्च किए थे लाखों रुपए, जानिए इसमें कौन रहा आगे - BOKARO ASSEMBLY SEAT

पिछले बोकारो विधानसभा चुनाव में बिरंची नारायण ने सबसे ज्यादा खर्च किया था, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी श्वेता सिंह ने 13.51 लाख रुपये खर्च किए थे.

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बिरंची नारायण और श्वेता सिंह (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Nov 2, 2024, 10:55 AM IST

बोकारो: झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 के दौरान बोकारो में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली. एक तरफ दो बार विधायक रह चुके बिरंची नारायण तो दूसरी तरफ एक बार हार चुकी कांग्रेस की श्वेता सिंह मैदान में थीं. चुनाव के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी श्वेता सिंह ने अपने प्रचार पर 13.51 लाख रुपये खर्च किए. जबकि बिरंची नारायण ने करीब 14.92 लाख रुपये खर्च किए थे. दोनों ही प्रत्याशी जनसभाओं और रैलियों के जरिए जनता तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. अब 2024 के विधानसभा चुनाव में दोनों फिर से मैदान में हैं, देखना यह है कि इस बार कौन कितना खर्च करता है और जीतता है.चुनाव आयोग को सौंपे गए अपने हलफनामों में उम्मीदवारों ने अपने चुनाव खर्च का ब्यौरा दिया है.

बिरंची नारायण का सबसे ज्यादा रहा चुनावी खर्चा

बीजेपी के उम्मीदवार बिरंची नारायण ने अपने चुनाव प्रचार में लगभग 14.92 लाख रुपये खर्च किए थे. उनके खर्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में लगाए गए 3.34 लाख रुपये भी शामिल थे. इस अभियान के लिए उन्हें बीजेपी से 15 लाख रुपये की सहायता मिली थी.

कांग्रेस ने 13.51 लाख रुपये किए खर्च

2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार श्वेता सिंह ने अपनी चुनावी मुहिम पर कुल 13.51 लाख रुपये खर्च किए थे. उनका खर्च जनसभाओं, रैलियों, प्रचार सामग्री और सोशल मीडिया प्रचार में बंटा था. पार्टी ने उन्हें इस अभियान के लिए 10 लाख रुपये फंड मुहैया कराया, जबकि जनता से 99,500 रुपये सहयोग मिला और 3.31 लाख रुपये का निजी योगदान दिया गया.

जनसभा और रैली खर्च में कौन सबसे आगे?

श्वेता सिंह ने जनसभाओं और रैलियों पर 3.72 लाख रुपये खर्च किए. जबकि बिरंची नारायण ने प्रचार में 4.14 लाख रुपये लगाए. दोनों ने अपने-अपने तरीकों से जनता तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन बीजेपी की ओर से किए गए निवेश से बिरंची नारायण थोड़ा आगे है. लोगों का मानना है कि बीजेपी प्रत्याशी का टिकट क्लियर होने के कारण वह पहले से प्रचार कर रहे थे.

प्रचार सामग्री पर खर्च

प्रचार सामग्री पर श्वेता सिंह ने 59,325 रुपये खर्च किए. जबकि बिरंची नारायण ने इस मद में 2.44 लाख रुपये लगाए, जो कांग्रेस उम्मीदवार के खर्च से काफी अधिक था. बीजेपी की रणनीति में प्रचार सामग्री को अधिक प्राथमिकता दी गई. वहीं, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, और सोशल मीडिया प्रचार के लिए श्वेता सिंह ने 97,900 रुपये खर्च किए थे. जबकि बिरंची नारायण का खर्च 96,213 रुपये रहा. इस मामले में दोनों उम्मीदवारों ने लगभग समान खर्च किया.

प्रचार वाहनों पर बढ़ा खर्च

प्रचार वाहनों पर श्वेता सिंह ने 84,409 रुपये लगाए, जबकि बिरंची नारायण ने 3.62 लाख रुपये खर्च किए. इस मद में बीजेपी उम्मीदवार का खर्च कांग्रेस से अधिक रहा.

प्रचार कार्यकर्ताओं और सहयोगियों पर खर्च

श्वेता सिंह ने प्रचार कार्यकर्ताओं पर 1.98 लाख रुपये खर्च किए. जबकि बिरंची नारायण ने इस मद में 3.35 लाख रुपये का निवेश किया. इन आंकड़ों से साफ है कि बीजेपी उम्मीदवार बिरंची नारायण ने कांग्रेस की श्वेता सिंह से अधिक खर्च किया. विशेषकर प्रचार सामग्री, वाहन और रैलियों पर. दोनों उम्मीदवारों ने अपनी-अपनी रणनीति के हिसाब से खर्च किया, लेकिन बीजेपी का प्रचार अभियान आर्थिक दृष्टिकोण से भारी पड़ा था.

