विकासनगर: आपने छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या कभी आपने बूढ़ी दिवाली के बारे में सुना है. जी हां, जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में दीपावली के ठीक एक महीने के बाद दिवाली मनाई जाती है, जिसे 'बूढ़ी दिवाली' कहा जाता है. जिसकी मान्यता भी खास है. इन दिनों जौनसार बावर के ग्रामीण बूढ़ी दीवाली की तैयारियां में मग्न हैं. महिलाएं चिवड़ा तैयार कर रही है, जिससे गांव-गांव में चिवड़ा की महक आ रही है.
उत्तराखंड अपनी संस्कृति और तीज त्योहार के लिए देश-विदेश में अपनी अलग ही पहचान रखता है. इसी कड़ी में देहरादून जिले के जौनसार बावर जनजतीय क्षेत्र की अपनी खास संस्कृति और त्योहार के लिए जाना जाता है. जहां त्योहार मनाने की भी अलग ही परंपरा है. जौनसार बावर का क्षेत्र यमुना नदी और तमसा नदी के बीच बसा है. यहां के लोग अपने आराध्य महासू महाराज को अपने तीज त्योहार सर्मपित करते हैं.
इन्हीं तीज त्योहारों में बूढ़ी दीवाली भी शामिल है. जिसे मनाने की परंपरा सदियों से अनवरत चली आ रही. जब देश में दीवाली मनाई जाती है तो ठीक एक महीने बाद जौनसार बावर क्षेत्र में दीवाली का जश्न शुरू हो जाता है, जो करीब चार पांच दिनों तक चलता है. इस बार बूढ़ी दीवाली 200 से ज्यादा गांवों में मनाई जाएगी. जबकि, कुछ क्षेत्र के खत पट्टियों में देश की दीवाली के साथ दीवाली मनाई जा चुकी है.
दसऊ पशगांव खत प्रवास पर छत्रधारी चालदा महासू महाराज: इसका मुख्य कारण ये माना जाता है कि जिस क्षेत्र में छत्रधारी चालदा महासू महाराज प्रवास पर होते हैं, उस क्षेत्र में नई दीवाली मनाई जाती है. इन दिनों चालदा महासू महाराज जौनसार के दसऊ पशगांव खत के मंदिर में विराजमान हैं. लिहाजा, बाकी जगहों पर बूढ़ी दीवाली की तैयारियां जोरों पर है. ऐसे में गांव-गांव में चिवड़ा बनाई जा रही.
चिबऊ गांव के ग्रामीणों का कहना है कि वो इन दिनों बूढ़ी दीवाली की तैयारियां में जुटे हैं. गांव में सभी लोग चिवड़ा बना रहे हैं. चिवड़ा महासू देवता को प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है. बूढ़ी दिवाली मनाने के लिए नौकरी पेशा के लिए शहर गए लोग भी गांव लौट आते हैं. सगे संबंधियों और ससुराल गई लड़की, जब माइके आती है तो उसे भी चिवड़ा दिया जाता है.
क्यों मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली: जौनसार बावर में बूढ़ी दीवाली मनाने के पीछे भी लोगों के कई तर्क हैं. जनजाति क्षेत्र के बुजुर्ग लोग कहते हैं कि पहाड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की सूचना देरी से मिली थी. जिस कारण यहां के लोग मुख्य दीपावली के ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली मनाते हैं.
वहीं, कई लोगों का मानना है कि जौनसार बावर में जब दीपावली होती है, तब लोग खेती बाड़ी के कामकाज में काफी ज्यादा व्यस्त रहते हैं. दीपावली के दौरान फसलें तैयार होती है. ऐसे में ग्रामीणों को समय पर अपनी फसलें काटनी होती थी. जबकि, सर्दियों से पहले सभी कामों को निपटाना होता था. ग्रामीण जब खेती-बाड़ी आदि के काम निपटा लेते थे, तब वो दिवाली का पर्व मनाते थे. जिसे आज भी पांरपरिक तरीके से मनाते हैं.
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