ये भी पढ़ें: Jharkhand Election 2024: योगेंद्र प्रसाद और बिरंची नारायण ने किया नामांकन, दोनों ओर से जीत के दावे

ये भी पढ़ें: Jharkhand Election 2024: बोकारो विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी श्वेता सिंह ने किया नामांकन, कहा- परिवर्तन के मूड में जनता

बोकारो: झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 के दौरान बोकारो में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली. एक तरफ दो बार विधायक रह चुके बिरंची नारायण तो दूसरी तरफ एक बार हार चुकी कांग्रेस की श्वेता सिंह मैदान में थीं. चुनाव के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी श्वेता सिंह ने अपने प्रचार पर 13.51 लाख रुपये खर्च किए. जबकि बिरंची नारायण ने करीब 14.92 लाख रुपये खर्च किए थे. दोनों ही प्रत्याशी जनसभाओं और रैलियों के जरिए जनता तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. अब 2024 के विधानसभा चुनाव में दोनों फिर से मैदान में हैं, देखना यह है कि इस बार कौन कितना खर्च करता है और जीतता है.चुनाव आयोग को सौंपे गए अपने हलफनामों में उम्मीदवारों ने अपने चुनाव खर्च का ब्यौरा दिया है.

बिरंची नारायण का सबसे ज्यादा रहा चुनावी खर्चा

बीजेपी के उम्मीदवार बिरंची नारायण ने अपने चुनाव प्रचार में लगभग 14.92 लाख रुपये खर्च किए थे. उनके खर्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में लगाए गए 3.34 लाख रुपये भी शामिल थे. इस अभियान के लिए उन्हें बीजेपी से 15 लाख रुपये की सहायता मिली थी.

कांग्रेस ने 13.51 लाख रुपये किए खर्च

2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार श्वेता सिंह ने अपनी चुनावी मुहिम पर कुल 13.51 लाख रुपये खर्च किए थे. उनका खर्च जनसभाओं, रैलियों, प्रचार सामग्री और सोशल मीडिया प्रचार में बंटा था. पार्टी ने उन्हें इस अभियान के लिए 10 लाख रुपये फंड मुहैया कराया, जबकि जनता से 99,500 रुपये सहयोग मिला और 3.31 लाख रुपये का निजी योगदान दिया गया.

जनसभा और रैली खर्च में कौन सबसे आगे?

श्वेता सिंह ने जनसभाओं और रैलियों पर 3.72 लाख रुपये खर्च किए. जबकि बिरंची नारायण ने प्रचार में 4.14 लाख रुपये लगाए. दोनों ने अपने-अपने तरीकों से जनता तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन बीजेपी की ओर से किए गए निवेश से बिरंची नारायण थोड़ा आगे है. लोगों का मानना है कि बीजेपी प्रत्याशी का टिकट क्लियर होने के कारण वह पहले से प्रचार कर रहे थे.

प्रचार सामग्री पर खर्च

प्रचार सामग्री पर श्वेता सिंह ने 59,325 रुपये खर्च किए. जबकि बिरंची नारायण ने इस मद में 2.44 लाख रुपये लगाए, जो कांग्रेस उम्मीदवार के खर्च से काफी अधिक था. बीजेपी की रणनीति में प्रचार सामग्री को अधिक प्राथमिकता दी गई. वहीं, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, और सोशल मीडिया प्रचार के लिए श्वेता सिंह ने 97,900 रुपये खर्च किए थे. जबकि बिरंची नारायण का खर्च 96,213 रुपये रहा. इस मामले में दोनों उम्मीदवारों ने लगभग समान खर्च किया.

प्रचार वाहनों पर बढ़ा खर्च

प्रचार वाहनों पर श्वेता सिंह ने 84,409 रुपये लगाए, जबकि बिरंची नारायण ने 3.62 लाख रुपये खर्च किए. इस मद में बीजेपी उम्मीदवार का खर्च कांग्रेस से अधिक रहा.

प्रचार कार्यकर्ताओं और सहयोगियों पर खर्च

श्वेता सिंह ने प्रचार कार्यकर्ताओं पर 1.98 लाख रुपये खर्च किए. जबकि बिरंची नारायण ने इस मद में 3.35 लाख रुपये का निवेश किया. इन आंकड़ों से साफ है कि बीजेपी उम्मीदवार बिरंची नारायण ने कांग्रेस की श्वेता सिंह से अधिक खर्च किया. विशेषकर प्रचार सामग्री, वाहन और रैलियों पर. दोनों उम्मीदवारों ने अपनी-अपनी रणनीति के हिसाब से खर्च किया, लेकिन बीजेपी का प्रचार अभियान आर्थिक दृष्टिकोण से भारी पड़ा था.

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